उत्तराखंड में वोटिंग पैटर्न और चुनावी मुद्दों के उलझे समीकरण !
प्रदेश में 34 फीसदी ने वोट नहीं डाले, काशीपुर में 5 फीसदी घटा , विकासनगर में 5 फीसदी बढ़ा, सोमेश्वर में 3.3, श्रीनगर गढ़वाल में 2.6 और खटीमा में आधा फीसदी पोल बढ़ पाया।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में अभी कई अनसुलझे पेंच हैं – मसलन वोटिंग 65.37 फीसदी हुई तो बाकि 34.63 फीसदी वोटर कहां ओझल हैं !
वोट ना देने वाले नागरिकों की संख्या 28 लाख से अधिक है। चुनाव आयोग ने बड़े प्रयास से इस बार 1.58 लाख नए वोटर जोड़कर उत्तराखंड में कुल वोटर संख्या 81 लाख 72 हजार 173 दर्ज की है।
अब वीआईपी विधानसभाओं में वोट का गणित सुलटायें तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की खटीमा विधानसभा में 76.6 फीसदी मतदान हुआ और 2017 के चुनाव से यह मात्र आधा फीसदी बढ़ पाया है।
मुख्यमंत्री की विधानसभा में मतदान स्थिर रहना क्या दर्शाता है – कोई नई लहर चुनाव प्रचार में नहीं बन पायी ! पिछली बार मोदी लहर ने कांग्रेस को उखाड़कर विधानसभा में 11 सीट पर सीमित कर दिया।
कांग्रेस वो पार्टी है जिसने उत्तराखंड में बीजेपी को दो बार हराकर सरकार बनायी है।
दोनों सत्ता में रही पार्टियों ने जिस सीट पर टिकट बदले हैं – वहां निर्दलीय या बागी को टिकट दे दिया, जिसने अकेले दम पर वोट का बड़ा हिस्सा पिछली बार पाया है।
ताकि कैडर वोट और प्रत्याशी की निजी पकड़ सीट निकालने का गणित बने।
नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की चकराता सीट पर 68.2% वोट डला है, जो पिछली बार से 4 प्रतिशत कम है।
श्रीनगर गढ़वाल सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का मुकाबला बीजेपी मंत्री धन सिंह रावत से है। यहां 2.6% वोट अधिक पड़े हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत चुनाव मैदान में नहीं है। फिर भी डोईवाला सीट पर पिछली बार से अधिक 68 फीसदी वोट पड़ा है।
इस सीट पर बीजेपी, कांग्रेस, युकेडी और आप पार्टी के नए चेहरे उतरे हैं।
बीजेपी मंत्री रेखा आर्य की सोमेश्वर सीट पर 3.3 फीसदी अधिक 56.9 फीसदी वोट पड़ा है। पिछली बार बीजेपी ने यह सीट मात्र आधा फीसदी की बढ़त से जीती है।
कांग्रेस से बीजेपी में आए मंत्री सतपाल महाराज की चौबट्टाखाल सीट पर लगभग 45.3% लगभग एक फीसदी वोट कम पड़ा है।
कोटद्वार सीट पर हरक सिंह रावत ने कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी को 16 फीसदी के मार्जिन से हराया था – तब 68.6% पोलिंग हुई, अबकि घटकर 65.9 फीसदी वोट पड़े हैं।
सुरेंद्र सिंह नेगी को तब 40.4 फीसदी वोट पड़े थे। अब मुकाबला मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूडी की बेटी रीतु खंडूडी से है और सीटिंग विधायक हरक सिंह रावत अब कांग्रेस की तरफ हैं।
सुरेंद्र सिंह नेगी 2012 में तत्कालीन बीजेपी मुख्यमंत्री जनरल खंडूडी को कोटद्वार सीट पर हरा चुके हैं।
विधानसभा अध्यक्ष प्रेम अग्रवाल की ऋषिकेश सीट पर 62.2 फीसदी मतदान हुआ और यह पिछली बार से 2.5 फीसदी कम है।
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की लालकुंआ सीट पर 72.5 फीसदी मतदान हुआ और यह पिछली बार से मामूली ज्यादा है।
रानीखेत सीट पर पिछली बार करन माहरा ने बीजेपी अध्यक्ष अजय भट्ट को 12 फीसदी से ज्यादा वोट अंतर से हराया है। इस बार भी यहां 51.8% वोट पड़े हैं।
द्वारहाट सीट पर एक फीसदी ज्यादा 52.7 वोट पड़ा है। सीटिंग विधायक महेश नेगी का टिकट एक महिला प्रकरण के चलते कटा है और यहां मुकाबले में मदन बिष्ट कांग्रेस और पुष्पेश त्रिपाठी यूकेडी जैसे चर्चित नेता हैं।
विकासनगर में एक बार फिर बीजेपी विधायक मुन्ना सिंह चौहान का मुकाबला कांग्रस के नवप्रभात से है और यहां 75.7 फीसदी वोट पड़े हैं और यह पिछली बार से पांच फीसदी अधिक हैं।
राजनीति विश्लेषक कहते हैं कि वोट ज्यादा पड़ना जहां परिवर्तन का कारण बनता है। वहीं पोल कम होना भी प्रत्याशी की पकड़ में कमी का परिचायक है।
उत्तराखंड में बीजेपी सरकार वापसी का मिथक तोड़ती है तो कांग्रेस के पास मोदी, मुद्दे और चेहरों का टोटा ही हार का कारण रहने वाले हैं।
पोल प्रतिशत का संकेत है – बीजेपी 60 के पार का जुमला सच साबित करने जैसा तूफान अपने स्टार प्रचारकों के साथ नहीं उठा पायी है।
– भूपत सिंह बिष्ट