लोक साहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली की कृतियों का लोकार्पण !
दून पुस्तकालय एवं शोध संस्थान ने पेटशाली के लोकगाथा नाटक और चार साहित्यिक रचनाओं पर विस्तृत विमर्श भी किया।
लोक साहित्यकार जुगल किशोर पेटशाली की कृतियों का लोकार्पण !
दून पुस्तकालय एवं शोध संस्थान ने पेटशाली के लोकगाथा नाटक और चार साहित्यिक रचनाओं पर विस्तृत विमर्श भी किया।
दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र की ओर से लोक संस्कृतिविद् जुगल किशोर पेटशाली की
कुमाऊं की लोकगाथाओं पर आधारित पुस्तक ‘मेरे नाटक‘ तथा चार अन्य पुस्तकें “जी रया जागि रया”
“विभूति योग”, “गंगनाथ-गीतावली” और ‘हे राम‘ का लोकार्पण किया।
पेटशाली की रचनाधर्मिता पर विमर्श का एक कार्यक्रम उत्तरांचल प्रेस के सभागार में आयोजित किया गया।
मुख्य अतिथि वक्ता लेखक और पत्रकार नवीन बिष्ट रहे।
उन्होंने जुगल किशोर पेटशाली द्वारा उत्तराखण्ड की लोकगाथाओं और संस्कृति पर किये गये
कामों का विश्लेषण किया। उन्हें पहाड़ की माटी से उपजा लोककर्मी बताया।
पेटशाली लोक साहित्य के ऐसे रचनाकार हैं जिनकी लेखनी सतत हमारी लोक संपदा को
संजोने का काम कर रही है।
पेटशाली पौराणिक व लोक संस्कृति के ऐसे अनछुए तत्थों को सामने लाने का बीड़ा उठाते हैं,
जिससे समाज अनभिज्ञ सा रहता है।
साहित्यकार मुकेश नौटियाल ने बताया जुगल किशोर पेटशाली, अल्मोड़ा के निकट अपने संग्रहालय में
रहकर लोक साहित्य पर कई किताबें लिखी हैं। वर्तमान में लोक-गीतों और लोक-संगीत के नाम पर
परोसी जा रही सतही प्रस्तुतियों के बीच पेटशाली जैसे गंभीर अध्येता एक नई उम्मीद जगाता है।
उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति के मूल ढोल-दमाऊं के परम्परागत सुर भी लोक से गायब होने लगे हैं ।
डॉ. योगेश धस्माना ने जुगल किशोर पेटशाली जी को पर्वतीय लोक के अद्भुत चितेरे की संज्ञा प्रदान की।
उन्होंने दूरदर्शन की ओर से प्रस्तुत राजुला मालूशाही धारावाहिक व अन्य महत्वपूर्ण नाटकों के लिए पटकथा लिखी
और बहुत से नाटकों का निर्देशन भी किया है।
अल्मोड़ा शहर में लोक संग्रहालय स्थापित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव इन्दु कुमार पांडे जी ने की।
कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र के सलाहकार प्रो. बी.के.जोशी ने मंचासीन अतिथियों और
सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया।
इस संस्थान की ओर से पाठकों और साहित्य प्रेमियों के मध्य पुस्तकालयी संस्कृति को
बढ़ाने की दृष्टि से पुस्तक लोकार्पण और अन्य साहित्यिक कार्यक्रमों को समय-समय पर किये जाते रहते हैं।
जुगल किशोर पेटशाली ने अपने उद्बोधन में वर्तमान समय में लोक संस्कृति में स्थापित
मूल्यों की गिरावट पर चिंता जाहिर की।
समाज और सरकार से इस दिशा मेें समुचित ध्यान देनकर इसे फिर से समृद्ध करने पर जोर दिया।
लोक साहित्य और पुस्तकालीय संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु इस प्रकार के आयोजन के लिए उन्होंने
दून पुस्तकालय एवम् शोध केंद्र को साधुवाद दिया।
कार्यक्रम का संचालन संस्थान के प्रोग्राम एसोसिएट, चन्द्रशेखर तिवारी ने किया।
लोकार्पण कार्यक्रम में देहरादून के अनेक गणमान्य लोग, साहित्यकार, बुद्धजीवी, पत्रकार, साहित्य प्रेमी तथा पुस्तकालय के सदस्यगण व युवा पाठक उपस्थित रहे।
पदचिह्न टाइम्स।