नंदा राजजात यात्रा बाण गांव से बेदनी बुग्याल की ओर !
बाण गांव के शिखर से अद्भुत नजारा और गैरोली पातल की कमर तोड़ चढ़ाई - भाग 3
नंदा राजजात यात्रा बाण गांव से बेदनी बुग्याल की ओर !
बाण गांव के शिखर से अद्भुत नजारा और गैरोली पातल की कमर तोड़ चढ़ाई।
शाहजी की ड्यूटी बेदनी बुग्याल से आगे पातर नचोनिया पड़ाव पर एडवांस दल के रूप में थी।
नंदा राजजात यात्रा के आखिरी पड़ाव होमकुण्ड तक ब्रह्म कमल एवं अन्य दुर्लभ पौधों की सुरक्षा के लिये
रेंजर शाह को सजग रहना था।
फिर हम चारों ने अन्न देवता को ग्रहण किया l थोड़ी देर बातचीत के पश्चात हम सो गये l
अगली सुबह 30 अगस्त को बाण से हाथ मुँह धोकर हम तैयार हुए। किराये का घोड़ा लेकर कार में रखा
तम्बू और शेष सामान घोड़े पर लाद दिया।
घोड़े मालिक को बेदनी बुग्याल में फोरेस्ट चैक पोस्ट पर मिलने का वादा लेकर उसे विदा कर दिया l
अब बाण से कठिन, पथरीला और फिसलन भरा रास्ता 11 किमी की खड़ी और सांस फुला
देने वाली बेदनी तक चढ़ाई से हमारा सामना होना था।
चलते समय वर्मा जी का धन्यवाद करते हुए उनसे निवेदन किया की बेदनी में भी
व्यवस्था हो जाये तो बड़ी कृपा होगी।
उन्होंने वहाँ वन विभाग के इग्लू में रहने का हमारा प्रबंध चौकीदार से बता दिया था।
अब आगे की यात्रा के लिये दमखम और साहस जुटाने के लिए लाटू देवता का
आशीर्वाद लेना बहुत ही आवश्यक था।
बाण में प्राचीन मंदिर एक विशाल देवदार के वृक्ष के नीचे स्थित है।
लाटू देवता माँ नंदा के धर्म भाई हैं और कहा जाता है कि जात के आगे – आगे अदृश्य रहकर
होमकुण्ड तक अपनी बहन को विदा करने देवता साथ जाते हैं।
लाटू देवता के बारे मे ये भी कहा जाता है कि मंदिर के अंदर किसी को भी जाने की आज्ञा नहीं है।
पुजारी भी अंदर आँख और मुँह में पट्टी बांधकर विष्णु सहस्त्र नाम का उच्चारण करते रहते हैं।
कुछ बताते हैं कि अंदर शेष नाग अपनी नागमणि के साथ बैठे हैं।
पुजारी भी पट्टी इसलिए बांधते हैं ताकि नागराज उनको न दिखाई दें और नागमणि की गंध भी
उनके मुख में प्रवेश न करे।
वैशाख माह यानि अप्रैल की पूर्णिमा के दिन कपाट खुलते हैं।
हमने मंदिर परिसर में प्रवेश कर अपनी भेंट लाटू देवता को अर्पित की और आगे की यात्रा को
सफल बनाने हेतु उनका आशीर्वाद और साथ में ही रहने का अनुरोध किया।
थोड़ी देर वहाँ पर एकत्र लोकल महिलाओं के अपने पारम्परिक पोशाको एवं आभूषण में उनके
द्वारा गाये जा रहे जागर एवं नृत्य को निहारने का सौभाग्य मिला।
ऐसे लग रहा था – सच में कोई बारात विदा हो रही है।
तत्पश्चात अपनी – अपनी लाठी लेकर हम दोनों बाण गांव के शिखर से होते हुए
