हरीश रावत की पीड़ा दूरदर्शन में अब भाजपादर्शन !
चुनाव आचार संहिता के दौरान झूठे आरोप मढ़ने और सच सामने नहीं ला रहा मीडिया।
उत्तराखंड सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को इस बार मोदी फैक्टर कितना प्रभावित करता है – यह तो 10 मार्च को वोटों की गिनती पर स्पष्ट होगा।
वैसे पश्चिम बंगाल, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, केरल आदि प्रदेशों में सरकारी मंत्रियों का चुनाव प्रचार, अपनी पार्टी को हर बार वांछित जीत नहीं दिला पाया है।
हर प्रदेश के चुनाव में सरकार के मंत्रियों का स्टार प्रचारक बनना और गली – कूचों में वोट मांगना लोकतंत्र की गरिमा और चुनाव में समान अवसर नहीं हैं।
सरकार और संगठन को अलग रखकर ही संविधान की मर्यादा का पालन संभव है।
चुनाव आयोग ने प्रसार भारती को सार्वजनिक प्रसारण उपक्रम मानकर चुनाव अभियान के दौरान सभी दलों को आकार अनुरूप समय स्लाट अलाट किए हैं।
ताकि छोटी पार्टी को भी रेडियो व दूरदर्शन पर अपनी बात कहने का समान अवसर मिले।
अब दूरदर्शन ने चुनाव पर लाइव कार्यक्रम कर दिया तो चुनाव आयोग से शिकायत की आवाज़ उठने लगी हैं – भाजपा दर्शन और ऐंकर सत्ता पक्ष के प्रचार का एजैंडा चला रहे हैं।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस कार्यक्रम के विरोध में अपना वीडियो जारी कर सरकारी मीडिया के दुरपयोग का आरोप लगाया है।
पूरा कार्यक्रम मंत्रियों और पार्टी के गुणगान में सिमट गया।
चुनाव आयोग को संज्ञान लेना है कि सरकार के उपक्रम या किसी भी सरकार के मंत्री स्टार प्रचारक बनकर अपनी पार्टी के प्रचार में निरंतर सिमटते जा रहे हैं।
सरकार की संवैधानिक और नैतिक आस्था में कमी लोकतंत्र को कमजोर करने वाली हैं।
साल भर देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव आयोजित होते रहते हैं – ऐसे में मंत्रियों का देश सेवा छोड़कर पार्टी कामकाज में उतरना श्रेयकर नहीं है।
दल – बदल करने वाले विधायक और सांसद पर कम से कम एक साल चुनाव लड़ने पर रोक लगने से लोकतंत्र के खुले अपमान पर चुनाव आयोग प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
पदचिह्न टाइम्स।