आधी दुनिया/ महिला विमर्शधर्म/ अध्यात्म/ ज्योतिषपर्यटन/ तीर्थाटन

केदारनाथ मंदिर के द्वार खुलने का मुहूर्त शुक्रवार 10 मई तय !

सौ साल में केदारनाथ मंदिर की आय 3634 गुणा बढ़कर 18 करोड़ ।

केदारनाथ मंदिर के द्वार खुलने का मुहूर्त शुक्रवार 10 मई तय !

सौ साल में केदारनाथ मंदिर की आय 3634 गुणा बढ़कर 18 करोड़ ।

— दिनेश शास्त्री सेमवाल

करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र और हिमालय में स्थित विश्वप्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग

श्री केदारनाथ धाम के कपाट इस वर्ष अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर

शुक्रवार 10 मई को प्रात: 7 बजे श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे।

भगवान केदारनाथ के शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में

महाशिवरात्रि के पावन पर आज केदारनाथ धाम के कपाट खोलने का मुहूर्त निकाला गया।
भगवान केदारनाथ की पंचमुखी भोग मूर्ति की 5 मई को पंचकेदार गद्दी स्थल

श्री ओंकारेश्वर मंदिर में विशेष पूजा की जायेगी और उसी दिन भैरव नाथ जी की पूजा होगी।
भगवान की पंचमुखी डोली 6 मई को ऊखीमठ से श्री केदारनाथ धाम के लिए

प्रस्थान करेगी। उस दिन डोली का रात्रि विश्राम गुप्तकाशी स्थित विश्वनाथ मंदिर में होगा।

अगले दिन सात मई को फाटा, आठ मई को गौरा मंदिर गौरीकुंड और नौ मई शाम को

डोली केदारनाथ धाम पहुंचेगी।

केदारनाथ और बदरीनाथ के साथ ही गंगोत्री और यमुनोत्री सहित

चारधाम यात्रा को उत्तराखंड की आर्थिकी के ग्रोथ इंजन है।
इन धामों की यात्रा के चलते उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को हमेशा पंख लगते रहे हैं ।

हरिद्वार से लेकर चारों धामों के यात्रा मार्गों को न सिर्फ जीवंतता मिलती है बल्कि रोजगार के द्वार खुलते हैं।
नतीजतन लाखों लोगों की आजीविका चलती है।

यह क्रम आज से नहीं बल्कि शताब्दियों से चला आ रहा है।
आम लोगों के रोजगार के साथ ही एक नजर केदारनाथ धाम में मंदिर समिति की

आय पर एक नजर डालें तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं।

पिछले वर्ष बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को इस धाम से 18 करोड़ रुपए की

आय हुई थी जबकि बदरीनाथ मंदिर को 16 करोड़ रुपए की आय हुई।

यह पहला मौका था जब केदारनाथ मंदिर की आमदनी बदरीनाथ से ज्यादा हुई।

शताब्दियों से बदरीनाथ की आय केदारनाथ से ज्यादा रहती आई किंतु केदारनाथ धाम के

नवनिर्माण के बाद यह रिकॉर्ड टूटा है।

मंदिर समिति को यह आय श्रद्धालुओं के दान, चढ़ावा और प्रोटोकॉलधारी यात्रियों से प्राप्त

शुल्क के रूप में मिला है। इसी तरह बीते यात्रा में बदरीनाथ मंदिर को 16 करोड़ रुपए

की आय हुई।
ठीक एक शताब्दी पहले केदारनाथ मंदिर की आमदनी मात्र 49 हजार रुपए थी।

वह भी तब जब हरिद्वार में कुंभ जैसा महापर्व था और आर्थिक दृष्टि से श्रद्धालु संपन्न रहे होंगे।

अन्यथा वार्षिक चढ़ावा आमतौर पर नौ से दस हजार रुपए तक आता था। तब ब्रिटिश गढ़वाल

के साठ गांवों की मालगुजारी यानी लगान के 1090 रुपए, अल्मोड़ा के 45 गांवों की मालगुजारी

से 808 रुपए और टिहरी रियासत के गूंठ गांवों से 250 रुपए की मालगुजारी

केदारनाथ मंदिर को मिलती थी।

इस तरह मालगुजारी के 2148 रुपए और दस से बीस हजार रुपए चढ़ावा मंदिर को

मिलता था।
सन 1909 में महाराजा कीर्ति शाह के वजीर नियुक्त हुए पंडित हरिकृष्ण रतूड़ी ने

अपनी पुस्तक गढ़वाल का इतिहास में इस तथ्य पर विस्तार से प्रकाश डाला है।

इस गणना से अकेले केदारनाथ मंदिर की आमदनी में 3634 गुणा से अधिक की

वृद्धि दर्ज हुई है।

अंग्रेजों ने1939 में उन्होंने केदारनाथ और बदरीनाथ मंदिरों का नियंत्रण अपने

हाथ में लेने के लिए श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट बनाया और टिहरी रियासत को

एक तरह से नाममात्र का कस्टोडियन सा बना दिया।
उस समय दोनों मंदिरों से मिलने वाली करीब एक लाख रुपए की आमदनी पर

अंग्रेज अपना नियंत्रण चाहते थे। लोग एक्ट का विरोध न करें, इसके लिए हक हकूक से

उन्होंने छेड़छाड़ नहीं की।

बदरीनाथ का मुहूर्त टिहरी नरेश की उपस्थिति में करवाने, तेल कलश की व्यवस्था जैसी

रस्म राजा के पास रख कर बाकी नियंत्रण अपने पास रखा। उससे पहले बदरीनाथ और केदारनाथ

के रावलों का पट्टाभिषेक भी टिहरी दरबार में होता रहा।

सन 1815 से पूर्व यह सब श्रीनगर दरबार से होता था। महाराजा अजयपाल द्वारा सन 1512 में  दरबार देवलगढ़/ श्रीनगर लाए जाने से पूर्व चांदपुर गढ़ी से समस्त व्यवथाएं संचालित होती थी।

इसीलिए गढ़वाल नरेश को बोलांदा बदरीनाथ भी कहा जाता था।

वर्ष 2013 की आपदा में केदारनाथ धाम तहस नहस हो गया था। नव निर्माण के बाद पूरे क्षेत्र में

नई आशा, उम्मीद और विश्वास का संचार होने से केदारनाथ मंदिर को रिकॉर्ड आय दर्ज हुई है।

धाम में अवस्थापना सुविधाओं के विस्तार के साथ ही लोगों के जीवन स्तर में भी

सुधार हुआ। केदारघाटी में पिछले एक दशक के दौरान चारधाम यात्रा में नित नए आयाम

जुड़ें हैं और देवभूमि उत्तराखंड की देश दुनिया में बेहतर छवि स्थापित हो रही है।
— दिनेश शास्त्री सेमवाल, वरिष्ठ पत्रकार।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!