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कविता संसार के  महर्षि  स्वर्गीय गिरिजा शंकर त्रिवेदी को सादर श्रद्धा सुमन !

हिंदी कविता जगत में देहरादून की शान, संस्कृत प्रोफेसर, हिंदी के पुरोधा पत्रकार डा० त्रिवेदी की 14 वीं पुण्य तिथि पर पूर्व छात्रा का स्मरण।

कविता संसार के  महर्षि  स्वर्गीय गिरिजा शंकर त्रिवेदी को सादर श्रद्धा सुमन !

हिंदी कविता जगत में देहरादून की शान, संस्कृत प्रोफेसर, हिंदी के पुरोधा पत्रकार डा० त्रिवेदी की 14 वीं पुण्य तिथि पर पूर्व छात्रा का स्मरण।

मेरी आंखों की सामने ऋषिकेश की वो संध्या घूम गई – जब हम एम ए संस्कृत की छात्राओं को डा० गिरिजा शंकर त्रिवेदी जी कॉलेज ट्रिप पर ऋषिकेश ले गए थे।

लगभग साढ़े दस – ग्यारह बजे तक हम ऋषिकेश पहुंच गए थे।  हमने चोटी वाले के भोजनालय पर आलू पूरी का नाश्ता किया और फिर घूमने निकल पड़े।

कक्षा के बाहर गुरु जी एक दम परिवार के सदस्य की तरह घुलमिल जाते थे – एक दम आत्मीय, छायादार वृक्षके समान।

कभी मित्र समान छात्राओं को उनकी कंजूसी के लिए चिढ़ाने लगते और खूब चिढ़ाते – जब तक खानपान की मनपसंद वस्तु खिलाने की जिद पूरी न हो जाए।

गुरुजी के साथ हम कई मंदिरों में गए और अध्यात्म व दर्शन शास्त्र को निकट से समझा – जाना।

समय तेजी से बीत रहा था। हम सभी नाव में बैठ तट की ओर वापस लौट रहे थे।  अचानक गुरु जी ने तट से रेत उठाई और मुट्ठी भरकर ऊपर कर ली।

रेत धीरे – धीरे हाथ से  फिसल कर ज़मीन पर आने लगी –  फिर मुट्ठी खाली हो गई।

गुरु जी बोले- क्षमा !

समय बीतता जाता  है –  ये कभी रुक नहीं सकता । हमेशा कुछ ऐसा करो – समय तुम्हें अपनी याद में रक्खे;  तुम्हारे लिए कुछ क्षण ठहर जांये।

गुरु जी की बात तब खास समझ नहीं आई । आज जब गुरुजी हमारे बीच नहीं हैं तो समझ में आ रहा है – नश्वर कलेवर के लिए समय नही रुकता है। 

उनके लिए भी नहीं रुका पर उनके काव्यात्मक कलेवर को आज भी समय कुछ समय निकाल कर उन्हें नमन करता है।
गुरुवर गिरिजा शंकर त्रिवेदी जी को समय  हमेशा याद करता रहेगा।
डा० क्षमा कौशिक

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