हाय री राजनीति — अब करन माहरा को सिफारिशी भर्ती में फिर दुविधा!
नेताओं के भाई, भतीजे और परिजनों को तुरंत हटाओ लेकिन हम वोट के लिए सिफारिश करते रहेंगे।
हाय री राजनीति — अब करन माहरा को सिफारिशी भर्ती में फिर दुविधा!
नेताओं के भाई, भतीजे और परिजनों को तुरंत हटाओ लेकिन हम वोट के लिए सिफारिश करते रहेंगे।
विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खंडूडी भूषण के निर्णयों से उत्तराखंड कांग्रेस पानी मांग बैठी है।
पहली बार एक मजबूत महिला नेता ने पिछले 22 साल की बैक डोर भर्ती को निरस्त करने के उपाय
किए और आम बेरोजगार युवाओं में वाह वाही बटोरी।
तदर्थ नियुक्तियों को स्थायी करने की अपेक्षा कोटिया कमेटी बनाकर निरस्त किया गया ताकि परीक्षा से नियुक्ति मिले।
विधानसभा की बैक डोर सिफारशी भर्तियों के लगभग 250 रिक्त हुए हैं।
अब आशा जगी है कि एक मजबूत तंत्र से विधानसभा में नियुक्ति प्रक्रिया बनेगी।
स्पीकर के निर्णय को हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट भी सही ठहरा चुके हैं।
न्यायलय द्वारा पुष्टि से हटाये गए आंदोलनरत कर्मियों के पक्ष में खड़ा होना कांग्रेस नेतृत्व को हलका बना रहा है।
उत्तराखंड कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा गफलत में राजनीति के दोहरेपन को उजागर कर रहे हैं।
सिफारिशी भर्ती प्रकरण में निकाले गए आंदोलनरत कर्मियों के बीच राजनीति चमकाने के लिए
कांग्रेस अध्यक्ष अब पलटी मारकर बीजेपी को ही दोषी बता रहे हैं।
नियम विरूद्ध जाकर विधानसभा में 2001 से भाई – भतीजावाद की सिफारशी भर्ती के खिलाफ
कोटिया कमेटी ने रिपोर्ट दी और निराकरण मार्ग सुझाया।
एक तरफ दावा है कि इन गलत नियुक्तियों का प्रकरण सबसे पहले मैंने उठाया !
दूसरी ओर सरकार द्वारा अपनी भूल सुधारने के कदम को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
सांसद राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में आखिर कैसे भारत और उत्तराखंड निर्माण की बात उठा रहे हैं।
करन माहरा कभी कहते हैं —विधानसभा पीठ सर्वोच्च है – उस के कामकाज की परख न हो।
तब हो सकता है – यशपाल आर्य और गोविन्द सिंह कुंजवाल की सिफारिशी नियुक्तियों के पक्ष में बोलने का दबाव रहता होगा।
कभी चाहते हैं कि विधानसभा अध्यक्षों की जांच हाईकोर्ट जज या कैबिनेट मंत्री से हो।
कांग्रेस पार्टी अब बैकडोर भर्ती पाये युवाओं को ” ज्ञानी” मानती है क्योंकि बिना परीक्षा दिये
एक आवेदन से सीधे संपर्क कर सालों तक नौकरी का जुगाड़ कर लिया।
जब इन्हीं भर्तियों पर सरकार को घेर रहे थे – तब इन की योग्यता कमतर कैसे थी ?
” ज्ञानी लोग ” बिना सिफारिश वाले आम युवाओं के साथ परीक्षा देकर चयनित हो जायें तो क्या पहाड़ टूटने वाला है !
कोटिया कमेटी ने एक माह में जांच निपटा दी तो करन माहरा ने इन्हें लाभ के पद पर बैठे
और पूर्व मुख्यमंत्री के खास बता दिया है।
करन माहरा की दुविधा ये भी है कि वे सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि राज्यपाल, महापौर, नेता और
संघ से जुड़े लोग सिफारशी नियुक्तियां पा गए और उन्हें हटाना चाहिए।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री पर आरोप जड़ रहे हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जिस फाइल को रिजेक्ट
किया उसे विचलन आदेश से पास किया गया।
फिर कोटिया कमेटी की रिपोर्ट आने पर टेंपररी तदर्थ नियुक्तियों को समाप्त कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने महाभारत के श्री कृष्ण की तरह पांडव और कौरवों के बीच खुद को और सेना को
वाहवाही लूटने के लिए बांट रखा है।
कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा आखिर क्या कहना चाहते हैं – सादे कागज पर आवेदन लिखकर
विधानसभा और सरकारी कार्यालयों में सिफारशी नियुक्तियों का चलन बना रहना चाहिए।
इन गलतियों को सुधारकर स्पीकर महोदया ने अन्याय कैसे कर दिया ?
लोगों के खून पसीने से एकत्रित राजस्व को सिफारशी नियुक्तियों में कब तक लुटाया जाये।
पदचिह्न टाइम्स।