विश्व रंगमंच दिवस कुसुम पंत ने उठाया …फट जा पंचधार का पूरा बोझ !
दून विश्वविद्यालय ने उपलब्ध कराया रंगमंच और उत्तर नाटय संस्थान ने जमकर कोसा संस्कृति विभाग।
विश्व रंगमंच दिवस कुसुम पंत ने उठाया फट जा पंचधार का पूरा बोझ !
दून विश्वविद्यालय ने उपलब्ध कराया रंगमंच और उत्तर नाटय संस्थान ने जमकर कोसा संस्कृति विभाग।
विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च का आयोजन देहरादून में दून विश्वविद्यालय के
सभागार में हुआ।
इस आयोजन में रंगमंच और लोककला विभाग दून विश्वविद्यालय ने अपना
योगदान किया है। नाटकों का मंचन आगामी 2 अप्रैल तक जारी रहेगा।
आज पहले दिन उत्तर नाटय संस्थान के अध्यक्ष एस पी ममगाई को प्रशस्ति पत्र, शाल और
11 हजार नकदी देकर सम्मानित किया गया।
वरिष्ठ रंगकर्मी एसपी ममगाई का परिचय वरिष्ठ रंगकर्मी रही श्रीमती जागृति डोभाल
ने पढ़ा। वाचन में रिहर्सल का अभाव काफी अखर गया – वरिष्ठ रंगकर्मी एसपी ममगाई के बारे में
संचालक नवनीत गैरोला भी ढंग से तैयारी नहीं कर पाए।
विश्व रंगमंच दिवस की पहली प्रस्तुति संभव मंच की लघु एकांकी
रहोगी तो तुम वही … रही।
पति – पत्नी संबंधों की व्यंग्यात्मक प्रस्तुति सुधा अरोड़ा की कहानी पर आधारित है
लेकिन एक साथ चार दंपतियों के संवाद अपना चुटीला हास्य का अहसास
कराने से दूर रहे।
पुरूष के दो चेहरे उभारने के लिए आधा चेहरा काला रंग पोत कर उभारा गया
लेकिन महिलाओं का बहुआयामी व्यक्तित्व स्पष्ट छाप नहीं छोड़ पाया।
नाटक के अंत में एक मेहमान ने आधुनिक पत्नियों के चरित्र पर संशय प्रकट किया।
अभिषेक मैंदोला की दूसरी प्रस्तुति फट जा पंचधार , विद्यासागर नौटियाल की
बहुचर्चित कहानी पर आधारित है।
नाटक के सभी मूल तत्व से समाहित कहानी – फट जा पंचधार की एकल अभिनय पर
प्रस्तुति निर्देशक की क्षमता को कमतर आंकता है।
अन्यथा विद्यासागर नौटियाल की कहानी फट जा पंचधार के सभी पात्र
साक्षात उभरते हैं।
चाहे पहाड़ की गरीब दबी कुचली, शोषित, दलित नायिका रक्खी हो या
मझधार में छोड़ने वाला नायक बीर सिंह, ठाकुर को कलंकित पथभ्रष्ट संस्कारों से
उभारने वाले संस्कार चंद्रायण और बंधुवा मजदूर बनाने के लिए नर्क में फंसे पूर्वजों को
शाप मुक्त कराता पंडित, औरतों को गुमराह कर बाजार में बेचता धर्मा या
वारिस के लिए षडयंत्र करता गांव का ठाकुर परिवार –
फट जा पंचधार कहानी के सभी पात्र विद्यासागर नौटियाल की कहानी
में सजीव हैं।
कुसुम पंत ने अपने एकल अभिनय से फट जा पंचधार नाटक को ढोया है।
एक ही रस और भाव की सृष्टि के कारण नाटक कई बार बोझिल हुआ है।
धर्मा का चरित्र निभाने में कुसुम पंत ओवर एक्टिंग में चली जाती हैं।
अब नई संस्था उत्तर नाटय संस्था से जुड़े महामंत्री रोशन धस्माना की
शिकायत है – शहर के अंदर मौजूद प्रेक्षागृहों का किराया रंगकर्मियों की
पहुंच से बाहर है।
देहरादून में नाटकों का स्तर अभी तक टिकट खरीदकर देखने लायक
नहीं हो पाया है। भले ही बाल कलाकार अधेड़ उम्र तक आ गए हैं और हर कलाकार
एक साथ कई नाटय सस्थाओं में दिख जाता है।
उत्तराखंड का संस्कृति विभाग राज्य बनने के बाद तेरह जनपदों के कलाकारों को
आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है।
नाटकों के अलावा अब फिल्म, लोकगीत, लोकनृत्य और साहित्य प्रकाशन का जिम्मा
भी सरकार में निहित है।
— भूपत सिंह बिष्ट