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मुंबई में भगवान शिव की महिमा गाती अनुपम एलिफैंटा गुफायें !

गेट वे आफ इंडिया से 10 किमी दूर अरब सागर में यात्रा कर 1500 साल पुरानी कला सभ्यता के दर्शन।

 

मुंबई में भगवान शिव की महिमा गाती अनुपम एलिफैंटा गुफायें !
गेट वे आफ इंडिया से 10 किमी दूर अरब सागर में यात्रा कर 1500 साल पुरानी कला सभ्यता के दर्शन।

भगवान शिव की अविरल महिमा गाती आधुनिक मुंबई में एलिफैंटा गुफायें भारत की प्राचीन मूर्तिकला

सभ्यता की जीती – जागती विरासत है।

त्रिमूर्ति शिव घारापुरी - फोटो भूपत सिंह बिष्ट

हजारों लोग गेट वे आफ इंडिया, पर्यटक स्थल से मोटर बोट द्वारा घारापुरी ग्राम

पंचायत में पहुंचते हैं।
यहां ऊँची चट्टानों में गुफायें उकेर कर भगवान शिव की गाथा सुनाती मूर्ति कला, हिंदू धर्म की

संपन्नता और वैभवपूर्ण संस्कृति की द्योतक है।


अरब सागर के किनारे घारापुरी  गांव की चट्टानों पर सैकड़ों साल आपस में जुड़ी दो चट्टानों में

गुफा बनाकर भगवान शिव की गाथाओं का निरूपण किया गया है।

एक चट्टान की गुफा में सुरक्षित मार्ग निर्माण के चलते प्रवेश अस्थायी तौर

पर बंद है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एलिफैंटा गुफाओं के लिए टिकट जारी करता है।

गुफा में कुछ मूर्तियां पांच मीटर तक ऊँची है। यहां विशाल शिव लिंग अराधकों में उर्जा का

संचार करते हैं।

गढ़पुरी की चट्टानों पर हाथियों की मूर्ति उकेरने से कालांतर में घारापुरी  का नाम

एलिफैंटा केवज – गुफायें कहा जाने लगा।

अब यहां हाथियों की आकृतियां कहीं दृष्टिगोचित नहीं होती हैं।

अंतर – राष्ट्रीय स्तर की कलाकृतियों के संरक्षण में मुंबई का यह प्रमुख अध्यात्मक अदभुत क्षेत्र

भारत की विभिन्न संस्थाओं के अलावा यूनेस्को विश्व विरासत के रूप में संरक्षित है।

देशी – विदेशी पर्यटकों के मध्य चट्टानों को काटकर गुफाओं में भगवान शिव की महिमा गाती

भव्य मूर्तियों के दर्शन लाभ अपूर्व सुख और शांति प्रदान करता है।

सामन्यता भगवान शिव पंचमुखी हैं – सामने से सदाशिव – तीनमुखी दिखते हैं। 

शिव प्रतिमा का बायां मुख उग्र  संहारक अघोर – भैरव , बीच में शांत संरक्षक तत्पुरुष -महादेव और

दांया मुख सृष्टि जनक  वामदेव –  उमा स्वरूप माना गया है। चौथा मुख पीछे सद्योजात और 

पांचवां अदृश्य नश्वर कहलाता है। 

इस के अतिरिक्त भगवान शिव का दरबार, नटराज, योगेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, कल्याणसुंदरमूर्ति,

गंगाधरायमूर्ति, अंधकासुरवध और अन्य कथाओं को निरूपित करती भावपूर्ण कलाकृतियां

इन गुफाओं में निहित हैं।

दूसरी सदी से पांचवी सदी तक इन गुफाओं में निर्माण कार्य हुआ है सो वैभवपूर्ण सभ्यता की

विरासत रचने में अनेक हिंदू राजाओं का सक्रिय योगदान है।
बाद में यह क्षेत्र मुगल, पुर्तगाली और अंग्रेज शासकों के अधीन भी रहा है इसलिए  कहा जा

सकता है – इस सांस्कृतिक धरोहर की उपेक्षा के कई कारण रहे हैं।

अरब सागर के किनारे अवस्थित घारापुरी मूर्ति कला मंडपम को लवण युक्त समुद्री हवाओं,

बारिश और रिसती चट्टानों ने काफी नुक्सान पहुंचाया है।

कई मूर्तियां अब अपना स्वाभाविक स्वरूप खो चुकी हैं। धस रही छतों को बचाने के लिए आलंबन

खड़े किए गए हैं। अब पांच गुफाओं में मात्र पहली गुफा ही दर्शकों को आकृष्ट कर पा रही है।

दर्शकों की भीड़ को साधने के लिए सुरक्षा गार्ड नियुक्त हैं और वे गाइड की भूमिका भी निभा

लेते हैं। घारापुरी  के स्थानीय लोग अपने मान्यता पर्व मनाने यहां पहुंचते हैं।

 

घारापुरी आने वाले प्रत्येक यात्रियों से उन्हें प्रवेश कर के रूप में अच्छी आय और पर्यटन व्यवसाय

खानपान,  विश्राम , माणिक बिक्री आदि के सभी अधिकार मिले हुए हैं।

– भूपत सिंह बिष्ट

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