सेवा भाव से निराशा और टीबी को जीता – हेमलता बहन !
नंदा तू राजी खुशी रेइयां - एक अभियान टी बी से मुक्ति की ओर हमारे त्याग का फल।
सेवा भाव से निराशा और टीबी को जीता – हेमलता बहन !
नंदा तू राजी खुशी रेइयां – एक अभियान टी बी से मुक्ति की ओर हमारे त्याग का फल।
सामाजिक जीवन में मेरी शुरुआत इसलिए हुई – दो रोटी और सुरक्षित छत मिले।
सो सामाजिक डयूटी में पैसा कमाना जरूरी था।
जब भी समय मिलता लोगों से मिलती जानकारी सांझा करती और नए दौर में जीने की राह व तलाश जारी रही।
ईमानदारी और मेहनत के बिना जीवन यात्रा पूरा करना असंभव है।
1996 में परिवार में एक रोग से पीड़ित शख्स बीमारी से निराश होकर गंगा में छलांग लगाने जा रहे थे !
अचानक मुझे गांव जाना पडा और तब ये जानकारी मिली ।
उनसे प्रार्थना की – कृपया हिम्मत न हारें, मैं उन्हें भरसक सहायता करूंगी ।
वह रो रहे थे – खाना छोड़ दिया था। दिन भर एकांत में सुन्न पड़े रहते थे।
सबसे छुपते – फिरते और रात को रोते रहते थे । उनकी पत्नी बहुत परेशान थीं।
मेरे आश्वासन पर परिवार का ढांढस बढ़ा। उन्हें लेकर वो मेरे पास आये।
मैं तब टिहरी में थी सो वहीं इलाज आरंभ करवाया।
3 माह उन्हें किराए के कमरे में रखा। अब उनकी हालत धीरे धीरे सुधर रही थी।
डाक्टर से मशविरा कर दवाई देकर उन्हें वापस गांव भेज दिया।
वह तीन माह मेरी जीवन धारा में मुझे बहुत कुछ सीखा गए…….!
समाजिक पीड़ा, असाध्य रोग अपने लोगों से छुपाने की कुंठा, नासूर बनता दर्द,
गरीबी का दंश
और खुद को असहाय मानने की पीड़ा ,
और हर तरह से कमजोर होने का दर्द हमें आत्मघात की ओर विवश करता है..!
तब सोचा अपने जीवन का कुछ समय ऐसे असाध्य रोग से पीड़ित लोगो को भी दूंगी।
वर्ष 2002 में देहरादून आना हुआ – यहां मेरा सामना 8 साल की रेप पीड़िता बच्ची से हुआ !
मेरे तन बदन में आग लग जाती थी – ये कैसा समाज है ?
दर्द को सहती निरीह बच्ची की आंखे …नश्तर की तरह दिल में उतरती थी।
वह बच्ची अपने मामा के पास आई हुई थी – उसे सांत्वना दी।
महिला मंच और अनेक महिलाओं ने सहयोग किया – बच्ची के बयान दर्ज हुए, पुलिस ने दोषी को गिरफ्तार किया।
कोर्ट के आदेश पर अपराधी को 10 वर्ष की सजा में जेल हुई।
अपराधी पड़ोस के गांव था और बच्ची पहचान करने से डर भी रही थी।
देहरादून में रहते हुए इस के बाद हिंसा पीड़ित महिलाओ की काउंसलर के रूप में
गैर सरकारी संस्था की सदस्य ,
एस पी कार्यालय में महिला हेल्प लाइन की सदस्य भी रसी।
क्षेत्र की कुछ सैक्स वर्कर से भी मिली जो बुजुर्ग हो चुकी थी।
जवानी में उनके परिजन पैसा ले जाते और बुढ़ापे में कुलटा “पापी औरत” कह रहे थे।
कई औरतें यौन रोग से ग्रस्त , एचआईवी पॉजिटिव हो चुकी थी।
उनकी दवाई चल रही थी, डाक्टरों के सहयोग से जागरूकता और बचाव कार्यक्रम में भागेदारी शुरू की ।
वर्ष 2006 में टी बी रोगी जन से मिलने के बाद भेदभाव को समझने और विशेषकर बेटियो की पीड़ा जानने का अवसर मिला।
क्षय रोग के “साइड इफेक्ट्स “को जाना, दवाई की “उपलब्धता “व “पोषाहार” पर सोचने लगी।
“डॉट्स प्रोवाइडर ” की नई भूमिका ने क्षय रोग और रोगिजन को समझने का अवसर दिया।
दिसंबर 2007 से ऋषिकेश में कार्य जारी है।
” नंदा तू राजी खुशी रेईया एक अभियान टी बी से मुक्ति की ओर” 2014 नंदा राज जात के दिन से शुरू हो गया ।
7 टी बी रोगी बेटियों का ग्रुप बनाकर पोषाहार कार्यक्रम आरंभ किया।
पौष्टिक भोजन का मीनू बनाया और योजना को धीरे – धीरे आगे बढ़ाया।
“हमारे सेवा भाव को सफलता मिलती रही और आज हम कोई परियोजना या पैसे कमाने का नहीं। “
मां भगवती की कृपा से एक हजार क्षय रोगियों को सहयोग कर पाए हैं।
बच्चो की “आस” और सम्मानित पोषाहार दाताओं का हार्दिक आभार है – जिनके जन सहयोग का उदाहरण आज सराहा जा रहा है।
—हेमलता बहन