उत्तराखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री व्यवस्था से अचानक नाराज क्यूँ हो गए !
22 साल के उत्तराखंड राज्य में चल रही है कमीशनखोरी और स्मार्ट सिटी कंपनी के कामकाज अचानक चुभने लगे हैं।
9 नवंबर को उत्तराखंड ने अपना 22 वाँ स्थापना दिवस मनाया और पूरे राज्य में उत्सव और उमंग की धूमधाम अभी तक बरकरार है।
उत्तराखंड स्थापना दिवस पर बड़े पैमाने में कौथिग, सम्मान समारोह, परिचर्चा, फिल्म महोत्सव, साहित्यिक आयोजन और प्रदर्शनी देखने को मिली हैं।
युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य स्थापना माह में आयोजित हो रहे सांस्कृतिक आयोजनों और मेलों में प्रतिभाग करने के लिए दूरदराज सीमांत जनपदों तक पहुंचे हैं।
सभी जनपदों के कार्यक्रमों में एक उल्लास का माहौल बना हुआ है। मुख्यमंत्री धामी ने कुमांऊ में सीमांत पिथौरागढ़ से लेकर तक गैरसैण और गोचर तक अपनी उपस्थिति जनता के बीच दर्ज करायी है।
ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत देहरादून स्मार्ट सिटी के कामकाज को लेकर खुश नहीं हैं।
स्मार्ट सिटी लिमिटेड के कार्यकलापों से देहरादून के मेयर भी नाराजगी प्रकट कर चुके हैं। स्मार्ट सिटी के कामकाज से जुड़े ठेकेदारों पर कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा मुख्यमंत्री धामी से कर चुके हैं।
स्मार्ट सिटी के कामकाज में देरी और बिखराव की पीड़ा अस्थायी राजधानी देहरादून के नागरिक झेल रहे हैं।
त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल में स्मार्ट सिटी के कामकाज के लिए अधिकारियों की अलग टीम बनाने की जगह कभी देहरादून के जिलाधिकारी को या कभी एमडीडीए के उपाध्यक्ष को अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।
स्वाभाविक रहा कि एक से अधिक प्रभार देख रहे अधिकारी स्मार्ट सिटी के प्रति न्याय नहीं कर पाए। देहरादून लाइब्रेरी भवन के लिए एयरपोर्ट एथारिटी ने 13 करोड़ सीएसआर फंड से दिए लेकिन स्मार्ट सिटी की यह परियोजना अभी भी एक साल पीछे चल रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तराखंड स्थापना दिवस समारोह में पूर्व मुख्यमंत्रियों की सक्रिय भूमिका नज़र नहीं आयी हैं। धीरे – धीरे पूर्व मुख्यमंत्री कार्यक्रमों के मंच से दूर चले गए हैं।
बीजेपी नेताओं के बयान कांग्रेस और आप पार्टी के लिए सहयोग कर रहें हैं लेकिन साफ है कि अपने मुख्यमंत्री काल में कोई नज़ीर प्रशासन के लिए नहीं बनायी हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल निशंक ही गाहे – बगाहे मुख्यमंत्री धामी के साथ मंच शेयर करते नज़र आते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री व सांसद गढ़वाल तीरथ सिंह रावत की बड़ी पीड़ा है कि राज्य बनने के बाद कमीशनखोरी जीरो होने की जगह बीस फीसदी दर से ऊपर आयी है।
इस के लिए सब दोषी हैं – कमीशन का भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अधिकारी, जनप्रतिनिधि और जनता को मनोवृत्ति बदलनी होगी – पूरे उत्तराखंड को अपना परिवार मानना होगा।
समाज कल्याण मंत्री भी अपने अधिकारियों की पूर्व में हुई धर पकड़ से नाखुश हैं और विवादित अधिकारियों के साथ योजनाओं को तेज गति से बढ़ा पाने में दुविधा पा रहे हैं।
मुख्यमंत्री धामी ने हरिद्वार में सांसद तीरथ रावत की चिंता का जवाब दिया है कि उन के सामने मामले उठाने पर निश्चित ही कार्रवाई की जायेगी – सरकार जीरो टालरेंस पर चल रही है।
अपनी सरकार को आईना दिखाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और जनप्रतिनिधि भले ही लोकतंत्र के हित में बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन समस्या का समाधान बताना भी उनका दायित्व है।
पदचिह्न टाइम्स।