केदारनाथ निर्माता आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा व समाधि का लोकार्पण करेंगे – प्रधानमंत्री मोदी
बीकेटीसी बनाम देवस्थानम बोर्ड : केदारनाथ में पूर्व मुख्यमंत्री का विरोध !
केदारनाथ निर्माता आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा व समाधि का लोकार्पण करेंगे – प्रधानमंत्री मोदी
बीकेटीसी बनाम देवस्थानम बोर्ड : केदारनाथ में पूर्व मुख्यमंत्री का विरोध !
5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ धाम की यात्रा पर हैं – केदारनाथ स्थापित करने वाले आदिगुरू शंकराचार्य की प्रतिमा का अनावरण और उनकी समाधि का पुनर्निमाण, आस्था पथ, घाट, गरूड़ चट्टी पुल आदि कार्यों का लोकार्पण करेंगे।
साथ ही विगत आठ सालों में केदारपुरी नवनिर्माण और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरते तीर्थ पर्यटन स्थल केदारनाथ धाम के लिए दूसरे चरण के कार्यों का शिलान्यास भी होना है।
केदारनाथ पहुंचने की होड़ में नेताओं का जमावड़ा केदारनाथ जुटने लगा तो तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज ने देवस्थानम बोर्ड का विरोध तेज कर दिया। सबसे पहले चपेट में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत आए और उन्हें बिना दर्शन लौटा दिया गया।
दूसरे भाजपा नेताओं और मंत्रियों के प्रति यह सब देखने को नहीं मिला है। धामी सरकार का रवैया बोर्ड के प्रति ढुलमुल है सो देवस्थानम बोर्ड पूरे सनातन समाज के बीच अबूझ पहेली है। सरकार को स्कूल, हास्पीटल, सड़क, बिजली, पानी आदि को ठीक करना है या मंदिरों की व्यवस्था में उलझना जरूरी है।
देवस्थानम बोर्ड का विरोध तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज पहले दिन से कर रहे हैं और भाजपा तब से विरोध की अनदेखी करती आ रही है। फिर अचानक चार साल बाद बजट सत्र के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत को भाजपा ने मुख्यमंत्री पद से हटा दिया।
115 दिन के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने गैरसैण कमीश्नरी और देवस्थानम बोर्ड पर पुनर्विचार की चर्चा में त्रिवेंद्र के प्रति नाराजगी के मुद्दों के संकेत दिए। साथ ही त्रिवेंद्र सरकार द्वारा नियुक्त सौ से अधिक दर्जाधारी मंत्रियों को बिना नई नियुक्ति के हटा दिया।
नए मुख्यमंत्री के समय में सल्ट चुनाव हुआ लेकिन उन्हें पता नहीं चला कि छह माह के भीतर उन्हें भी विधानसभा चुनकर आना है।
दिव्य और भव्य महाकुंभ हरिद्वार में आयोजित कर नब्बै लाख से अधिक श्रद्धालुओं को गंगा स्नान कराने वाले मुख्यमंत्री अपने लिए विधानसभा चुनाव आयोजित नहीं करा पाए।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहले दिन से भाजपा को 2022 में दुबारा सत्ता दिलाने के लिए रात – दिन एक किए हुए हैं। उन के सामने पूर्व मुख्यमंत्रियों की फौज खड़ी हैं और उन के कार्य को ढोना भारी बोझ बन रहा है।
कोरोना काल में देवस्थानम बोर्ड ने पहले आनलाइन पास जारी करने का बीड़ा उठाया और फिर अन्य राज्यों के श्रद्धालुओं को स्मार्ट सिटी पोर्टल पर आवेदन करने को कहा गया। देवस्थानम बोर्ड में तीन उद्योगपति व पांच पंडा समाज से सदस्यों को नामित किया गया है लेकिन सारे कर्मचारी पुराने बीकेटीसी यानि बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के हैं।
नए प्रबंधन बोर्ड में चार वरिष्ठ आईएएस सदस्य हैं और वे पहले ही अनेक विभागों का कार्यभार देख रहे हैं। बीकेटीसी का रैवन्यू सरकार के पास था और देवस्थानम बोर्ड में भी वही व्यवस्था है।
त्रिवेंद्र सरकार अपने पसंदीदा देवस्थानम बोर्ड के लिए एक पूर्णकालिक आईएएस अधिकारी तक नियुक्त नहीं कर पायी और आज भी देवस्थानम बोर्ड में गढ़वाल कमीश्नर को सीईओ बनाया गया हैं। जाहिर तौर पर देवस्थानम बोर्ड को लेकर होमवर्क अधूरा है।
देवस्थानम बोर्ड में चारधाम और 49 मंदिर शामिल हैं तो देवभूमि उत्तराखंड , हरिद्वार और कुमायूं के अन्य प्राचीन मंदिर कैसे इस बोर्ड के आधीन नहीं हैं ? लोगों की यह भी शिकायत है कि सनातन मंदिरों में सरकारी हस्तक्षेप क्या दूसरे धर्म और संप्रदाय के आस्था स्थलों को भी अपने प्रभाव में लेगा।
भारत के प्रमुख मंदिर वैष्णों देवी, तिरूपति या अयप्पा स्वामी के बोर्ड मात्र एक मंदिर की देखरेख तक सीमित हैं और वहां उत्तराखंड जैसा हौच-पौच नहीं है।
बदरीनाथ, केदारनाथ मंदिर समिति को भंग करना और देवस्थानम बोर्ड का प्रयोग भाजपा सरकार के लिए अब चुनावी मुद्दा बन रहा है — आप पार्टी और कांग्रेस ने भी विरोध तेज किया है और सरकार में आने पर देवस्थानम बोर्ड भंग करने की बातकर हजारों तीर्थ पुरोहित व पंडा समाज को अपने पक्ष में खड़ा करने की मुहिम छेड़ दी है।
पदचिह्न टाइम्स