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राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा, हिंदी और अंग्रेजी का संघर्ष !

राष्ट्रभाषा यानि जन - जन की भाषा।

राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा, हिंदी और अंग्रेजी का संघर्ष !
राष्ट्रभाषा यानि जन – जन की भाषा।
– संदीप खानवलकर
हर साल की तरह सरकारी मशीनरी 14 सितंबर को हिंदी दिवस – राष्ट्रभाषा या राजभाषा मनाने की रस्मी तैयारी में जुट गई है। ऐसा लगता है कि हम सालों साल यंत्रवत इस दिन को मनाने की तैयारी करते आ रहे हैं।

सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों में हिंदी दिवस पर कुछ प्रतियोगितायें आयोजित होंगी, प्रतियोगी भी हर साल की तरह वही चेहरे, जो हर साल हिंदी के लिए एक दिन के सिपहसलार बनते हैं। ऐसा लगता है कि हिंदी दिवस अब एक मजबूरी का त्यौहार बन चुका है।

राष्ट्रभाषा के प्रति उत्साह में कमी, अपने देश की पहचान चिह्न के प्रति समर्पण में कमी के रूप में भी देखा जाना चाहिए। ऐसा क्या है कि आजादी के अमृत महोत्सव 75 वर्ष में हम अपनी राष्ट्रभाषा को यथा योग्य सम्मान नहीं दिला पाए हैं। हर साल बस एक दिन और कर्तव्य की इतिश्री !

यह भी सच है कि सरकारी स्तर पर हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिए भरसक प्रयास और योजनायें बनी हैं। बस जनमानस की भागीदारी और समर्पण के और अधिक प्रयास जरूरी हैं।

कानून बनाकर अनिवार्यता करने से बेहतर है कि अपना देश – संविधान, झंडा, राष्ट्रगान के साथ अब जनमानस में राष्ट्रभाषा के प्रति भी गर्व और सम्मान का भाव बने।

राष्ट्रभाषा की बात होते ही उत्तर बनाम दक्षिण, क्षेत्रवाद, बोली, संस्कृति के तमाम मुद्दे संकीर्णतावश खड़ा करके विरोध के स्वर खड़ा कर लेते हैं।

हम सब को अपनी मातृभाषा से प्यार है, होना ही चाहिए लेकिन राष्ट्रभाषा को सर्वोच्च शिखर पर रखना भी हमारा दायित्व है। हमें संकल्प लेना है कि राष्ट्रीय चिह्नों के प्रति हम अधिक से अधिक गर्व, आदर और समर्पण का भाव रखें।

शहर के सभी सरकारी, व्यापारिक और अन्य प्रतिष्ठानों के बोर्ड हिंदी में अधिक से अधिक रहें। बोली और राष्ट्रभाषा के अघोषित संघर्ष में हम पिछले 75 सालों से राजभाषा के रूप में अंग्रेजी को ढो रहे हैं। जब आम बोल चाल में हम अंग्रेजी से कोसो दूर हैं तो अंग्रेजी के बोर्ड किसलिए ? बेहतर है कि राष्ट्रभाषा सबसे पहले और अंग्रेजी को जरूरी होने पर बोर्ड पर लिखा जाए।

सभी वाहनों पर अंग्रेजी की जगह हिंदी अक्षरों का प्रयोग हिंदी के प्रयोग में मील का पत्थर साबित हो सकता है। घर के बाहर नाम व पते की जानकारी राष्ट्रभाषा में लिखकर हम अपने देश के प्रति आदर प्रकट करते हैं। अंग्रेजी में हम किस को जताना चाहते हैं और इस का कोई औचित्य भी नहीं है।

सोशल मीडिया में कंप्यूटर ने बाजार के अनुरूप सारी देशी – विदेशी भाषाओं के लिए यूनिकोड बना लिए हैं – ऐसे में गलत – सलत अंग्रेजी लिखने से बेहतर अपनी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग कंप्यूटर व मोबाइल पर हो। इसीलिए अब कंप्यूटर एक से अधिक भाषा का उपयोग कर रहे हैं और हमें सदैव अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति जागरूक रहना है।


जब हम अपने भाव और रूतबा प्रदर्शित करने के लिए अपनी भाषा को छोड़कर बीच में अंग्रेजी घुसेड़ते हैं तो निश्चिय ही आप अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति अपमान का भाव दिखा रहे हैं और अब इस मानसिकता को बदलने का संकल्प  हिंदी दिवस पर लेना है।
– संदीप खानवलकर

 

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