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उत्तराखंड राज्य पुष्प – ब्रह्मकमल की अनकही जानकारी !

दिव्य-सुगंध वाले इस पुष्प का वर्णन पौराणिक काल से उत्तराखंड में मिलता है

उत्तराखंड राज्य पुष्प – ब्रह्मकमल की अनकही जानकारी !
दिव्य-सुगंध वाले इस पुष्प का वर्णन पौराणिक काल से उत्तराखंड में मिलता है

राज्य पुष्प ब्रह्मकमल उत्तराखंड में राज्य में करीब 4800 मीटर से 6000 मीटर की ऊँचाई पर हिमरेखा से नीचे ब्रह्मकमल के पुष्प पाए जाते हैं। दिव्य-सुगंध वाले इस पुष्प का पौराणिक काल से उत्तराखंड में वर्णन मिलता है।

ब्रह्मकमल में बैंगनी रंग के पुष्पगुच्छ होते हैं, जो श्वेत पीत पंखुड़ियों जैसे पत्तों से घिरे रहते हैं। वनस्पति विज्ञान में इसे Saussurea obvallata कहा जाता है। प्रदेश के दुर्गम चट्टानी क्षेत्र में घास से आच्छादित बुग्यालों में उगने के कारण यह देवपुष्प कई अर्थों में महत्वपूर्ण है। वैसे विश्वभर में इस पुष्प की 400 से अधिक प्रजातियां गिनी गई हैं, तथापि उत्तराखंड में इस पुष्प की 24 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। वर्षाऋतु में यह पुष्प अपने पूर्ण यौवन पर खिलता है। दुर्लभ प्रजाति के इस पुष्प को ‘कौल पद्म’ भी कहा जाता है।

भगवान शंकर का अभिषेक इसी पुष्प से किया जाता है। इसी तरह अगस्त-सितंबर के महीनों में जब यौवन पर होता है, तभी नंदाष्टमी के पर्व पर इसे देवालय ले जाया जाता है, साथ ही पूजा-अर्चना के पश्चात इसकी पंखुड़ियाँ, प्रसाद के रूप में वितरित की जाती हैं।
स्थानीय निवासियों की श्रद्धा के कारण ब्रह्मकमल को पूजन के उद्देश्य के अतिरिक्त तोड़ना अपराध सा माना जाता है।

उत्तरकाशी में हर-की-दून, टोन्स घाटी, गंगोत्री, यमुनोत्री, दयारा बुग्याल, चमोली में फूलों की घाटी, रुद्रनाथ, नंदादेवी राष्ट्रीय उद्यान, रूपकुंड, रुद्रप्रयाग के केदारनाथ, मद्महेश्वर, बागेश्वर में कफनी, सुंदरढुंगा, पिंडारी, पिथौरागढ़ में मिलम हिमनद के पास ब्रह्मकमल की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। फूलों की घाटी का नैसर्गिक सौंदर्य इस पुष्प से द्विगुणित हो जाता है।

इस पुष्प का औषधीय महत्त्व भी कम नहीं है। इसकी जड़ों का उपयोग हड्डी टूटने या कटे हुए भागों में घावों को ठीक करने के साथ ही उदर रोगों तथा मूत्र विकार के उपचार में भी किया जाता रहा है। विडंबना यह है कि आज इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है और जिनको है भी वे उदासीन से प्रतीत होते हैं। केदारनाथ धाम में हाल के वर्षों में ब्रह्मकमल वाटिका उत्तराखंड पुलिस के कार्मिकों द्वारा तैयार की गई है। इसी तरह की एक वाटिका केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ अमित कुंवर के प्रयासों से भी विकसित की गई है। इससे यह उम्मीद बंधती है कि दुर्लभ श्रेणी के इस पुष्प का संरक्षण निश्चित रूप से होगा।
– दिनेश शास्त्री, देहरादून।

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