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बिजली महादेव मथान – कुल्लू हिमाचलकी अनुपम शिव गाथा !

जब शिवलिंग पर बरसती है - आकाशीय बिजली तो स्थानीय लोग देव कृपा मानते हैं।

बिजली महादेव मथान – कुल्लू , हिमाचल की अनुपम शिव गाथा !
जब शिवलिंग पर बरसती है – आकाशीय बिजली तो स्थानीय लोग देव कृपा मानते हैं।

हिमाचल प्रदेश की दिव्यता और भव्यता में कुल्लू मनाली चार चांद लगाते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब कुल्लू जनपद अपनी विशिष्ट लोक संस्कृति के लिए

विश्व विख्यात है।


कुल्लू दशहरा मेला, कुल्लू शाल और टोपी कढ़ाई – बुनाई में, ब्यास नदी, सनातन मंदिरों

और गुरूद्वारों की अध्यात्मिक महता सब का मन मोह रहे हैं।

चंडीगढ़ से छह घंटे की दूरी पर स्थित कुल्लू में एक छोटा हवाई अड्डा भुंतर में स्थापित हैं और

यहां के लिए रोजाना दिल्ली से उड़ान भरी जाती है।

 


मंडी से दो घंटे की दूरी पर कुल्लू जिले की समृद्धता में होटल, रेस्ट्रां, कैंपिंग

पर्यटन उद्योग – मनाली, केलोंग को जोड़ती अटल टनल, रोहतांग दर्रा, ट्रेकिंग, ट्रांसपोर्ट,

राफ्टिंग और पैरा ग्लाइडिंग, मणिकर्ण गुरूद्वारा, कृषि, फल उद्यान,

देवताओं की घाटी – पर्वत, लोकगीत – संगीत से हिमाचल प्रदेश को

सुगम लोकप्रिय डेस्टीनेशन बनाये हुए हैं।

कुल्लू के स्थानीय देवी – देवता हर गांव, देहात, घाटी और पर्वत पर

अपना डेरा डाले हैं।
कुल्लू नगर के करीब कल – कल बहती ब्यास नदी के बांयी ओर की पर्वत श्रंखला में

बिजली महादेव का अनुपम मंदिर है।

कुल्लू बस अड्डे से आठ बजे प्रात: से बिजली महादेव के लिए हिमाचल रोड़वेज और

प्राइवेट बस सेवा मिलनी शुरू होती है। किराया 40- रूपये प्रति टिकट है।

चनसारी गांव तक 14 किमी की बस यात्रा तंग मार्ग पर कई गांवों को

पार कर पहुंचती है।
कहने को तो मथाण के बिजली महादेव दर्जन भर गांव के ईष्ट देव हैं तथा इन का

अधिकार क्षेत्र कुल्लू नगर में बहती ब्यास नदी तक विस्तारित है।

बिजली महादेव की अनोखी कहानी जानकर कुल्लू पहुंचने वाले देशी – विदेशी

पर्यटक शिव दर्शन को पहुंचते हैं।
प्राइवेट गाड़िया चनसारी गांव के ऊपर तक पहुंचती हैं और तब 3 किमी की पदयात्रा

दो किमी रह जाती है।
पूरे मार्ग में खानपान और रूकने की भरपूर व्यवस्था है। चनसारी गांव की सीमा समाप्त

होते ही वन विभाग का क्षेत्र शुरू हो जाता है। वन विभाग की लापरवाही से पेड़ों का कटान

अस्थायी दुकान बनाने में हो रहा है।

जहां गांव में सेब, नाशपाती, अनार, आड़ू के फलदार पेड़ों की भरमार है। साथ ही

तमाम अनाज, सब्जियां, भांग और फूलों की खेती पर्याप्त पानी की उपलब्धता के

कारण संभव है।
कृषि, बागवानी और टूरिज्म कुल्लू की आर्थिक संपन्नता में समाहित हैं।

चनसारी गांव के बाद बिजली महादेव की ओर लगभग तीन घंटे की ट्रेकिंग चीड़ और

देवदार जंगलों के बीच काफी शकून भरी रहती है।
सीढ़ीदार मार्ग पुराने केदारनाथ मार्ग की याद ताजा कर देता है। चीड़ के पेड़ों पर

कोन की भरमार मृदा – मिट्टी की उपजाऊ क्षमता का संकेत करती है।

देवदार वृक्षों की श्रृंखला समाप्त होते ही विस्तृत सुंदर हरित बुग्याल में

बिजली महादेव मंदिर के पहले दर्शन होते हैं।
बिजली महादेव का परिसर प्राचीन चरागाह लगता है। दुधारू पशुओं, घोड़े – खच्चर

और बकरियों के लिए पानी संग्रहण हेतु चाल है।

हरित बुग्याल के चारों ओर बर्फीले हिम शिखर पीर पंजाल की श्रृंखला, कुल्लू शहर ,

ब्यास नदी के तट पर बसे नगर, जंगल और घाटी के मनमोहक नजारे फैले हैं।

कुल्लू शहर के शिखर पर स्थित बिजली महादेव मंदिर, नेपाल में पोखड़ा सारंगकोट जैसा

अहसास कराता है। हिमाचल सरकार भी यहां सारंगकोट की तरह रोप – वे स्थापित कर

टूरिस्ट आवाजाही बढ़ाना चाहती है।

फिलहाल बिजली महादेव और स्थानीय मानस रोप वे के पक्ष में नहीं हैं।

बिजली महादेव मंदिर पूरा काष्ठ से बना है। मंदिर के सामने कुछ प्राचीन पत्थर की

अस्पष्ट मूर्तियां बनी है। जिन्हें नंदी और अन्य गण कह सकते हैं।
मंदिर के आगे ऊंची काष्ठ पताका है।

TEMPLE AKHARA BAZAR KULLU

मान्यता है कि शिव इस पवित्र स्थान पर तपस्या में लीन हैं। इस क्षेत्र में वर्षा और

आपदा  नियंत्रण के लिए शिवलिंग आकाशीय बिजली का कहर स्वयं में

समाहित करता है।

बिजली शिवलिंग को खंडित करती है – तब पुजारी मक्खन और प्राचीन विद्या से

शिवलिंग को फिर से दुरूस्त कर लेते हैं।

भगवान शिव प्राकृतिक आपदा जैसे कहर बिजली को आत्मसात कर अपने

स्थानीय भक्तों की रक्षा करते हैं। शिवलिंग पर मक्खन और उबटन का लेप

करने की परंपरा है।

मंदिर में धर्मशाला, पेयजल और बुग्याल परिसर में पर्यटकों के लिए छोटे टैंट में

रूकने, खाने पीने की व्यवस्था है।

बिजली महादेव मंदिर की प्रबंध व्यवस्था में आसपास के गांव वालों ने कमेटी

बनायी है। दशहरे से पहले यहां एक सप्ताह का मेला आयोजित होता है। जिस में

देवताओं की डोलियां शामिल होती हैं।

बिजली महादेव से चनसारी गांव उतरने में एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है

और 5 बजे आखिरी बस कुल्लू शहर के लिए मिल जाती है।

– भूपत सिंह बिष्ट, स्वतंत्र पत्रकार।

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