देहरादून शहर ने दिए हर युग में नामचीन हिंदी साहित्य सेवी !
बासमती, लीची, चाय, चूना और रेशम ही नहीं कवियों और लेखकों की पैदावार भी होती है - दून घाटी में ।
देहरादून शहर ने दिए हर युग में नामचीन हिंदी साहित्य सेवी !
बासमती, लीची, चाय, चूना और रेशम ही नहीं कवियों और लेखकों की पैदावार भी होती है – दून घाटी में ।
यह चित्र कई मामलों में अनमोल है – पहला यही कि उत्तराखंड में छात्राओं के सबसे बड़े शिक्षा संस्थान महादेवी कन्या पाठशाला डिग्री कालेज, देहरादून का है।
दूसरा साहित्य के तीन मनीषियों का एक साथ संयोजन अपूर्व उत्सव – सभी विद्वत जन राष्ट्रभाषा हिंदी साहित्य को विश्व फलक तक पहुँचाने में देहरादून की आन, बान, शान रहे हैं।
चित्र में बांये से दांये मेरी सहकर्मी रेणुका भट्ट, डा पंजाबी लाल शर्मा, उत्तर भारत में प्रमुख डीएवी डिग्री कालेज,देहरादून के हिंदी विभागाध्यक्ष, डा कुसुम चतुर्वेदी, प्रख्यात कहानी लेखिका( मेरी मानस माँ ) व हिंदी विभागाध्यक्ष, महादेवी डिग्री कालेज, देहरादून एवं डा गिरिजा शंकर त्रिवेदी !
डा त्रिवेदी अखिल भारतीय हिंदी कवि सम्मेलनों में लब्ध प्रतिष्ठित संचालक कवि तथा संस्कृत विभागाध्यक्ष, डीएवी कालेज देहरादून के प्रोफेसर और पत्रकार रहे हैं।
ये अवसर — हिंदी दिवस पर युवा हस्ताक्षरों की कवि गोष्ठी का है ।
डा गिरिजा शंकर त्रिवेदी और डा कुसुम चतुर्वेदी जी से जीवन का स्नेह बंधन अब अटूट और अभिन्न है।
दून घाटी में बासमती, लीची, चाय, चूना और रेशम ही नहीं कवियों और लेखकों की पैदावार भी होती है। भले ही अब मोबाइल और प्रदूषण ने शहर का मिज़ाज बदला है।
साहित्य का शौक और रचनाधर्मिता अभी कम नहीं हुई है।
मेरा परम सौभाग्य, देहरादून के इन नामचीन साहित्यकारों की स्नेहिल छाया में मेरी परवरिश हुई है।
— भूपत सिंह बिष्ट