हिमाचल टूरिस्ट सर्किट : हरियाली का खज़ाना डलहौजी – खज़ियार !
अंग्रेजों द्वारा स्थापित इन हिल स्टेशनों से निकटतम हवाईअड्डा कांगड़ा और रेलवे स्टेशन पठानकोट तीन घंटे से कम दूरी पर हैं।
हिमाचल टूरिस्ट सर्किट : हरियाली का खज़ाना डलहौजी – खज़ियार !
अंग्रेजों द्वारा स्थापित इन हिल स्टेशनों से निकटतम हवाईअड्डा कांगड़ा और रेलवे स्टेशन पठानकोट तीन घंटे से कम दूरी पर हैं।
उत्तराखंड की तुलना में हिमाचल प्रदेश का टूरिस्ट उद्योग अधिक व्यवस्थित लगता है।
तीन – चार दिन की यात्रा पैकेज के लिए हिमाचल प्रदेश में डलहौजी और खज़ियार हर उम्र पर्यटकों के लिए बेहतरीन हैं।
डलहौजी हिल स्टेशन अंग्रेजों का बसाया मिलेट्री सेंटर भी है।
फिल्म स्टार देव आनंद अपने बचपन में गर्मी की छुट्टियां बिताने यहां सपरिवार गुरदासपुर से पहुंचते थे – अंग्रेज की काटेज में ये अवकाश दो माह तक लंबा खिंचता था।
अंग्रेज हिमाचली युवतियों से शादी करते थे और तब विवाह विच्छेद का एक मुकदमा देव आनंद के वकील पिता डलहौजी के अंग्रेज की ओर से लड़ रहे थे।
उत्तराखंड में भी ग्वालदम से बेदनी बुग्याल – आलि बुग्याल की ओर अंग्रेज लाटसाहब ने पहाड़, घाटी, जंगल व नदी की ट्रेल यात्रायें किताबों में दर्ज़ की हैं।
कुछ ऐसा ही अहसास डलहौजी – खजियार की यात्रा में होता है।
अंग्रेजों के ट्रेवलाग – यात्रा विवरण की तलाश टूरिस्टों को हिमाचल के दूर दराज इलाकों तक पहुंचा देती है।
प्रमुख आर्मी स्टेशन और पंजाब के जिले पठानकोट निकटतम रेलवे स्टेशन से डलहौजी यात्रा तीन घंटे में पूरी हो जाती है।
चीड़ और घने देवदार के जंगलों में अंग्रेजों की काटेज – प्रापर्टीज़ अब होटल बन चुके हैं।
डलहौजी हिल स्टेशन में मौसम की नज़ाकत को महसूस किया जाता है। धुंध, कोहरा और सफेद बादल यहां सब से अठखेलियां करते हैं।
धूप – छाँव, बारिश और बर्फ अंग्रेजी बसावट के बीच परियों के देश का लुत्फ देती हैं।
कभी डलहौजी अंग्रेजों के लिए शिक्षा और विश्राम का केंद्र रहा है।
डलहौजी से ऊपर लक्कड़ मंडी के तंग रस्ते पर गाड़ी चलाते हुए शिमला, मसूरी, दार्जिलिंग व शिलांग की यादें ताज़ा हो जाती है।
लक्कड़मंडी से एक रास्ता मिलेट्री अर्थ स्टेशन की ओर तथा बांयी ओर नीचे कालाटोप खज़ियार वाइल्ड लाइफ सैंचुरी के लिए जाता है।
कालाटोप का जंगल लैंसडाउन, उत्तराखंड के कालोडांडा का ही प्रतिरूप है – धुंध और कोहरे से घिरे चीड़, कैल व देवदार के घने जंगल अधिकतम बारिश और सूर्य दर्शन का अभाव इन जंगलों को कालाटोप तथा कालोडांडा नामकरण देते हैं।
एक सौ रूपये वाहन प्रवेश शुल्क चुका कर घने जंगल के बीच बहते झरने और बुग्याल का खूबसूरत सिलसिला खज़ियार में जाकर रूकता है।
अंग्रेज फोरेस्टर ने बसाया रेस्ट हाउस क्षेत्र खज़ियार – मिनि स्विटज़रलैंड कहलाता है।
हरित बुग्याल के बीचों बीच एक झील है। बुग्याल के चारों ओर पैदल ट्रेक बना है।
हर तरफ देवदार के विशालकाय वृक्ष देवनगरी का अहसास कराते हैं।
कांगड़ा एयरपोर्ट से चुवाड़ी – जोत होते हुए रौमांचक पहाड़ी रास्ते से तीन घंटे के भीतर खज़ियार पहुंचा जा सकता है।
रहने और खाने के लिए हिमाचल टूरिज़्म के साफ सुथरे होटल, पीजी, ढाबे और चाय नाश्ते के स्टाल रोजाना सैकड़ो पर्यटकों की मेहमान नवाज़ी करते हैं।
खज़ियार के बुग्याल में घुड़सवारी, आधुनिक गुब्बारे के अंदर गुलाटियां, हिमाचली परिधान में फोटो शूट, वीडियो और फिल्मों की शूटिंग मुंबई और दक्षिण के सिनेमा तक को यहां खींच लायी है।
यहां से बीस किमी दूर है – ग्यारह सौ सालों का इतिहास समेटे, रावी नदी के तट पर बसा, लोकगीतों और मंदिरों का शहर चम्बा है !
घुम्मकड़ों के कदम डलहौजी – खज़ियार की ओर खुद ब खुद उठ जाते हैं, बस कभी यू टयूब में ये लोकगीत सुनिए –
माये नि मेरिये, शिमले दी राहें,
चम्बा कितणी की दूर,
शिमला नि बसणा, कसौली नि बसणा,
चम्बे जाणा जरूर।।
— भूपत सिंह बिष्ट