भगवतीचरण वर्मा जयंती पर विशेष !
भगवतीचरण वर्मा को उनकी 118 वीं जयंती पर सादर हार्दिक नमन
भगवतीचरण वर्मा जयंती पर विशेष !
हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले ।
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले ।
‘दीवानों की मस्ती में सी बीवी धूल उड़ाते चलने वाले’ मानव समाज में व्याप्त रिश्तों की गहरी समझ रख युगीन विसंगतियों पर प्रहार करते हुए नवयुग के सृजन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए पाठक वर्ग को प्रेरित करने वाले हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर भगवतीचरण वर्मा को उनकी 118 वीं जयंती पर सादर हार्दिक नमन हैं I
भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के सफीपुर में हुआ था I उनका व्यक्तित्व शायराना अल्हड़पन, रंगीनी और मस्ती का सुधरा-सँवारा हुआ रूप है, अपने साहित्यिक जीवन में प्राय: प्रत्येक ‘वाद’ को टटोला है, परखा है, समझने-अपनाने की चेष्टा की है, परन्तु उनकी सहजता, हर बार उन्हें ‘वादों’ की दीवारें तोड़कर बाहर निकल आने के लिए प्रेरणा देती रही I उनका यही अल्हड़पन और रूमानी मस्ती इनके कृतित्व में, चाहे किसी भी विधा के अंतर्गत क्यों न हो, प्राण फूँक देती है I
गिरने की गति में मिलकर
गतिमय होकर गतिहीन हुआ।
एकाकीपन से आया था
अब सूनेपन में लीन हुआ।
भगवतीचरण वर्मा जीवन भर सहजता के प्रति आस्थावान बने रहे और उसकी वे रक्षा करते रहे I किसी दूसरे की मान्यताओं को उन्होंने उधार नहीं लिया। जो थे, उससे भिन्न देखने की चेष्टा भी उन्होंने कभी नहीं की।
जीवन रेंग रहा है लेकर
सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
और डूबती हुई अमा में
आज शाम है बहुत उदास ।
भगवतीचरण वर्मा ने लेखन तथा पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है। बीच-बीच में वे फ़िल्म तथा आकाशवाणी से भी सम्बद्ध रहे। विविध साहित्यिक विधाओं उपन्यास, कहानियाँ, कविताएँ और निबन्धों जैसे सृजनात्मक कार्यों के बदौलत वे साहित्य में अमर हो गए हैं।
भगवतीचरण वर्मा की प्रमुख कृतियाँ –
उपन्यास – पतन, चित्रलेखा, तीन वर्ष, टेढे़-मेढे रास्ते, अपने खिलौने, भूले-बिसरे चित्र, वह फिर नहीं आई, समर्थ्य और सीमा, थके पाँव, सबहिं नचावत राम गोसाईं, प्रश्न और मरीचिका, चाणक्य I
कविता-संग्रह – भैसागाड़ी, त्रिपथगा, मधुकण, प्रेम-संगीत, और मानव,
कहानी-संग्रह – मोर्चाबंदी,
नाटक – वसीहत, रुपया तुम्हें खा गया,
संस्मरण – अतीत के गर्भ से I
सन् 1961 में साहित्यिक साधना के लिए भगवतीचरण वर्मा को ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और सन् 1969 में ‘वाचस्पति’ उपाधि से विभूषित किया गया। सन् 1978 में इनको राज्यसभा के लिए चुना गया। राज्य सभा की सदस्यता के दौरान ही 5 अक्टूबर, 1981 को दिल्ली में इन्होने अपनी आखिरी साँस ली।
भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले भगवतीचरण वर्मा की रचनाएँ आज भी पूर्णतः प्रासंगिक हैं I
– राम पुकार शर्मा
प्रस्तुति: रजनीश त्रिवेदी, पदचिह्न टाइम्स