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7 लाख के पार हुए लोकगीत जडवान के उत्तराखंडी दर्शक – काफिला अब रिकार्ड की ओर !

उत्तराखंड की लोक परम्परा चूड़ाकर्म संस्कार पर समधन की मान - मनौव्वल में सफल रहा प्रीतम भरतवाण का ताज़ा तरीन वीडियो गीत।

7 लाख के पार हुए लोकगीत जडवान के उत्तराखंडी दर्शक – काफिला अब रिकार्ड की ओर !

उत्तराखंड की लोक परम्परा चूड़ाकर्म संस्कार पर समधन की मान – मनौव्वल में सफल रहा

प्रीतम भरतवाण का ताज़ा तरीन वीडियो गीत।

उत्तराखंड के जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के जडवान गीत ने लोकप्रियता की

नई इबारत लिखी है।

लोक गीत में एक समधी और समधन ( दादा – नानी ) के वार्तालाप का आत्मीय और

बेहद संजीदगी भरा चित्रांकन है।

प्रीतम भरतवाण ने अपनी दिलकश आवाज़ से गीत को जिन भावों में

पिरोया है – वह लोक संस्कृति की सहज अभिव्यक्ति है।
रिश्तों में आत्मीयता, गहनता और लावण्य उत्तराखंड के लोकमानस की मुख्य विशेषता है।

गीत बेहद कर्णप्रिय बना है और फिल्मांकन भी शानदार है। समधी का अभिनय मुकेश घनसेला

और समधनी के पात्र में शिवानी भंडारी ने बेहद संजीदगी भरी छाप छोड़ी है।

गीत के टीजर में प्रीतम भरतवाण भी भावों को सजीव करते दिखते हैं।
सौ की नौ यह कि गीत लोकप्रियता के नये शिखर छू रहा है। मात्र दो सप्ताह में सात लाख से

अधिक लोग गीत से जुड़ चुके हैं और लोकप्रियता का ग्राफ चढ़ता जा रहा है।

उत्तराखंड की संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए लोक गीत, संगीत और नृत्य में नित नए प्रयोग हो रहे हैं।
लोक सम्पदा की श्रीवृद्धि सोशल मीडिया के दौर में कुछ आसान लगती है।

ऐसे में विषय वस्तु का चयन प्रतिष्ठित कलाकारों व रचनाकारों के सामने

चुनौतियां भरा रहता है। ये अपने समाज के लिए बाजारू, स्तही और

हल्का फुल्का सृजन नहीं कर सकते हैं।

पदमश्री प्रीतम भरतवाण के नए गीत के मूल में लोक परम्परा को देश काल

और परिस्थितियों के मद्देनजर समय का दस्तावेज बनाकर सहेजा गया है।

अपना उत्तराखंड पृथक राज्य बन जाने के बावजूद बेटे – बहू रोजी रोटी के लिए

परदेश जाने को मजबूर हैं लेकिन माता – पिता गांव में ही बसे हैं।

चाहे फौजी हो या कोई सरकारी या निजी सेवक अब वे लौकिक संस्कार के

बहाने ही गांव आ पाते हैं ।
इन अवसरों पर घर में रह रहे वृद्ध माता पिता का उल्लास देखते ही बनता है।

इसी भावभूमि पर प्रीतम भरतवाण ने अपना नया गीत परोसा है – जडवान।

पोते का चूड़ाकर्म संस्कार हो और उसकी नानी उपस्थित न हो तो उत्सव

अधूरा रह जाता है।

DINESH SHASTRI

नानी द्वारा नाती को ननिहाल से धगुली और परिधान पहनाने का विशिष्ट महत्व है।

गीत का नायक अपनी समधन को बुलाने जाता है। समधन की अपनी ढेर सारी

मजबूरियां हैं। भैंस ब्याहने को है सो वह जाने में लाचार है। हालांकि वह इस उत्सव में

शामिल होने  की स्वाभाविक चाह रखती है। ठेकेदार पति की काम पर बाहर रहता है।
समधी बहुत मान मनौव्वल करता है तो समधन ( नानी ) भी नाती के चूड़ा संस्कार में

पहुंच कर उत्सव को सफल बनाती है।

उत्तराखंड के प्रमुख लोक संस्कार पर रचा यह गीत अतीत और लोक जीवन की

वर्तमान परिस्थिति को जीवंत करता है।
पदमश्री प्रीतम भरतवाण निसंदेह लोकरंजन की प्रस्तुति देने में सफल रहे हैं।
– दिनेश शास्त्री सेमवाल।

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