गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर – भारत के वैभवशाली इतिहास और लोक संस्कृति की धरोहर !
छठी - सातवीं ईस्वी का एक प्राचीन त्रिशूल और प्राचीन ब्राह्मी"(Brahmi) लिपी के शिलालेख मौजूद -ईना बहुगुणा।
गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर – भारत के वैभवशाली इतिहास और लोक संस्कृति की धरोहर !
छठी – सातवीं ईस्वी का एक प्राचीन त्रिशूल और प्राचीन ब्राह्मी”(Brahmi) लिपी के शिलालेख मौजूद -ईना बहुगुणा।
उत्तराखंड के चमोली जनपद का मुख्यालय और खूबसूरत शहर गोपेश्वर कभी सीमांत इलाके में उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है।
गोपेश्वर में जिले के कई प्रशासनिक कार्यालय हैं और सबसे प्रसिद्ध यहां का प्राचीन व भव्य गोपीनाथ मंदिर है ।
बदरीनाथ मार्ग पर स्थित चमोली शहर से अलकनंदा नदी को पार कर के, लगभग 12 किलोमीटर दूर गोपेश्वर शहर की बसावट एक पहाड़ी पर है।
गोपेश्वर नगर उत्तराखंड की संस्कृति, सामाजिक परिवेश व इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान करता है। चिपको आंदोलन से लेकर नीति और माणा गांव की जनजातियों से जुड़े प्रमुख हस्ताक्षर गोपेश्वर में निवास करते हैंं।
प्राचीन गोपीनाथ मंदिर धार्मिक पर्यटक के आकर्षण सहित स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपीनाथ मंदिर देवी सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव का ध्यान केंद्र रहा है ।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के शोध में कहा गया है कि गोपीनाथ मंदिर परिसर में कभी कई छोटे मंदिरों के प्रमाण मिले हैं । जिन में आज केवल कुछ ही शेष हैं।
मुख्य मंदिर आठवीं शताब्दी ईस्वी निर्मित माना जाता है जबकि मंदिर का मंडप बाद में सुधारा गया है ।
एक प्राचीन त्रिशूल, जिसका संरक्षण आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) कर रहा है, भी गोपीनाथ मंदिर के परिसर में रखा गया हैं और छठी – सातवीं ईस्वी का बताया जाता है ।
विश्व की सबसे प्राचीन ब्राह्मी”(Brahmi) लिपी चिन्ह में एक शिलालेख इन तथ्यों को प्रमाणित करते है। त्रिशूल को नेपाल के राजा अशोक छल्ला द्वारा 11 वीं ईस्वी में अपनी वर्तमान स्थिति में बहाल किया गया । गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर आज भारत के वैभवशाली इतिहास और लोक संस्कृति की एक धरोहर है।
आलेख – ईना बहुगुणा।