संस्मरण : जुलाई 1986 में एक साइकिल अभियान गंगोत्री-यमुनोत्री की ओर !
भटवाड़ी से सुक्खी टाप के बीच घटाटोप अंधकार में सड़क ढूंडना मुश्किल हो रहा था।
संस्मरण : जुलाई 1986 में एक साइकिल अभियान गंगोत्री-यमुनोत्री की ओर !
भटवाड़ी से सुक्खी टाप के बीच घटाटोप अंधकार में सड़क ढूंडना मुश्किल हो रहा था।
घुप्प अंधेरे में वो सैनिक देवदूत की तरह प्रकट हुआ था और बिना किसी भूमिका के सड़क के किनारे सैनिक मंदिर में हमें भोजन और रात काटने की जगह मिल गई।
रात्रि में ठंड लगने से हिन्द भूूषण सूरी को निरंतर उलटियां होने लगी तो गश्त पर सिपाही ने हमसे पूछताछ भी की।
10 जुलाई की प्रातः सैनिकों ने हमें चाय पिलाकर विदा किया और हमारे अभियान के लिए हार्दिक शुभकामनायें दी।
सुबह का दृश्य प्रकृति की मनोरमा से भरपूर था।
सुक्खी टाप पर चढ़ाई के बाद हम फिर झाला होते हुए भागीरथी की सबसे सुन्दर घाटी हर्षिल में उतरे। जाड़ निवासियों का हर्षिल गांव सेब, आलू और लोककला के लिए आज भी चर्चित है।
अंतिम गांव थराली में राजकपूर की फिल्म राम तेरी गंगा मैली के मंदाकिनी झरने की चर्चा भी एक चाय दुकान में सुनाई दी।
एक युवा ने उत्तरकाशी मेले में यह फिल्म तेरह बार देखी – उस की शिकायत थी कि दो चार सीन छोड़कर पता नही शूटिंग कौन से इलाके की है।
भारी वर्ष के बीच हमने जांगला और कोपांग के जंगलों को पार किया और हम मुश्किलों के बीच लंका पहुंचे। भूषण सूरी की हालात पतली थी और वो कुछ खा भी नही पा रहा था।
लंका में भूषण के रुकने की व्यवस्था करके हम भैंरोंघाटी के लिए बढ़ गए।
लंका और भैंरोघाटी को जोड़ने के लिए जाह्नवी (जाड़गंगा) पर भारी यातायात के लिए रेलवे ब्रिज कारपोरेशन ने शानदार पुल निर्मित किया है।
10 किमी के सफर के बाद हमारे अभियान का पहला चरण गंगोत्री धाम में पूरा हुआ तब शाम के चार बज रहे थे।
गंगोत्री मंदिर में भजन – कीर्तिन सुने, कपड़े सुखाये अपने संस्मरण यात्रियों के साथ बांटे और संध्या आरती में भाग लेकर हम गंगा मैया के सम्मुख सुरक्षित यात्रा के लिए नत मस्तक हो गए।
11 जुलाई की सुबह हमने 36 किमी की पदयात्रा गंगोत्री – गोमुख (आना —जाना) के लिए तैयारी शुरु की।
अचानक हिन्द भूषण को अपने बीच पाकर सब को सुखद आश्चर्य हुआ। भूषण तरोताजा और जोश से लबालब था लेकिन धनबीर नेगी पांव में मोच के कारण गोमुख दर्शन से चुक गए।
गंगा मैया की यही अनुमति रही होगी। दोनों ओर की पहाडि़यों के बीच भागीरथी का स्वरुप एक किशोरी की तरह मासूम लगता है।
बांयी ओर की पंगडडी पहाड़ी तलहटी से होकर गोमुख जाती है और भारी बर्फबारी के कारण यह रास्ता हर साल बनाया जाता है।
10 किमी दूर चीड़बासा में जलपान और भोजन के लिए बस दो ही दुकान थी। यहां से एक काला भोटिया कुत्ता हमारे साथ हो लिया।
चीड़बासा से 4 किलोमीटर आगे मखमली घास का बुग्याल और भोज वृक्षों से सजा क्षेत्र भोजवासा कहलाता है। भोजबासा में लालबाबा का आश्रम और पर्यटन गृह तब मुख्य भवन थे।
भागीरथी से बादल उठने का सिलसिला बर्फिले पहाड़ों पर पहुंचकर आसमान बनाता जा रहा था।
गोमुख से दो किमी पहले बड़े बोल्डरों के बीच रास्ता ढ़ूंडना मुश्किल हो रहा था तब भोटिया कुत्ता हमारा गाइड बना और गोमुख के मुहाने तक ले गया।
भागीरथी के प्रवाह के बीच सहसा सफेद पत्थर उभरते हैं वो बर्फ के टुकड़े हैं जो ग्लेशियर से टूट कर प्रवाह में आते हैं।
गोमुख के इस अंतिम छोर में गंगा का दर्शन और गंगा जल का संग्रहण कालजयी अनुभव है। इस परिसर की अपूर्व शान्ति में एक दिव्य अध्यात्मिक अनुभूति मिलती है।
-भूपत सिंह बिष्ट