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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोरल बाँड रद्द किए मोदी सरकार को बड़ा झटका !

सत्ताधारी दल को मिला बांड से अकूत चुनावी दान, विपक्षियों के हत्थे आए बस चिल्लर।

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रोरल बाँड रद्द किए मोदी सरकार को बड़ा झटका !
सत्ताधारी दल को मिला बांड से अकूत चुनावी दान, विपक्षियों के हत्थे आए बस चिल्लर।

सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बैंच ने बहुप्रतीक्षित चुनावी बांड स्कीम  पर  आज निर्णय सुनाकर

इसे अवैध घोषित कर दिया।

SC

पिछले पंद्रह दिनों  में इश्यू और भुगतान अवशेष बाँड अब रद्द कर दिए गये हैं – भारतीय स्टेट बैंक इन

पैंडिंग बाँड को अब भुगतान नहीं कर पायेगा और राशि बाँड खरीदने वाली

कंपनियों को लौटायी जायेगी।

12 अप्रैल 2019 के अंतरिम आदेश से लेकर सुप्रीम कोर्ट आदेश 15 फरवरी 2024 के बीच जारी

इलेक्ट्रोलर बांड का हिसाब भारतीय स्टेट बैंक 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपना है ।

चुनाव आयोग को ये जानकारी अपनी वैब साइट पर 13 मार्च 2024 तक सार्वजनिक करनी हैं।

पांच सदस्यीय खंडपीठ ने सर्व सम्मति से चुनावी बांड स्कीम को अवैध ठहराया है।

ये चुनावी बांड लाभार्थी की जानकारी छुपा रहे थे और इस अकूत दान का इस्तेमाल

चुनाव के अलावा भी पोलिटिकल पार्टी करती आ रही थी।

लोकसभा चुनाव में एक सीट पर प्रत्याशी अधिकतम एक करोड़ से कम 93 लाख की राशि

खर्च कर सकते हैं।

दूसरे शब्दों में पांच साल की अवधि में होने वाले लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग से मान्यता प्राप्त

दल सभी 542 लोकसभा सीट पर अपने प्रत्याशी उतारे तो भी 542 करोड़ से ज्यादा धन

खर्च नहीं कर सकते हैं लेकिन चुनावी दान के नाम पर हर साल हजारों करोड़ बांड के नाम

पर हासिल किए गए हैं।

चुनावी बांड स्कीम जारी करते हुए केंद्र की एनडीए सरकार ने काले धन पर लगाम और

केवाईसी – ग्राहक की पूर्ण जानकारी का दावा किया।

इस स्कीम के लिए आयकर, कम्पनी कानून और निर्वाचन कानून में परिवर्तन किए गए।

चुनावी बांड से जुटायी गई अकूत राशि को सूचना अधिकार के दायरे से बाहर कर दिया गया था।

घाटे में चल रही कम्पनी कर्जा लेकर भी पोलिटिकल पार्टी के पक्ष में चुनावी बांड जारी

कर सकती थी।

पहले लाभ कमाने वाली कंपनियां अपने लाभ का अधिकतम साढ़े सात प्रतिशत तक

चंदा दे सकती थी। घाटे में चल रही कंपनियां दलों को चंदा नहीं दे सकती थी।

चुनावी बांड से पहले लाभार्थी दलों को मिलने वाले फंड सार्वजनिक किए जा रहे थे। अब राज्य और केंद्र

सरकार में सत्तारूड़ दल सबसे ज्यादा फंड हासिल कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने आशंका जतायी है कि कारपोरेट पिछले दरवाजे से फंडिंग करके

भारतीय लोकतंत्र को प्रभावित करने में सक्षम हो रहे हैं।

विपक्षी दलों की शिकायत रही है कि हर चुनाव में इलेक्ट्रोलर बांड से बीजेपी को

हजारों करोड़ का चंदा मिला है और इस आर्थिक संपन्नता के आगे चुनाव में सभी दलों के लिए

समान अवसर उपलब्ध नहीं है।

चुनावी बांड की जानकारी सांझा होने के बाद चुनाव के नाम पर हासिल सार्वजनिक फंड का

इस्तेमाल कहां – कहां लाभ लेने के लिए हुआ ये ज्ञात हो सकेगा।

पिछले एक दशक में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का

ये फैसला मील का पत्थर साबित होगा।
पदचिह्न टाइम्स।

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