यूपी हारे तो हस्तिनापुर भी नहीं बचेगा !
किसान आंदोलन की चुभन, नए सीएम चेहरे, मीडिया प्रोपेगंडा और एकजुट होता विपक्ष।
यूपी हारे तो हस्तिनापुर भी नहीं बचेगा !
किसान आंदोलन की चुभन, नए सीएम चेहरे, मीडिया प्रोपेगंडा और एकजुट होता विपक्ष।
लखीमपुर खीरी कांड – किसानों को कुचलती बद दिमाग नेता की गाड़ियों ने पूरे देश में उबाल ला दिया है, ऐसे वीडियो हर तरफ वायरल हैं और पुलिस की सुस्ती पर आम जनमानस में कानूनी राज पूर्वाग्रही और पार्टी माफिक दिख रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने पर यूपी पुलिस कुछ सक्रिय होकर धरपकड़ करती है – अन्यथा पहले जो खवबरें एक वर्ग को टारगेट करती रही, अब समाज के हर वर्ग की पीड़ा बयान करने लगी हैं। गोरखपुर में कानपुर बिजनेसमैन के हत्यारोपी पुलिसवाले दस दिन से फरार चल रहे हैं।
आपातकाल 1975 के बाद इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गई लेकिन कुछ बड़बोले नेताओं ने रोजाना इंदिरा गांधी की निंदा की मुहिम चलाकर, शाह जांच आयोग की खबरें सुर्खियां बनवाकर और इंदिरा गांधी को कुछ दिन जेल की हवा खिलाकर — भले ही कुछ समय के लिए अपना दिल ठंडा कर लिया लेकिन यह सब इंदिरा गांधी को 1979 में फिर सत्ता में वापस ले आया।
1977 की जनता पार्टी का इंदिरा विरोधी महल ताश के पत्तों की तरह ढह गया।
कांग्रेस जो इनदिनों उत्तर भारत में हासिये पर है। पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड और यूपी में धड़ों में बंटी है – अचानक कांग्रेस अपनी महामंत्री प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी से चार्ज हो गई है।
कांग्रेस ने पीलीभीत किसानों की सहानुभूति के नाम पर अपना नाम और कैडर फिर से जीवित कर लिया है। पंजाब, छतीसगढ़ और राजस्थान की कांग्रेस सरकारें पीलीभीत मार्च करती नज़र आ रही हैं और पचास- पचास लाख की अनुग्रह राशि मृतक किसान परिवारों को देकर पंजाब, यूपी, उत्तराखंड , हिमाचल और कर्नाटक तक में सियासी लाभ उठाने जा रही हैं।
कांग्रेस की कलह को प्रियंका गांधी की हिरासत ने पीछे धकेल दिया है।
यूपी के एक मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह को प्रियंका व राहुल गांधी उछलते नज़र आते हैं।
राजस्थान में भाजपा की हार का एक कारण वसुंधरा राजे सिंधिया का केंद्र से मनमुटाव रहा है। कर्नाटक में भाजपा को सत्ता में लाने , हटाने, लाने वाले मुख्यमंत्री बीएस यदुरप्पा रहे हैं।
असम में भाजपा सीएम हेमंत बिश्व शर्मा कभी धुर कांग्रेसी रह चुके हैं और आज संघ सर्किल में पूर्णता स्वीकार्य भी नहीं है।
बंगाल में भाजपा लाख यत्न के बाद सफलता हासिल नहीं कर सकी और दो बार के भाजपा सांसद और पूर्व मंत्री बाबुल सुप्रीयो तथा कई दलबदलू टीएमसी नेता फिर ममता बनर्जी की शरण में लौटे हैं।
बिहार में लालू यादव का बेटा तेजस्वी यादव आरजेडी नेता के रूप में बीजेपी के लिए चुनौती है और बिहार में दल बदल थामने के लिए बीजेपी ने तीसरे स्थान पर आए नीतिश कुमार को मजबूरन सीएम पद पर बैठाया है।
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल तीन बार से बीजेपी व कांग्रेस को हराते चले आ रहे हैं और अब पंजाब, गोवा, गुजरात, उत्तराखंड व यूपी जैसे दूसरे प्रदेशों में पांव फैलाने के इच्छुक हैं।
एक बात तो अब साफ होती जा रही है कि मीडिया प्रोपेगेंडा के अलावा, घोषणाओं की डिलवरी, लोकल नेता की जनता में पकड़ और शासन – प्रशासन का लचीलापन बहु जरूरी है।
सभी उद्योगों का निजीकरण सरकार की आर्थिक स्थिति को कमजोर साबित करता है और एक साथ सभी क्षेत्रों को प्राइवेट या विशेष ग्रुप को सौंपना पोलिटिकल सही निर्णय नहीं है।
कृषि कानूनों को समय रहते वापस लेकर बीजेपी, देश के सत्तर फीसदी किसान परिवेश में अपनी छवि सुधार सकती है।
– भूपत सिंह बिष्ट