बद्रीनाथ धाम से वसुधारा की ओर !
बद्रीनाथ की माताश्री "मूर्ति माता" और पिता - वसुधारा
बद्रीनाथ धाम से वसुधारा की ओर !
बद्रीनाथ की माताश्री “मूर्ति माता”
— भूपत सिंह बिष्ट
बद्रीनाथ भगवान की माता जी का मंदिर दो किमी दूर माणा गाँव के दूसरी ओर सरस्वती और अलकनंदा संगम स्थल पर है। बद्रीनाथ की माताश्री को यहाँ मूर्ति माता के नाम से पुकारा जाता है और विधि विधान में यहाँ वसुधारा को बद्रीनाथ का पिता माना गया है।
आचार्य विनोद कोटियाल, देवप्रयाग, उत्तराखण्ड के मूल निवासी हैं और पीढ़ियों से भगवान बद्रीनाथ धाम में अपने यजमानों और यात्रियों के लिए 1978 से धार्मिक अनुष्ठान भी कराते हैं। विज्ञान और अध्यात्म का विरला समावेश गुरू विनोद कोटियाल जी की बातों में मिलता है – हिमालय में उत्तराखंड को देव भूमि साबित करने वाली श्रुत कथाओं को खोजकर आज मंदिरों के अनेक रूप स्थापित हैं।
कोटियाल जी बताते हैं कि बदरीनाथ मंदिर में ईष्ट देव की मूर्ति तो दर्शन के लिए हैं — अन्यथा हमारे वेद पुराणों में वर्णित हिमालय के शिखर, नदियां, तप्त कुँड और पुण्य देव भूमि सदियों से सब को निर्वाण देते आ रहे हैं।
आचार्य विनोद, बदरीनाथ धाम में मिलने वाली वनस्पतियों के भी जानकार हैं और युवा साधु – सन्तों के साथ अपना ज्ञान बाँटते रहते हैं। जैसे — बुखार में काम आने वाली – “चिरायता” वनस्पति में पैरासिटामोल, नन्हें बच्चों की कोमल काया को खुजली व फुंसियों में राहत देने वाली रामबाण नहाने के पानी में डाले जाने वाली सुगंधित “कुणज” की पत्तियां, पूजा की मालाओं में प्रयोग हो रही रोजगारपरक “वन तुलसी” और ग्लेशियर के करीब मिलने वाली “रूद्रवंती” से कमजोरी व थकान दूर होती है तथा इस की तासीर भी गर्म है।
कुछ पौधों की जड़ को उबाल कर खाने से भूख मिट जाती है और कंदराओं में रहने वाले साधु – संत अक्सर इन्हीं पर निर्भर हैं और ये वनस्पतियां मौसमी पौधे के रूप में पायी जाती हैं। बद्रीनाथ धाम में कपाट बंद होने के बाद छ: माह निर्जन व बर्फ का सम्राज्य रहता है।
माणा गाँव को पार करते ही भारत की अंतिम दुकान के नाम पर अब तीन जलपान की दुकान खुल चुकी हैं और सेवा के नाम पर पानी की बोतल तीस रुपये में बेची जा रही है।
माणा से सुनसान पथरीला रास्ता वसुधारा की ओर हल्की चढ़ाई लिए है। अलकनंदा के पार का रास्ता सतोपंथ की ओर जा रहा है, जबकि इस ओर दो किमी दूर बुग्याल में सैकड़ो भेड़ – बकरियाँ, घोड़े – खच्चर, आर्मी और आईटीबी के जवान अपनी एक्सरसाइज में अक्सर मिल जाते हैं।
दांयी ओर की पहाड़ियां बर्फ न होने पर नुकीली चट्टानों की तरह वनस्पति हीन हैं। ऐसी ही एक चट्टाननुमा पहाड़ी से एक प्रपात निर्झर बह रहा है — जिसकी बौछार कभी स्थिर व कभी हवा के साथ उड़कर सौ मीटर इधर – उधर दर्शकों को भीगा डालती हैं।
पुराने लोगों की मान्यता है कि वसुधारा प्रपात का जल जिसे दूर से भीगा देता है — उस पर भाग्य भी जमकर बरसता है।
– भूपत सिंह बिष्ट