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राहुल गांधी फिर लोकसभा में – सुप्रीम कोर्ट ने लगायी सजा पर रोक !

लोकसभा - 2024 राहुल के संघर्ष ने खड़ी की है मोदी के खिलाफ विमर्श की नई पृष्ठभूमि ।

राहुल गांधी फिर लोकसभा में – सुप्रीम कोर्ट ने लगायी सजा पर रोक !
लोकसभा – 2024 राहुल के संघर्ष ने खड़ी की है मोदी के खिलाफ विमर्श की नई पृष्ठभूमि

 

मोदी सरनेम मानहानि मामले में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को

4 माह 11 दिन बाद विजय मिली।
सुप्रीम कोर्ट ने दो साल की सजा गैर – तार्किक मानकर आज सजा स्थगन आदेश सुना दिया।
इसके बाद अब एक साथ विमर्श के कई बिंदु खड़े हो गए हैं।

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कल तक राहुल को संसद से बाहर रखने पर विजेता भाव रखने वाली

भाजपा आज हताशा के भंवर में है।

इसके विपरीत कांग्रेस आज हर्षित ही नहीं बल्कि प्रफुल्लित और मुदित है ।

उसे आज स्वाभाविक नई संजीवनी मिली है ।

लोकसभा – 2024 की लड़ाई के लिए उसे बहुत बड़ा संबल मिला है क्योंकि सजा ने

राहुल गांधी को संसदीय राजनीति से परे कर दिया था।

विमर्श के बिंदु यह हैं कि लोक सभा अध्यक्ष ने जितनी तत्परता ट्रायलकोर्ट के

फैसला आने के बाद – बिना देर किए राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता निरस्त की।

एक रूका हुआ फैसला – राहुल गांधी को अगले माह की तारीख !

चुनाव आयोग को केरल वायनाड लोकसभा रिक्त होने की रिपोर्ट दी।
सांसद राहुल गांधी से सुरक्षा मुद्दों के बावजूद सांसद निवास तुरत – फुरत

खाली करने का नोटिस दिया।

ये सब एक तमाशे जैसा घट रहा था। 2019 चुनावी भाषण का संज्ञान लेकर

मानहानि मुकदमा दर्ज हुआ।

संसद और बाहर राहुल गाँधी सरकार के खिलाफ बड़े मुखर थे।

ट्रायल कोर्ट ने अचानक तेजी से सुनवायी की

और 23 मार्च 2023 को सांसद राहुल गांधी को अधिकतम दो साल की सजा हो गई।
सेशन कोर्ट में सांसद राहुल गांधी को राहत नहीं मिली।
हाईकोर्ट ने 66 दिन तक निर्णय को रोकने के बाद अपील खारिज कर दी।

तब जाकर राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट अपना मामला लेकर पहुंचे।

अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा स्थगन के बाद उनकी सदस्यता बहाली में

भी उतनी ही तत्परता दिखेगी?
यह सवाल न सिर्फ लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि संवैधानिक संस्थाओं की

गरिमा और मर्यादा को रेखांकित करने वाला भी है।

उच्चतम न्यायालय ने यह तो माना कि चुनावी सभा के दौरान राहुल गांधी की

टिप्पणी गुड टेस्ट में नहीं थी, नेताओं को भाषण में सजगता बरतनी चाहिए।

सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों को इस दृष्टि से सतर्क रहना चहिए

लेकिन सुप्रीम अदालत का यह वाजिब सवाल किया कि निचली अदालत ने

अधिकतम सजा देने का क्या आधार समझा है ?

