हिमालयी कुम्भ राजराजेश्वरी नंदादेवी राजजात 2014 यात्रा वृतांत!
सुभाष मझखोला की डायरी - बारह साल बाद होने वाली उत्तराखंड की अद्वितीय पदयात्रा के संस्मरण !
हिमालयी कुम्भ राजराजेश्वरी नंदादेवी राजजात 2014 यात्रा वृतांत!
सुभाष मझखोला की डायरी – बारह साल बाद होने वाली उत्तराखंड की अद्वितीय पदयात्रा के संस्मरण !
उत्तराखंड अपने नैसर्गिक सौंदर्य, गंगा यमुना के उद्गम स्रोत, निर्मल कुंडों, बर्फीले पर्वतों और घाटियों
के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है l
ऐसी एक दुर्लभ धार्मिक,रोमांचक सांस्कृतिक, साहसिक और ऐतिहासिक आयोजन के लिए विश्व भर के
यात्री बारह साल तक प्रतीक्षा करते हैं।
गढ़वाल हिमालय में शिव के वास त्रिशूल पर्वत श्रंखला में आयोजित महाकुंभ ‘नंदा राज जात यात्रा ‘ कहलाता है।
इतिहासकारो के अनुसार गढ़वाल नरेश ( जिनकी राजधानी चान्दपुर गढ़ी के नाम से विख्यात थी ) ने
सातवीं शताब्दी मे अपने राजपुरोहितों की सलाह पर प्रजा कल्याण में राजजात यात्रा शुरू करवाई है l
मान्यता यह भी है की माँ नंदा अपने मायके नौटी गढ़वाल से हिम शिखरों को पारकर ससुराल
कैलाश पर्वत के लिए प्रस्थान करती हैं l
माँ नंदा के अनेक नाम हैं – माँ पार्वती, राज राजेश्वरी, भ्रामरी देवी, उमा देवी आदि l
नंदा राजजात विश्व की सबसे बड़ी धार्मिक पैदल यात्रा है, जो लगभग 280 किमी का सफर तय करती है l
इस रास्ते में 19 – 20 पड़ाव पड़ते हैं l 12 पड़ाव आबादी क्षेत्र में और शेष आठ पड़ाव के लिए निर्जन – दुर्गम
जंगलो नदियों, गाड़ गधेरों आदि से होकर गुजरते हैं l
आबादी वाला आखिरी पड़ाव बाण गांव है – बाण गांव से यात्रा एकजुट होकर माँ नंदा के ससुराल यानि
कैलाश क्षेत्र में नंदा पर्वत की ओर बढ़ती है l
मेरी दिवंगत माताजी की भीनंदा देवी में अगाध श्रद्धा रही है और बाल्यकाल से ही मैं उनके मुख से हर सुख -दुःख
की घड़ी में माँ नंदा के ही नाम की स्तुति सुनता रहा।
मेरे बालपन से तब स्वतः ही माँ नंदा के प्रति आकर्षण एवं अगाध श्रद्धा बन गयी।
इस राज जात मे चौसिंघीया खाडू (चार सिंग वाली भेड़) यात्रा की अगुवाई करता है – ये कहानी वर्षों से सुनते आ रहे थे।
इस रहस्य और रोमांच की यात्रा में भाग लेने का सुअवसर वर्षों से ताकता रहता था। आखिर वो पल भी मिल गया
जब वर्ष 2014 की यात्रा में प्रवेश पाने की मेरी हार्दिक इच्छा पूरी हुई।
साल 2014 की यात्रा 18 अगस्त से प्रारम्भ होनी थी – देवयोग से ये मेरा जन्मवार का दिन था।
मै बैंक में अपने कार्य मे व्यस्त था कि अचानक मेरे बैंक में घनिष्ठ सहयोगी एवं मित्र भूपत सिंह बिष्ट जी
(जो बैंक सेवा छोड़कर वर्तमान में वरिष्ठ पत्रकार हैं) का पदार्पण हुआ l
इधर – उधर की चर्चा के पश्चात उन्होने राजजात यात्रा में अपने शामिल होने की जानकारी दी
और मुझे भी निमंत्रण दिया।
मित्र का अनुरोध मेरे लिए माँ नंदा का आदेश हुआ – मेरे मन की मुराद माँ ने बैठे – बिठाये उनके मुँह से
सुना दी थी सो तुरंत उनके साथ जाने की हामी भी मैंने व्यक्त कर दी l
मेरे पतले दुबले शरीर को देखकर मित्र को आशंका थी कि कहीं मार्ग मे मेरी तबियत ने
साथ नहीं दिया तो तब क्या होगा ?
मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि माँ नंदा का आदेश और कृपा से यात्रा बिना विघ्न संपन्न होगी l
तब कभी मुझे पेट रोग से अक्सर नर्सिंग होम में भरती होने की नौबत पड़ जाती थी।
माँ नंदा का नाम लेकर 26 अगस्त को हम दोनों पौड़ी के लिए कार में प्रस्थान कर गए l
रात्रि विश्राम एवं भोजन पौड़ी में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केसर सिंह जी के सौजन्य से हासिल हुआ।
अगली सुबह चाय नाश्ता लेकर हमने आगे यात्रा का शुभारम्भ किया।
हमारी कुलदेवी माँ उफ़राई ( माँ नंदा की बहन हैं और जिनका एक छोटा सा मंदिर हम सब कुटुंबजन
के सहयोग से डोभ श्रीकोट से आधा किमी नीचे ग्राम गडवागाड में निर्मित है ) का मन ही मन स्मरण कर
आशीर्वाद लिया और आगे की यात्रा की ओर कूच कर गये l
माँ उफ़राई से यात्रा को सफल बनाने की कामना के साथ संसार की इस अद्भुत रहस्य और रोमांचक यात्रा
मे भाग लेने की आस बढ़ती गयी।
बिष्ट जी की कार में यात्रा का सामान जैसे तम्बू, स्लीपिंग बैग, सूखे मेवे और जलपान आदि पिछली सीट में भरा था।
हर्ष, उत्सुकता और जोश समेटे हुए हम आराम से नंद केशरी पड़ाव पहुँच गये।
आज सांय नंद केशरी में माँ नंदा की सजी डोली,रिंगाल की सजी हुई छँटोली (छाता)चौसिंघिया खाडू
(चार सींग वाला मेढा जो माँ नंदा के मायके वाले क्षेत्र मे मनौती के पश्चात जन्म लेता है ) की अगुवाई में
चोपड्यों से पहुंचने वाला था।
हम भी सभी श्रद्धालुओं के साथ उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे l
नंद केशरी राज जात यात्रा का नौवा पड़ाव था और हमारा पहला !
नंद केशरी पड़ाव पिंडर नदी के किनारे उत्तर पूर्व की ओर स्थित है।
आज यहाँ पर कुमाऊं अल्मोड़ा की नंदा देवी, करुड़ की राज राजेश्वरी और डंगोली की भ्रामरी देवी की डोलिया
और निशाण(चिन्ह) का संगम शिव श्री नंदा मंदिर मे होने वाला था।
नंद केशरी में उमड़ा अपूर्व जन सैलाब देखकर आँखे फटी की फटी रह गई।
पहाड़ो में ऐसी भीड़ बहुत कम देखने को मिलती हैं क्योंकि पलायन के कारण पहाड़ लगभग जनविहीन
हो चुके हैं।
देश विदेश से जमा हज़ारों धर्मावलम्बियो का जुटा जनसमूह चक्षुओ में चल चित्र की भांति आज भी मस्तिष्क
मे तैरते रहते हैं और ह्रदय में एक न भूलने वाली छाप छोड़ गये हैं l आज भी नंदा राजजात के दृश्य आँखों के
सामने जस का तस हैं l
उत्तराखंड की मातृ शक्ति के प्रति ये अद्भुत समर्पण आश्चर्य चकित करता है – ये प्रमाणित करता है कि
उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में मातृशक्ति का अभूतपूर्व बलिदान और योगदान है l
हमने नंद केशरी में अपनी कार एक सुरक्षित स्थान में खड़ी कर दी और राज जात के पहुँचने से पहले
रात्रि विश्राम के लिए जगह ढूंढ़ने निकल पड़े।
समीप ही एक स्कूल के भवन में दरी आदि बिछि देख रात में वहीँ रहने का निश्चय कर लिया l
क्योंकि तम्बू में रात बिताने से तो वही भवन उचित लगा l वापिस एक जगह पर आकर सडक किनारे खड़े
वाहनों की छत पर पहुँचकर जात की प्रतीक्षा करने लगे l
थोड़ी ही देर में भिन्न भिन्न दिशाओं से देवी के निशाण, डोली और रिंगाल की छँटोली और नौट्टी गांव से
आभूषण, गहनों एवं चूड़ियों से सजा संवरा चौसिंगा खाडू भारी सुरक्षा के बीच एक झलक में दिखाई दिया।
क्रमश:
— सुभाष मझखोला,
(पूर्व प्रबंधक पंजाब नैशनल बैंक)