उत्तरकाशी में मिली पाषाण भैंसा मुखी दुर्लभ शिव प्रतिमा !
आद्य शिव प्रतिमा ने सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखण्ड के पारस्परिक सम्बन्धों को रेखांकित किया।
उत्तरकाशी में मिली पाषाण भैंसा मुखी दुर्लभ शिव प्रतिमा !
आद्य शिव प्रतिमा ने सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखण्ड के पारस्परिक सम्बन्धों को रेखांकित किया।
उत्तरकाशी जनपद के बर्नीगाड़ स्थान से लगभग 10 किमी उत्तर पूर्व में स्थित देवल गाव से पाषाण की एक महिष (भैंसा) मुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा प्रकाश में आई है।
प्रतिमा के लाक्षणिक गुण शिव प्रतिमा के अनुरूप हैं।
इस प्रतिमा के खोजकर्ता सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त “आद्य शिव ” के साथ जोड़ते हैं क्योंकि पूर्व में पुरातत्वविदों द्वारा पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सिंधु घाटी सभ्यता एवं उत्तराखण्ड के पारस्परिक सम्बन्धों को रेखांकित किया है।
इस दुर्लभ प्रतिमा का प्रकाशन रोम से प्रकाशित प्रतिष्ठित शोध पत्रिका “ईस्ट एंड वैस्ट” के नवीनतम अंक में इसके पुरातात्विक महत्व को बताया गया है।
वस्तुत: उत्तराखण्ड की यमुना घाटी पुरासंपदा की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है।
पूर्व में कालसी स्थित अशोक महान का शिलालेख जगतग्राम एवं पुरोला की अश्वमेघ यज्ञ की ईंटों की वेदियां तथा लाखामण्डल के देवालय समूह विश्वविख्यात हैं।
दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के तत्वावधान में पुरातत्व से जुड़े शोधार्थियों द्वारा हाल में ही इस क्षेत्र से कई अन्य महत्वपूर्ण पुरातत्त्वीय अवशेष खोजे गये हैं। अब ये शोध पत्रिकाओं में प्रकाशनाधीन भी है।
अतीत में सिंधु घाटी सभ्यता और उत्तराखण्ड के परस्पर संबंधों के अनेक महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सुपरिचित पुरातत्वविद और दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के मानद फैलो प्रो. महेश्वर प्रसाद जोशी ने बताया।
दून पुस्तकालय एवम् शोध केन्द्र के निदेशक प्रो. बी. के जोशी ने महत्वपूर्ण सेमिनार तथा अन्य गतिविधियों की जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि उत्तराखण्ड हिमालय के इतिहास, पुरातत्व, समाज व संस्कृति से जुड़े विविध अनछुए पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है।
पदचिह्न टाइम्स।