जन प्रतिनिधि सांसद को मानहानि के लिए अधिकतम सजा के कारण

ट्रायल कोर्ट ने नहीं दिये हैं।
सेशन और हाईकोर्ट ने भी अधिकतम सजा के कारण नहीं देखे हैं।

उच्चतम न्यायालय की चिंता जनहित में जनप्रतिनिधि कानून के प्रति भी दिखी है।
उच्चतम अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह के निर्णयों में संसदीय क्षेत्र की

जनता का लोकतांत्रिक अधिकार भी बरकरार रहना चाहिए।

उसे प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं किया जा सकता।
क्योंकि ऊपरी अदालतों में सजा रद्द होने पर जनप्रतिनिधि और नागरिकों के

अमूल्य समय की भरपायी संभव नहीं है।

जाहिर है इसके साथ ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल हो गई है

और वे अब संसद सत्र में भी हिस्सा ले सकेंगे।
अगले सोमवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा कार्रवाई में

भाग लेंगे – यह सब स्पीकर के रुख पर निर्भर करेगा।

पिछले पांच माह से लोकसभा में प्रतिनिधित्व विहीन केरल, वायनाड की

जनता की वाणी दुबारा संसद में गूंजेगी।

सार्वजनिक जीवन में विरोधियों द्वारा जो भी धारणायें स्थापित की जाए

लेकिन स्मरणीय है लोकसभा सांसद राहुल गांधी, जिस परिवार से आते

हैं – वहां तीन लोगों को अमूल्य योगदान के लिए अब तक भारत रत्न से

सम्मानित किया गया है।

जाहिर है – वह राह चलते व्यक्ति नहीं, कुलीन, सुशिक्षित चार बार के सांसद हैं।

उनके परिवार ने देश के लिए ही अधिकतम कुर्बानी दी हैं।

विमर्श का एक बिंदु यह भी है कि आखिर निचली अदालत ने राहुल गांधी को

अधिकतम सजा ही क्यों दी?

उच्चतम न्यायालय ने भी अपने आदेश में यह बात कही है और निचली अदालतों

की प्रक्रिया पर संशय उठा है।

निचली अदालत को और उसके बाद उच्च न्यायालय को भी अधिकतम सजा की

वजह साफ करनी चाहिए थी क्योंकि जिस मामले में राहुल को सजा सुनाई

गई – ये अपराध दुर्दांत श्रेणी में नहीं आता।

गुजरात की तीन अदालतों ट्रायल, सेशन व हाईकोर्ट में सजा बरकरार रही।
जिस अपराध के लिए उन्हें सजा दी गई वह गुजरात में हुआ ही नहीं।

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने वर्ष 2019 में कर्नाटक की चुनावी सभा में

आर्थिक अपराधियों के लिए मोदी सरनेम का संबोधन किया था।
बेहतर होता – इस दृष्टि से मुकदमा भी कर्नाटक में ही चलना चाहिए था।
आगे न्यायिक व्यवस्था को लेकर यह बात भी विमर्श के केंद्र में आ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

कांग्रेस के बड़े नेता को आनन- फानन में संसद से बाहर करना और

सुप्रीम कोर्ट से सजा पर रोक लगाकर सांसदी बहाल करने के

फैसले लोकतंत्र में नजीर बना है।
अभी अनेक संगीन आरोपों में घिरे सांसदों या विधायकों पर मुकदमें लंबित हैं

और वे कानून बनाने में विधायिका का हिस्सा बने हुए हैं।

चुन – चुन कर कार्रवाई करने की अपेक्षा मुकदमें झेल रहे प्रतिनिधियों के

विरुद्ध फास्ट ट्रेक कोर्ट में इसी तरह की सक्रियता होनी चाहिए।

विमर्श का विषय यह भी हो सकता है कि चुनावी सभाओं में आरोप प्रत्यारोप का पैमाना

क्या होना चाहिए? नेता भाषा की मर्यादा लांघने की प्रतियोगिता में शामिल दिखते हैं।

हम देखते आ रहे हैं कि जिन्हें भ्रष्टाचार – शिरोमणी कह कर चुनावी सभाओं

में संबोधित किया जाता है।

DINESH SHASTRI SENIOR JOURNALIST

मगर राजनीतिक जरूरत पड़ने पर उनके साथ ही गठबंधन हो

जाता है। इसका भी तो कोई पैमाना होना चाहिए ।

अब राहुल गांधी प्रकरण ने देश की मौजूदा राजनीति में एक बड़ा विमर्श

खड़ा कर दिया है स्वस्थ लोकतंत्र के लिहाज से यकीन मानिए – राहुल गांधी की राजनीति ने

चुनौतियों की बहुत बड़ी आधारशिला रख दी है।
— दिनेश शास्त्री सेमवाल।

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