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साहित्य सरिता : मुक्तिबोध ने मानी गीतों की महिमा !

नई कविता ने गीत और छँद का विरोध कर अपना स्थान खो दिया।

साहित्य सरिता : मुक्तिबोध ने मानी गीतों की महिमा !

नई कविता ने गीत और छँद का विरोध कर अपना स्थान खो दिया।

प्रस्तुति – रजनीश त्रिवेदी

मुक्तिबोध ने भी यद्यपि कहा है कि जो लोग गीत का, छंद का विरोध करते हैं ,वह अपनी ही जड़ों का विरोध करते हैं अपनी परम्पराओं का,जीवन के हर पक्ष का विरोध करते हैं।

मुक्तिबोध ने स्वीकार किया है कि जीवन के हर पक्ष की अभिव्यक्ति गीत में अच्छे ढंग से की जा सकती है । नई कविता के लोग जिसे हथियार बनाकर गीत पर ,छान्दस रचना विधान पर आक्रमण करते हैं ,उनका कविता में, गीत में, साहित्य में आज कहीं स्थान नहीं रहा — यह कथन है नव गीतकार असीम शुक्ल के !मौका था – उन की नव प्रकाशित काव्यकृति “ताल किनारे” के लोकार्पण का।

असीम शुक्ल ने नई कविता के मुकाबले गीत को अग्रसर करते हुए रामधारी सिंह दिनकर को उद्धृत किया – दिनकर जी ने एक लेख में कहा कि ये नई कविता के लोग कविता के नाम पर चले तो हैं परंतु कहां पहुंचेंगे पता नहीं और कहां समाप्त हो जाएंगे यह भी इन्हें मालूम नहीं।

गीत मानव चेतना को ,मानव मूल्यों को वहां ले जाकर खड़ा कर देता है जहां जीवन की अनुभूति का अर्थ है कि संसार है,जीवन है और हम हैं ।

प्रख्यात गीतकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि किसी पुस्तक का लोकार्पण सारस्वत परिवार में जन्मोत्सव की तरह सुखद होता है । हम इस पुस्तक के पाठकों के बीच लोकप्रिय होने की कामना करते हैं । गीतों की सुंदरता उसे संगीत के साथ प्रस्तुत करने से प्रकट होती है।

डॉ सुधा पांडेय ने कहा – गीत संग्रह ‘ताल किनारे’ के गीतों में एक अपूर्व और सृजन धर्मिता का निर्वहन किया गया है। मन के स्वप्निल गीतों के रचनाकार लोकधर्मी भंगिमा और समकालीन जीवन के भी कुशल चितेरे हैं।

इस समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय, अध्यक्षता की डॉ सुधा पांडेय ने और मंच पर विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गीतकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, असीम शुक्ल, ड़ॉ राम विनय सिंह, डॉली डबराल और डॉ विनोद चंद्र पांडेय उपस्थित थे।

पदचिह्न टाईम्स।

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