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भगवान के देश केरल में तीन सौ किमी रौमांचक कार सफर !

समुद्र तट से सटे ये जनपद रिवर बैक या लैगून टूरिज्म नाम से विख्यात हैं।

 

भगवान के देश केरल में तीन सौ किमी रौमांचक कार सफर !
समुद्र तट से सटे ये जनपद रिवर बैक या लैगून टूरिज्म नाम से विख्यात हैं।

केरल को भगवान का देश भी कहा जाता है। आज भी मंदिर, चर्च और महलों में

नैसर्गिक कलाकृतियां संजोयी हुई हैं।
भगवान के देश में हिंदू मंदिर, विख्यात चर्च और मुस्लिम मस्जिदों की आस्था

हर तरफ नज़र आती है।

इस विविधता के दर्शन के लिए त्रिवेंद्रम से कार ड्राइव करते हुए आप लगभग तीन सौ किमी

का रौमांचक और सुखद सफर का लुत्फ उठा सकते है।

आधुनिक राजधानी त्रिवेंंद्रम यानि तिरूवंतपुरम से पहले कोलम जनपद को

पार कर अलिपूज़ा जनपद में प्रवेश करते हैं।
रास्ते में अंग्रेजों के बनाये गिरजाघर, पार्क और भवन वास्तुकला के नायाब स्थल हैं।

ट्रेवन कोर और कोचीन का राजघराना, अंग्रेजों का विदेशी राज और आधुनिक

मालाबार समुद्री तट पर आज भारत का आधुनिक केरल प्रांत है।

विगत पांच वर्षों में देवताओं के देश केरल में सबसे अधिक विदेशी और देशी पर्यटक

पहुंचने का रिकार्ड है और ये आंकड़ा दो करोड़ पार कर चुका है।
केरल के समुद्र तट से सटे ये जनपद रिवर बैक या लैगून के नाम से भी जाने जाते हैं।

अल्लिपूजा में श्रीनगर की डल झील की तरह शिकारा, हाउस बोट, मोटर बोट व

केनोयन पर्यटन बहुत बड़े पैमाने पर शुरु हो गया है।
कश्मीर की अशांति के कारण केरल में जल पर्यटन ने अब नया कीर्त्तिमान

बना लिया है। विदेशी पर्यटकों को यहां केनोयन करते भी देखा जा सकता है।

दो मंजिल फेरी या बड़ी मोटर बोट साठ रुपये में एक घंटे तक रिवर्स रीवर पर

एक कोने से दूसरे कोने तक लोकल पैसंजर को उतारती – चढ़ाती, पर्यटकों को

नयनाभिराम फोटोग्राफी के अवसर प्रदान करती हैं।

दोपहर केरल के सुपाच्य भोजन के बाद कोटायम जनपद में पारिवारिक मित्र के यहां

पहुँचे – आपने अपना पूरा जीवन उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग को समर्पित किया है।

उन के बेटे और बेटी देहरादून में पैदा हुए – अब इंग्लैंड में आर्थोपैडिक सर्जन और

कनाडा में हेल्थ सेवा दे रहे हैं।
भारत के लिए विदेशी मुद्रा कमाने में केरल के हर प्रवासी परिवार का

बड़ा योगदान है।

पांच बजे कोटायम से अचानक केरल की राष्ट्रीय पहचान हिल स्टेशन

मुन्नार का कार्यक्रम बन गया।
रात साढ़े आठ बजे हम मुन्नार में अपनी हाजिरी लगा चुके हैं और बेताबी से सुबह की

प्रतीक्षा में हैं — कैसा रहेगा यह मुन्नार का करिश्मा !
— भूपत सिंह बिष्ट।

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