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श्रद्धाँजली – मन्दिर आंदोलन ने बनाया कल्याण सिंह को हिन्दू हृदय सम्राट !

वे भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से टकरा गए —झुके नहीं, पार्टी छोड़ी; बगावत की।

श्रद्धाँजली !
मन्दिर आंदोलन ने बनाया कल्याण सिंह को हिन्दू हृदय सम्राट !

वे भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से टकरा गए —झुके नहीं, पार्टी छोड़ी; बगावत की।
(लखनऊ से – सर्वेश कुमार सिंह)
अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे रखीं भगवान श्रीराम की मूर्तियों को कोई ताकत हटा नहीं सकती है, तो फिर वहां मस्जिद के ढांचे की क्या आवश्यकता है!   हम इस ढांचे को यहां से हटा देना चाहते हैं !
दृढ़ता और संकल्पशक्ति के साथ यह बात कहने का अदम्य साहस कल्याण सिंह में ही था। वह भी तब जब वे उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान थे।  कल्याण सिंह ने यह बात राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार स्व. दिलीप अवस्थी से सितंबर 1991 में कही – जो तब देश की जानी मानी पत्रिका के राज्य में विशेष संवाददाता थे।

उनके यह संकल्प व्यक्त करने के एक साल बाद ही छह दिसम्बर 1992 को वह विवादित ढांचा वहां से हटा दिया गया
था। इसका मतलब साफ है कि कल्याण सिंह ने गर्भगृह पर ही श्रीराम मन्दिर निर्माण के लिए परिकल्पना कर ली थी। सफल राजनेता, सफल मुख्यमंत्री, सफल विधायक, सफल पार्टी कार्यकर्ता, सफल शिक्षक और सफल स्वयंसेवक के रूप में 89 साल की जीवन यात्रा पूरी करने के बाद 21 अगस्त 2021 को अनन्त यात्रा पर जाने वाले कल्याण सिंह को युग पुरुष के रूप में याद किया जाएगा।

कल्याण सिंह जिस व्यक्तित्व का नाम है — उसने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। जो तय कर लिया, उसे निभाया और अंत तक निभाया ! कभी नफा – नुकसान नहीं सोचा। उनके व्यक्तित्व में एक जन्मजात दृढ़ता थी। जिसने उन्हें सफल प्रशासक तो बनाया ही, सफल राजनीतिज्ञ भी साबित किया।

अपनी दृढ़ता और सिद्धान्तों पर अडिगता के चलते ही वे भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से टकरा गए थे। झुके नहीं -पार्टी छोड़ी, बगावत की। लेकिन, हमेशा अपनी आत्मा को भाजपा के भीतर ही पाया। इसी का परिणाम था कि दो बार 1999 और 2009 में पार्टी से अलग होने के बाद पुनः पुनः लौटते रहे। और अंत में 2014 में जब लौटे तो फिर कभी भाजपा से दूर नहीं हुए। पार्टी से दूर होने पर भी उन्होंने हमेशा यही इच्छा व्यक्त की कि इस पार्टी में उन के प्राण बसते हैं — मेरी अंतिम इच्छा है कि भाजपा के झण्डे में लिपटकर ही अंतिम यात्रा पूरी हो।

कल्याण सिंह का प्रारम्भिक जीवन बेहद सामान्य परिवार से प्रारम्भ हुआ। उनका जन्म अलीगढ़ जनपद के अतरौली क्षेत्र में मढौली गांव में पांच जनवरी 1932 को हुआ था। पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम सीता देवी था। वे किसान परिवार में जन्मे थे। शिक्षा के दौरान ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे।

उन्हें उत्तर प्रदेश के पूर्व क्षेत्र प्रचारक स्व. ओमप्रकाश जी ने स्वयंसेवक बनाया था। ओमप्रकाश जी उस समय अतरौली तहसील में तहसील प्रचारक थे। बाद उन्हें अतरौली का तहसील कार्यवाह बनाया गया था। वे अंत तक ओमप्रकाश जी को अपना आदर्श मानते रहे। भाजपा से दूरी होने के बाद भी वे ओमप्रकाश जी के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव रखते थे। कल्याण सिंह जी ने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की थी। वे अतरौली के समीप की स्थित रायपुर में एक जूनियर हाईस्कूल में अध्यापक रहे।

राजनीतिक सफरः संघ से योजना के रूप में उन्हें तत्कालीन जनसंघ में काम के लिए भेजा गया । उन्होंने पहला चुनाव जनसंघ के टिकट पर 1962 में लड़ा, लेकिन चुनाव हार गए।

इसके बाद वह 1967 में फिर अतरौली से जनसंघ के ही टिकट पर चुनाव लड़े । इस बार वह जीत गए। इसके बाद उन्होंने
1969,1974,1977 के चुनाव जीते। लेकिन, वे 1980 का विधान सभा हार गए। फिर 1985, 1989,1991,1993 और 1996 में चुनाव जीते। इस प्रकार कल्याण सिंह कुल नौ बार विधायक रहे।

दो बार विधान सभा का चुनाव हारे। जबकि दो बार सांसद रहे। एक बार 2004 में बुलन्दशहर से और 2009 में एटा से उन्होंने चुनाव जीता। दोनों चुनाव उन्होंने निर्दलीय किन्तु सपा के समर्थन से जीते थे। भारतीय जनता पार्टी से नाराज चल रहे कल्याण सिंह को 2014 में पुनः पार्टी मे वापस लिया गया और उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। इसके साथ ही वे कुछ महीनों के लिए हिमाचल प्रदेश के भी राज्यपाल रहे।

भाजपा से बगावतः कल्याण सिंह ने उत्तर प्रदेश में 1999 में हुए सत्ता परिवर्तन से रुष्ट होकर भाजपा छोड़ दी थी। उन्हें हटाकर रामप्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया था। किन्तु वह नाराज हो गए और उन्होंने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली थी। इस पार्टी से उन्होंने 2002 के विधान सभा चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े कर दिये। इसका परिणाम हुआ कि भाजपा को इस चुनाव में भारी नुकसान हुआ। माना गया कि कल्याण सिंह के लोध और पिछड़े वोट बैंक के कारण भाजपा लगभग 70 सीटों पर चुनाव हारी।

यहीं से भाजपा को कल्याण सिंह की राजनीतिक शक्ति का एहसास हो गया था। इसके बाद ही उन्हें वापस लाने के प्रयास होने लगे थे। वे 2004 में वापस लौट भी आए किन्तु फिर बात बिगड़ गई और 2009 में दोबारा बगावत कर दी लेकिन, पांच साल में फिर वापस लौट आए। मन्दिर आंदोलन ने बनाया हिन्दू हृदय सम्राट – श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर आंदोलन के अग्रणी नेता के रूप में भी कल्याण सिंह को इतिहास याद रखेगा। उन्हें युगपुरुष की उपाधि मन्दिर के लिए सरकार को न्यौछावर कर देने के बाद ही मिली।

छह दिसंबर 1992 को अयोध्या मे विवादित ढांचा ढहाये जाने के बाद उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने अपने मुख्य सचिव को बुलाकर इस्तीफा देने से पहले कहा था कि सारी जिम्मेदारी मेरी है, जहां चाहो हस्ताक्षर करा लो ताकि बाद में किसी अधिकारी पर कोई आंच न आये।
— सर्वेश कुमार सिंह, लखनऊ।

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