दुर्गम चढ़ाई की ओर प्रस्थान कर गए।
बाण गांव यात्रा का 12 वां पड़ाव है l आगे निर्जन जंगल छोटी छोटी नदियाँ और
खड़ी चढ़ाई से हमारा सामना हुआ।
यहाँ से 5722 मीटर ऊपर बेदनी बुग्याल तक एक ही दिन में चढ़ना था।
रास्ते की फिसलन और नीचे घाटी का नज़ारा, जरा फिसले नहीं कि हड्डी पसली बराबर।
चलते चलते सांस फूलने के कारण अपनी अपनी शक्ति से हम आगे – पीछे हो रहे थे।
अंत में 6किमी की चढ़ाई के उपरांत हम गैरोली पातल पहुँच गए l यहाँ पहुँचते ही
उत्तराखंड पुलिस के सौजन्य से हमें चाय बिस्कुट नसीब हुए।
पुलिस द्वारा ऐसा जनप्रिय स्वागत देखा तो ये जीवन की एक अमिट स्मृति बन
हृदय पटल पर अंकित हो गई है।
यहाँ पर स्वास्थ्य विभाग के दल द्वारा आवश्यक औषधियों का प्रबंध भी किया गया था।
थोड़ी देर आराम के पश्चात हम आगे बेदनी की तरफ बढ़ चले।
हर एक कदम हम बड़े ही संभल कर फिसलन भरे मार्ग पर रखते हुए आखिरकार
दुर्गम चढ़ाई पार कर दूर से बेदनी की छठा देखने में कामयाब रहे।
शरीर की सारी थकान उस विहंगम दृश्य को देख भाग खड़ी हुई।
मखमली घास का मैदान बहुत ही आकर्षक लग हृदय को स्पंदन प्रदान कर रहा था।
आज तक ऐसा आनंद और उल्लास कभी नहीं मिला।
धीरे धीरे हम अपनी मंजिल की ओर पहुँच ही गए। वहाँ पर वन विभाग के इगलू
के निकट ही चौकीदार मिल गया।
वर्मा जी जो हमारे लिए लाटू देव समान ही थे – उन के सहयोग से हमें
उस भवन की चावी मिल गई।
अपना सामान इग्लू में छोड़, बिना क्षण गवाये हम ताला लगा बेदनी के भ्रमण पर निकल गए।
अब भूख भी लग चुकी थी और थोड़ा सूखे मेवे खा उदर पोषण किया
और बेदनी कुंड के समीप पहुँच गए।
ऐसी मान्यता है कि बेदनी कुंड में तर्पण देने से पुरखो की आत्मा को शांति मिलती है।
एक मान्यता यह भी है की माँ दुर्गा ने यहीं पर रक्तबीज़ नामक राक्षस का वध किया था।
यहीं पर थोड़ा आगे की ओर शांति कुंज के बैनर तले लंगर लगा हुआ था।
हम पंक्ति मे लग भोजन प्रसाद गृहण किया तब तक सूर्य भी अस्त होने को अग्रसर था।
बर्फीली हवा चलनी शुरु हो गई थी और हम झटपट वन विश्राम के
इग्लू में पहुँच गए और जल्दी से
अपना- अपना स्लीपिंग बैग खोला और उसके अंदर घुस गए।
इग्लू के मकड़ेनुमा मच्छरों को मारने के लिए मोर्टीन पेपर जलाया।
हलद्वानी के समाजसेवी और व्यवसायी स्वर्गीय वेद गुप्ता जी की सिफारिश वाले यात्री को भी शरण मिल गई।
गढ़वाल मंडल विकास निगम ने इस बार सुंदर टैंट कालोनी का नगर बसाया था।
जहां भूपत सिंह बिष्ट जी के कालेज सखा धीरेंद्र राणा एक महिला अधिकारी के साथ व्यवस्था देख रहे थे।
बातो ही बातो मे कब नींद आयी पता ही नहीं चला l
क्रमश:
– सुभाष चंद्र मंझखोला