ईजी मनी – एप लोन में लुटते युवा और खामोश आरबीआई !
37% ब्याज, एक दिन ईएमआई की चूक पर चुकाने हैं पांचसौ प्लस जीएसटी?
ईजी मनी – एप लोन में लुटते युवा और खामोश आरबीआई !
37% ब्याज, एक दिन ईएमआई की चूक पर चुकाने हैं पांचसौ प्लस जीएसटी?
बैंक और एनबीएफसी (नान बैंकिंग फायनेंस कंपनी) मोबाइल पर धड़ल्ले से आन लाइन ग्राहकों को एप लोन बांट रही हैं और ब्याज दर 37% तक वसूला जा रहा है।
अब बैंक और एनबीएफसी आम जनता और युवाओं को “ईजी मनी” के नाम पर ठग रही हैं और आरबीआई व वित्त मंत्रालय इस हेराफेरी से नज़रे चुरा रहा है।
कोरोना मंदीकाल में क्रेडिट कार्ड की बकाया राशि को जम्बो लोन में बदलकर 24 प्रतिशत तक ब्याज वसूला जा रहा है। अगर कोई राशि का एक मुश्त भुगतान करना चाहता है तो ये फाइनेंस कंपनिया 3- 4 प्रतिशत पूर्व भुगतान चार्जेज भी बेशर्म होकर वसूल रही हैं और यह सब रिजर्व बैंक आफ इंडिया के सामने चल रहा है।
आन लाइन लोन की किश्त ना चुकाने पर जुर्माने की रकम पांच सौ मासिक से ज्यादा वसूली जा रही है और इस प्रकार के उपभोग ऋण पर रिजर्व बैंक अंकुश रखने में असफल है।
भारत के अधिकांश महानगरों विशेषकर दक्षिण भारत में आनलाइन लोन ना चुका पाने पर बेरोजगार युवाओं द्वारा आत्महत्या करने के मामले बढ़ते जा रहे हैं क्योंकि आनलाइन लोन बांटने वाले वसूली के लिए गुंडागर्दी की सभी सीमायें लांघ रहे हैं।
बैंकिंग और इंश्योरेंस सेक्टर पर जीएसटी दर 18 प्रतिशत !
फिलहाल इंश्योरेंस सेक्टर हर उत्पाद पर 18 प्रतिशत जीएसटी वसूल रहे हैं। हर पालिसी पर चाहे वो जीवन बीमा, मेडिक्लेम या अनिवार्य कैटेगरी की है – जीएसटी 18% की उच्च दर से चुकाना है।
बैंकिंग उद्योग भी अपने गरीब और अमीर ग्राहकों पर एक समान 18 प्रतिशत जीएसटी लगा रहा है। जबकि सरकार मध्यम आय वर्ग को निश्चित सीमा तक जीएसटी में छूट दे सकती हैं और बैंक से लाभ कमाने वाले बड़े -बड़े बिजनेसमैन से जीएसटी चार्ज कर सकती है।
सीमित एटीएम ट्रांजेक्शन के बाद नकदी निकासी पर जनता को’ भारी शुल्क चुकाना पड़ रहा है।
बैंक बचतखाते की जमा में तीन प्रतिशत के आसपास ब्याज दे रहे हैं। औसतन दस हजार मासिक का मिनिमम बैलेंस रखने पर महज तीन – चार सौ का वार्षिक ब्याज बैंक से मिलता है लेकिन बैंक चार्जेज 600- प्रतिमाह यानि 7200- वार्षिक वसूले जा रहे हैं।
समय आ गया है – अब पेट्रोल – डीजल- गैस पर केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी टैक्स दरें घटाकर राहत देनी होगी।
पेट्रोल – डीजल सौ के पार !
उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और चुनाव आयोग जल्दी ही आचार संहिता भी घोषित करने वाला है – फिर तो महंगाई का शिकवा शिकायत नई सरकार से होगा।
हैरत की बात है कि बीजेपी ने कभी महंगाई को चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर डाला था। तब पेट्रोल – डीजल व सब्जी के बढ़ते दामों पर बीजेपी के हर बड़े नेता ने सड़कों पर हाजिरी लगायी है।
रोड़ टैक्स से ज्यादा भुगतान अब टोल टैक्स और फास्ट टैग वैल्ट के लिए चुकाना पड़ रहा है। विगत सात वर्षों से पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम ही नहीं, डालर के मुकाबले रूपये की निम्न दर, एफडी ब्याज रेट में कमी से वरिष्ठ नागरिकों व निवेशकों की मुश्किलें, रेल किराया, सिनीयर सिटीजन और तमाम राहतों की वापसी, बेरोजगारी और महंगी जीएसटी दर आदि विसंगतियां वित्तिय व्यवस्था में कमी जाहिर कर रहे हैं।
स्वरोजगार और आत्मनिर्भर युवा के लिए जीएसटी पैकेज में सुधार की जरूरत है। सत्ता परिवर्तन में आम जनता को आर्थिक लाभ होना आवश्यक है। टैक्स बोझ से बढ़ती महंगाई को थामना जरूरी है – अन्यथा श्री राम मंदिर की उपलब्धि तो है लेकिन आर्थिक मजबूरी चुनावी गणित को असफल कर सकती हैं।
– भूपत सिंह बिष्ट।