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केरल में आज संपन्न हुआ महिलाओं का शक्ति पूजा अट्टुकल भगवती पोंगला !

केरल में कोरोना ने दूसरे साल अट्टुकल भगवती आयोजन की भव्यता को कम किया।

केरल में आज संपन्न हुआ महिलाओं का शक्ति पूजा अट्टुकल भगवती पोंगला !

केरल में कोरोना ने दूसरे साल अट्टुकल भगवती आयोजन की भव्यता को कम किया।

त्रिवेंद्रम में स्थित अट्टुकल भगवती मंदिर महिलाओं का सबरीमाला कहा जाता है। इस मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए महिलायें ही अग्रणी भूमिका निभाती हैं।

नारी सशक्तिकरण के लिए अट्टुकल भगवती का प्राचीन मंदिर एक सिद्ध पीठ है।  कोरोना संक्रमण ने दूसरे साल महिलाओं के महाकुंभ की भव्यता को कम कर दिया।

अरब सागर से घिरा केरल प्रदेश अपने दो मानसून, ब्लू लेगून – बैक रिवर, डल झील की तर्ज़ के शिकारे, नौकायन और मनोरम हरियाली से सुज्जित टूरिस्ट केंद्रों के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

केरल की राजधानी त्रिवेंद्रम में प्रतिवर्ष फरवरी और मार्च के मध्य में अट्टुकल भगवती पोंगला का आयोजन होता है।

महिलाओं के महाकुंभ कहे जाने वाले इस महोत्सव को दो बार गिनीज बुक में शामिल किया गया है।

केरल के स्थानीय कैलेंडर के अनुसार कुंभम माह में दस दिन तक इस पूजा महोत्सव की धूमधाम रहती है।  केरल के अट्टुकल भगवती पोंगला महोत्सव में वर्ष 1997 में 15 लाख महिलाओं ने और 10 मार्च 2009 को 25 लाख महिलाओं ने भाग लिया।
इस वर्ष यह आयोजन 17 फरवरी को आहुत हुआ है।

सुदूर दक्षिण भारत में अट्टुकल भगवती को मां दुर्गा, भद्रकाली, व कनिका के रूप में पूजा जाता है। अट्टुकल भगवती जगत जननी है – जो पालन करती है और दुष्टों का संहार करती है।

महिलायें, युवतियां और बालिकायें अपनी सभी मनोकामनाओं के लिए अट्टुकल भगवती के मंदिर में विशेष अर्चना करती हैं।
केरल में वामपंथी सरकार भी बड़े पैमाने पर ऐसे धार्मिक आयोजन करती है।

कहा जाता है कि लगभग दो हजार साल पहले त्रिवेंद्रम में बुजुर्ग को एक कन्या ने नदी पार कराने का अनुरोध किया।

बुजुर्ग ने कन्या का हाथ थामकर नदी पार करायी और फिर अध्यात्मिक पराशक्ति के वशीभूत अपने परिवार में भोजन कराने के लिए ले आया।
परिजनों ने बालिका के पैर धोये और खाने के लिए आसन दिया तो सहसा कन्या अदृश्य हो गई। रात्रि में बुजुर्ग को स्वप्न में – एक निश्चित स्थान पर मंदिर बनाने का आदेश हुआ।

परिवार ने बड़ी श्रद्धा से अट्टुकल में भगवती के मंदिर का निर्माणकराया और विधिवत पूजा की शुरूआत हुई।  अट्टुकल भगवती का यह मंदिर आज दक्षिण भारतीय वास्तुकला की अपूर्व धरोहर है।

केरल प्रांत के सभी छोटे – बड़े कलाकार अपनी गायन, वादन और नृत्य कला की अपनी विशिष्ट प्रस्तुतियां माँ भगवती के दरबार में करने आते हैं।

एक अन्य कथा में तमिलनाडु के मदुरै शहर के नष्ट होने पर कनिका, जो पार्वती की अवतार मानी जाती हैं – कन्याकुमारी होकर केरल पहुंची।

सदियों से अट्टुकल भगवती के रूप में पूजी जाती हैं। कनिका का विशेष उल्लेख तमिल साहित्य में सरस्वती महानायिका के रूप में मिलता है।

अट्टुकल भगवती की अर्चना केरल व तमिलनाडु दो अलग भाषी राज्यों में की जाती है।

रात्रि से ही मंदिर परिसर से सटी सड़कों पर महिलाओं के समूह- मात्र तीन ईंट लगाकर अपनी रसोई बनाती हैं।  त्रिवेंद्रम की सभी सड़कों पर रंगीन रोशनियों की झालर जगमगाते हैं। मलयाली भजन संगीत लाउडस्पीकरों पर गूंजते हैं।

सुबह तीन इंटों के चूल्हे पर मिट्टी का बर्तन , कुछ महिलायें तांबे और कांसे के बर्तन का भी उपयोग करती हैं।  मंदिर की सड़क से शुरू होकर महिलाओं का सैलाब लाखों की संख्या में दूर दराज तक फैलता जाता है।

आग के लिए नारियल की जटायें और तने, दक्षिण भारत में नारियल उपयोगिता साबित करते हैं।

इस आयोजन में महिलाओं के परिधान, गहने और बर्तन – केरल समाज के सभी वर्गों की उपस्थिति का भान कराते हैं।  मीलों तक महिलाओं का सैलाब रहता है और बीच सड़क में ट्रेफिक भी बदस्तूर चलता रहता है।

अमीर – गरीब घर की महिलायें व बालिकायें मंदिर से अग्नि -ज्योति लेकर अस्थायी चूल्हे पर प्रसाद बनाती हैं।

 

पोंगला में भाग लेना मलयाली अस्मिता है।
पोंगला पकाती बालिकायें, युवतियां और अधेड़ सभी धर्मो से बिना भेदभाव लाखों मलयाली महिलायें महाकुंभ में जुटती हैं।

यह एक शक्ति साधना का उत्सव है – भारत की विशिष्ट संस्कृति का परिचायक महोत्सव है।

अधिकांश महिलायें एक बजे तक पोंगला चावल की खीर , जिस में चावल, दूध और गुड़ का उपयोग कर बना लेती हैं।  कई महिलायें अनेक प्रकार के चावल के व्यंजन बनाकर इंतजार करती हैं।

पोंगला प्रसादम पर भगवती मंदिर से प्राप्त अभिमंत्रित अमृत के छिड़काव के बाद कार्यक्रम पूर्ण होता है। सभी महिलायें – उसके बाद अपने परिजनों के लिए पोंगला प्रसाद केले के पत्तों से ढककर घर को रवाना होती हैं।

इससे पहले उपवासी महिलायें मार्ग पर बने चूल्हे को शांत करना नहीं भूलती हैं।

त्रिवेंद्रम महापालिका फिर युद्धस्तर पर सफाई अभियान शुरू करती हैं। दोपहर 3 बजे बाद ऐसा नहीं लगता कि पिछले आठ घंटों से इन सड़कों पर लाखों महिलाओं ने प्रसाद बनाने का कोई उपक्रम किया हैं।

इन इंटों से गरीब लोगों के लिए कई एनजीओ हर साल मकान बनवाने में सहायता करते हैं।
– भूपत सिंह बिष्ट

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