चुनाव जीतने के लिए कृषि बिल हुए वापस !
आखिर प्रधानमंत्री मोदी झुक गए किसान आंदोलन के आगे।
गुरू पर्व के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि बिल वापस लेने का ऐलान कर दिया है। किसान आंदोलन लंबा खिचने से सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ और भाजपा सरकार को कोरपोरेट समर्थक ठहराया गया।
मोदी सरकार ने सात साल में दूसरी बार अपना बनाया कानून वापस लिया है। इस से पहले पेट्रोल व डीजल के दाम घटाकर सरकार मंहगाई और वोट के तालमेल को साधने का प्रयास कर चुकी है।
उधर किसान आंदोलनकारी संसद में इन बिलों के रद्द होने का प्रस्ताव पास होने तक लामबंद रहेंगे।
किसानों की अब मांग है कि लगे हाथ न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून भी संसद में पास हो ताकि किसानों की फसल बाजार में कम मूल्य पर ना खरीदी जाये। पिछले एक साल से पूरे देश में किसान तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन छेड़े हुए हैं।
मोदी सरकार पहली बार किसान आंदोलन के आगे बेबस साबित हुई है और अब आगे दूसरे आंदोलन भी एकजुट होकर अपनी सफलता की उम्मीद कर रहे हैं।
लखीमपुर खीरी हिंसा में बीजेपी मंत्री के बेटे की गाड़ी ने किसानों को कुचल दिया था और मामला सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार की किरकिरी बना हुआ है।
विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा नेताओं को मोदी के तीन कृषि बिलों का जमकर विरोध झेलना पड़ रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लगभग सौ विधानसभा सीटों पर रूझान आरएलडी – सपा के पक्ष में नज़र आ रहा है।
दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश और हरियाणा बार्डर पर किसान रात – दिन राजमार्ग पर धरना देकर बैठे हैं। हरियाणा में किसान सीधे ठक्कर सरकार की चुनौती बने हुए हैं।
पंजाब में भाजपा की सबसे पुरानी साथी पार्टी अकाली दल सबसे पहले तीनों कृषि बिल के विरोध में भाजपा और एनडीए से बाहर गई। केंद्रीय मंत्री हर सिमरन कौर बादल ( जो कि प्रकाश सिंह बादल की पुत्रवधू हैं) मोदी सरकार से इस्तीफा देकर बाहर हुई।
कांग्रेस सीधे किसान आंदोलन के पीछे है – भाजपा नेता आरोप लगाते हैं। किसान आंदोलनकारियों पर काफी हल्के आरोप भाजपा समर्थकों ने लगाये हैं।
तीनों कृषि बिल रद्द करने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। हाल में हुए उपचुनाव में भाजपा लोकसभा की तीन में से दो सीट हारी हैं। विधानसभा की 30 सीटों पर भी खासा नुक्सान भाजपा ने उठाया है।
अब चुनाव रणनीति के तहद पहले पेट्रोल – डीजल के दाम भाजपा सरकार ने कम कर के साबित कर दिया है कि पेट्रोलियम दाम पर विदेशी बाजार की मजबूरी जुमला है।
किसान आंदोलन आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में भी जोर पकड़े हुए है।
पदचिह्न टाइम्स।