अबला नहीं हैं लदाखी नारी – नए आयाम में कुंग फू भिक्षुणी !
15591 फीट की ऊँचाई - माहे द्रुरूक गावा खिलवा — ननरी मोनेस्ट्री, भगवान बुद्ध की शिक्षा के प्रसार में लीन 65 बौद्ध साध्वियाँ !
अबला नहीं हैं लदाखी नारी – नए आयाम में कुंग फू भिक्षुणी !
15591 फीट की ऊँचाई – माहे द्रुरूक गावा खिलवा — ननरी मोनेस्ट्री, भगवान बुद्ध की शिक्षा के प्रसार में लीन 65 बौद्ध साध्वियाँ !
15 हजार 6 सौ फीट पर पूजा साधना का संकल्प निसंदेह फौजी धैर्य और बहादुरी सी दरकार रखता है।
लदाख विश्व के सबसे ऊंचे पठार क्षेत्र में है और यहां आक्सीजन की कमी, माइनस में जाने वाला रोजाना तापमान, आधुनिक सुविधाओं का अकाल, दुश्मन देश चीन का बढ़ता अतिक्रमण, सैकड़ों किमी की दूरी में गिनी चुनी आबादी के गांव, बस्ती और नगर में जीवन की बड़ी चुनौती हैं।
द्रुरूकपा बौद्ध समाज का इतिहास एक हजार साल पुराना है और नेपाल, भूटान व भारत में तिब्बती संस्कृति जी रहा है।
भारत के कुछ भागों में जैसे त्वाँग, अरूणाचल में महिला लामा भिक्षुणी को अनेई और इन के गोंपा अनेई गोंपा कहे जाते हैं।
लदाख में प्रमुख हैमिस गोंपा से जुड़े होने के कारण इन्हें नन और इन के गोंपा को ननरी नाम से भी जानते हैं।
द्रुरूकपा समुदाय की साध्वी जिग्मे यूनतान जांगमो बताती है कि वे 15 साल की आयु में साध्वी बनी।
तीन बहनों में सबसे छोटी गहनता से विचार कर बौद्ध भिक्षुणी बनकर अब समाज सेवा में हैं। द्रुरूकपा बौद्ध संघ में पूरे विश्व में पांच सौ से अधिक भिक्षुणियां है।
नेपाल मुख्यालय में शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए बौद्ध भिक्षुणियों को कुंग फू और मार्शल आर्ट का विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
भारत में लदाख, रिवालसर – हिमाचल और दार्जिलिंग में महिला लामाओं को दीक्षित किया जा रहा है।
परम पूज्य गलवांग द्रुरूकपा धर्म गुरू के आशीर्वचन से हम समाज सेवा में हैं।
साल में बीस दिन हम परिवार के बीच जा सकते हैं – अन्यथा हमारा जीवन अपने समाज को समर्पित है।
माहे साध्वी गोंपा में तिब्बती धर्म पुस्तकों का अध्ययन और अध्यापन, रोज धार्मिक पूजा परंपरा और एकांत में वज्र ध्यान की कक्षायें चलती है।
साध्वी जांगमो कहती है – 8 साल से लेकर किसी भी आयु की लड़कियां साध्वी बन सकती हैं – बस जीवन को धार्मिकता में समर्पित करने का भाव आवश्यक है।
– भूपत सिंह बिष्ट