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धामी और महरा का लिटमस टेस्ट होगा बागेश्वर में – दिनेश शास्त्री !

अब दूसरे उपचुनाव में धामी सरकार का लोकप्रियता ग्राफ लोकसभा - 2024 हेतु निर्णायक।

धामी और महरा का लिटमस टेस्ट होगा बागेश्वर में – दिनेश शास्त्री !

अब दूसरे उपचुनाव में धामी सरकार का लोकप्रियता ग्राफ लोकसभा – 2024 हेतु निर्णायक।

आखिरकार बागेश्वर को नया जनप्रतिनिधि मिलने का दिन मुकर्रर हो गया।
आगामी पांच सितम्बर को वहां मतदान कराया जायेगा और आठ सितम्बर को मतगणना

के बाद इस क्षेत्र को विधानसभा में प्रतिनिधित्व मिल जायेगा।


बीती 26 अप्रैल को बागेश्वर के विधायक और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास का

लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया था।
तब से बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र प्रतिनिधित्व विहीन था। इस क्षेत्र की जनता अपने प्रतिनिधि

का इंतजार कर रही थी।
अब करीब 135 दिन बाद उसे नया विधायक मिल जायेगा। निर्वाचन आयोग ने चुनाव के लिए

अधिसूचना जारी कर दी है।
इसके साथ ही राजनीतिक हलचल भी शुरू होने जा रही है।
निश्चित रूप से बागेश्वर का उपचुनाव उत्तराखंड की राजनीति के लिए

टर्निंग प्वाइंट भी हो सकता है।

जाहिर है बागेश्वर में जहां सत्तारूढ़ भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर होगी, वहीं प्रमुख विपक्षी दल

कांग्रेस के सामने खुद को साबित करने की चुनौती भी होगी।
इन दिनों आपस के झगड़े के चलते चारों खाने चित पड़ी कांग्रेस एक बार फिर संभल कर

खड़े होने की कोशिश कर रही है।
इसके लिए उसने दो माह की पदयात्रा का विस्तृत कार्यक्रम बनाया है और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के

इस यात्रा में शामिल होने की संभावना है।

 

KARAN MAHRA CONGRESS PRESIDENT UTTARAKHAND

संभव है इसी चुनाव के दौरान कांग्रेस पदयात्रा के जरिए माइलेज लेने की कोशिश करे।

यानी उसके पास पाने के लिए बहुत कुछ है।
दूसरी ओर सत्तारूढ़ भाजपा अगर एक सीट खो भी दे तो उसकी सेहत बहुत ज्यादा प्रभावित

नहीं होगी लेकिन आगामी लोक सभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के लिए इस सीट पर कब्जा

बरकरार रखना प्रतिष्ठा का सवाल है।
भाजपा के लिए बागेश्वर की पराजय उसकी लोकसभा चुनाव की संभावनाओं को प्रभावित करेगी।

जाहिर है भाजपा के पार्टी संगठन के साथ ही धामी सरकार के लिए यह उपचुनाव किसी

अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा।
वैसे हाजिरी लगाने के लिए कुछ क्षेत्रीय दल भी इस चुनाव में उतरेंगे, यह उनका अधिकार भी है

लेकिन मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होगा, यह तय है।
भाजपा इस उपचुनाव में चंदन राम दास के प्रति सहानुभूति का कार्ड खेल सकती है

DINESH SHASTRI

जबकि वह लाभ कांग्रेस के पास नहीं है।
उसे सरकार की नाकामियों को ही मुद्दा बनाना होगा। अंकिता हत्याकांड, बेरोजगारों का उत्पीड़न,

अग्निवीर का विरोध, महंगाई जैसे स्थाई मुद्दों को लेकर वह जनता के बीच जाएगी लेकिन वस्तुत

यह चुनाव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन महरा के लिए लिटमस टेस्ट है।

महरा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश में यह दूसरा उपचुनाव है।
पहला उपचुनाव चंपावत का था जहां कांग्रेस की उम्मीदवार निर्मला गहतोड़ी को अकेला सा

छोड़ दिया गया था।
वैसे भी उस उपचुनाव को लड़ना एक औपचारिकता थी क्योंकि जब खुद मुख्यमंत्री

चुनाव मैदान में हो तो वहां हार जीत का निर्णय नामांकन के साथ ही हो जाता है।

अपवाद छोड़ दें तो कोई भी मुख्यमंत्री उपचुनाव नहीं हारा है। इस लिहाज से चंपावत और बागेश्वर

की तुलना नहीं की जा सकती।
बागेश्वर सुरक्षित सीट है और कांग्रेस के पास दलित चेहरों की वैसे कोई कमी नहीं है।

इसके बावजूद खांचों में बंटी कांग्रेस चुनाव के मोर्चे पर एक रह सकेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।

दो साल पहले सल्ट विधानसभा उपचुनाव जो सुरेंद्र सिंह जीना के निधन के कारण हुआ था,

वहां तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस एकजुटता नहीं दिखा पाई थी किंतु इस समय

पूरा परिदृश्य बदला हुआ है।
इस लिहाज से बागेश्वर का उपचुनाव बेहद दिलचस्प होने की संभावना है।
पदचिह्न टाइम्स।

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