बामियान का नरसंहार खून नही ! चट्टाने टूट कर धरती पर बिखरीं , तथागत की ऊंचाई खड़ी रही…
समाज में विघटन और संहार आसान है - मुश्किल है तो सृजन उन सैकड़ों साल की सांस्कृतिक विरासत का, जो मनचले अपने अहंकार में रोज उजाड़ रहे हैं - सामाजिक चिंतक हेम गैरोला।
बामियान का नरसंहार खून नही !
चट्टाने टूट कर धरती पर बिखरीं , तथागत की ऊंचाई खड़ी रही…
समाज में विघटन और संहार आसान है – मुश्किल है तो सृजन उन सैकड़ों साल की सांस्कृतिक विरासत का, जो मनचले अपने अहंकार में रोज उजाड़ रहे हैं – सामाजिक चिंतक हेम गैरोला।
इंसानी हाथ की एक उंगली में गिनती के लिए बनी रेखाओं तक ही सिमटी है जीवन मे महसूस किए उन भयावह पलों की संख्या….जिन्होंने भीतर जमीन से आसमान तक लहूलुहान कर दिया था…..पर 29 मार्च,2001 का वो प्रहार फिर से चीत्कार करवा गया !
बुद्ध, कनिष्क और कुषाण काल – त्याग,सेवा,सादगी और राजधम्म के सम्मिश्रण का अवधि-खण्ड….प्राचीन भारतीय इतिहास व संस्कृति का मेरा सर्वप्रिय ‘डेस्टिनेशन’।
……स्मृति के पन्ने फड़फड़ा कर गीले हो गए।
उस दिन कागज पर बिखरे ये शब्द विद्यार्थी से परिवर्तित हुए एक शिष्य के हैं – दिल से निकल गए थे।
बामियान का नरसंहार
खून नही –
चट्टाने टूट कर धरती पर बिखरीं
तथागत की ऊंचाई खड़ी रही….
– तोप के गोलों के निशानों से उभरी इबारत
बारूद से लिख दी गई
महानिर्वाण के बाद भी –
फिर एक बार
हत्या का दुस्साहस हुआ
करुणाद की आंधी
गान्धार के शिल्पी के दरवाजे में बाहर
हौले से दस्तक करती है –
मानव
आज फिर परास्त हुआ….
महामानव इस बार भी नही पिघला !
– हेम गैरोला।