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जोशीमठ भूमि कटाव उत्तराखंड को सुरक्षित टाउन प्लानिंग की दरकार !

देहरादून स्मार्ट सिटी के रहनुमाओं को भी नगर की क्षमता और सुविधाओं पर चिंतन व मनन की जरूरत।

जोशीमठ नगर भूमि कटाव उत्तराखंड को सुरक्षित टाउन प्लानिंग की दरकार !

देहरादून स्मार्ट सिटी के रहनुमाओं को भी नगर की क्षमता और सुविधाओं पर चिंतन व मनन की जरूरत।

सीमान्त चमोली जनपद के प्रमुख जोशीमठ नगर में भूमि धंसाव और कटाव ने पूरे देश की चिंता बड़ा दी है।

पिछली जनगणना में लगभग 16 हजार की स्थायी आबादी वाले जोशीमठ में हालात चिंताजनक बन गए हैं।
पिछले एक दशक में अंधाधुंध व्यवसायिक निर्माण ने जोशीमठ को कंक्रीट का जंगल बना दिया है।


पानी और सीवर की बदइंतजामी, टाउन प्लानिंग को धता बताने से आपदा की स्थिति जल्दी सामने आ गई है।

जोशीमठ का धार्मिक महत्व श्री बदरीनाथ धाम यात्रा का प्रमुख पड़ाव होना है।
आठवीं सदी में आदिगुरू शंकर्राचार्य जी द्वारा जोशीमठ में अपना मठ निर्माण कराया गया और

आज भी यहां अथर्व वेद की शिक्षा – दीक्षा दी जाती है।

चीन की सीमा के निकट होने से जोशीमठ का सुरक्षा महत्व अत्यधिक है और इस नगर

की सुरक्षा अब राष्ट्रीय मसला बन चुका है।
पहले चरण में छह सौ से अधिक घरों को विस्थापित करने की चुनौती है।
सरकार को नया जोशीमठ बसाने के लिए अपार धन और ज़मीन की व्यवस्था जुटानी है।

ऐसे में पूरे उत्तराखंड के लिए सुरक्षित और दीर्घ आयु वाली नगर नियोजन टाउन प्लानिंग की

दरकार खड़ी हो गई है।
बार – बार खतरे के मुंह पर खड़ी बस्तियों के विस्थापन के लिए बजट जुटा पाना सरकार के वश में नहीं है।
प्रशासनिक अधिकारियों को सड़क, बिजली और तमाम निर्माण परियोजनाओं के स्थानीय पर्यावरण

असर पर वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन भी कराना है।

देहरादून से मात्र180 किमी दूर विश्व प्रसिद्ध स्मार्ट सिटी चंडीगढ़ को अपना माडल बनाने की जरूरत है।
शहर से पेड़ और हरियाली गायब करने की जगह नए स्थल पर देहरादून स्मार्ट सिटी  आर्किटेक्चर

के जलवे बिखेरे तो बात बने।


अंग्रेजों ने देहरादून नगर को मात्र 30 -35 हजार नागरिकों के लिए विकसित किया था।
1857 के ग़दर के बाद उन्हें सुरक्षित स्थान चाहिए था सो दून में तीन कैंटोंमेंट स्थापित हुए

– रेलवे लायी गई, फौज़ के लिए फालतू लाइन और रेस्ट कैंप बनाये गए।
दूसरे महायुद्ध के विदेशी शत्रुओं के लिए पटेलनगर और प्रेमनगर में बैरिकनुमा जेल बनाई गई।

आज़ादी के बाद देहरादून को क्या मिला – एक जीवंत हरियाली का शहर तिल तिल मर रहा है।
यह ऐसा अभागा शहर है जहाँ बड़ी हस्तियों के आशियाने हैं – उनकी संतान, यहां एजुकेशन से सुसज्जित हुए हैं।

लेकिन फिर भी इस शहर का कोई ऋण चुकाने को तैयार नहीं है।

घंटाघर से राजपुर तक उत्तर प्रदेश के ज़माने में तो बाज़ार और बिजनेश प्रतिष्ठान खोलने की मनाही

CHAR DHAM UTTARAKHAND

थी – तब इस देहरादून से नेहरू, विजय लक्ष्मी पंडित, राजीव गांधी, जैसी प्रतिभाओं का सीधा जुड़ाव था।
उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद नेताओं ने शहर को प्रापर्टी डिलिंग के लिए फुटबाल बना रखा है।

सैकड़ो नौकरशाह, नेताओं और ठेकेदारों की बसावट के बावजूद कोई दून की हरियाली, मौसम और

मिज़ाज को कायम रखने के लिए आगे नहीं आता है।


सुहाना मौसम बरकरार रखने के लिए कभी डालनवाला में कभी पांच बीघा में घर मंजूर होते थे।
आज ईस्ट कैनाल और वेस्ट कैनाल दफ्न करने के बाद ऋतुपर्णा और बिंदाल नदियों के

पुनर्जन्म की परियोजनायें बन रही हैं।
दूसरी ओर यही नदियां अतिक्रमण का शिकार होकर अब नाले में तबदील हो चुकी हैं।

हाइकोर्ट ने संज्ञान लिया तो सरकार अतिक्रमणकारियों के पक्ष में वोटबैंक की राजनीति करती नज़र आयी है।

शहर की हर गली में बिल्डर पुराने मकान तोड़कर बहुमंजिला भवन खड़े कर रहे हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि इन गलियों में ट्रैफिक झेलने की क्षमता ना के बराबर है लेकिन सक्षम टाउन प्लानिंग के

अभाव में ये भी चोखा धंधा बन गया है।
— भूपत सिंह बिष्ट

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