बाजार सजने को तैयार नहीं जीते तो क्या हम खरीद भी सकते हैं !
लोकतंत्र का परिहास करते , लोकतंत्र के प्रहरी अब अपनी जगहंसाई पर भी नहीं ठिठक रहे।
हमारे लोकतंत्र की कमी नहीं है – यह बीमारी नेताओं की हैं। लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने के लिए सत्ता के पुजारी बेचैन हैं।
कोई भी बेमेल गठबंधन कर सत्ता हथियाना लोकतंत्र की जड़ों को खोखला कर रहा है।
विगत वर्षों में दल बदल का नंगा नाच पूरे देश ने देखा है।
अब फिर सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक का दावा है कि कांग्रेस के कई नेता हमारे संपर्क में हैं।
उधर मध्य प्रदेश के एक नेता जो पूर्व में कांग्रेस की निर्वाचित सरकार को गिराने में अग्रणी रहे – फिर उत्तराखंड में देखे जा रहे हैं।
कहीं बेहतर होता कि अनुभवी, लोकप्रिय युवा पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद के नेतृत्व में इस बार बीजेपी चुनावी मैदान में उतरती तो यह सब खुलकर ना करना पड़ता।
आज उत्तरप्रदेश में सातवें और अंतिम दौर के मतदान बाद पांच राज्यों के चुनाव परिणाम का सबको इंतजार है।
12 फरवरी से 10 मार्च तक खींच गए इस चुनावी कार्यक्रम में काफी बोझिलता भर गई है और लोकतंत्र में नेताओं द्वारा किए जा रहे फाउल प्ले से भी सब रू बरू हुए हैं।
चुनाव आयोग की ढिलाई सत्ता पक्ष के पाले में नज़र आयी है।
उत्तराखंड और गोवा विगत 14 फरवरी से मतगणना का इंतजार कर रहा है। पंजाब, मणिपुर को भी काफी समय मिला है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सात चरणों तक खींचकर ऐसा नहीं लगा कि देश में कभी एक साथ – एक दिन में चुनाव आयोजित किया जा सकता है।
चुनाव परिणाम के बाद यदि नेता दल बदल करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट और निर्वाचन आयोग को विश्व भर में भारत के लोकतंत्र के परिहास को रोकने हेतु आगे आना होगा।
देश की पोलिटिकल पार्टियां येन प्रकरेण बस सत्ता की लूट चाहती हैं – राजनीति नागरिक सेवा से बढ़कर धंधा बन रही है।
पदचिह्न टाइम्स।