कुमाऊंनी लोकगाथाओं व सांस्कृतिक विरासत के संवाहक जुगल किशोर पेटशाली !
गांव चितई, अल्मोड़ा में जन्में लोककवि पेटशाली ने कुमाउनी लोक साहित्य को बचपन से संरक्षित और परिमार्जित किया है।
कुमाऊंनी लोकगाथाओं व सांस्कृतिक विरासत के संवाहक जुगल किशोर पेटशाली !
गांव चितई, अल्मोड़ा में जन्में लोककवि पेटशाली ने कुमाउनी लोक साहित्य को बचपन से संरक्षित और परिमार्जित किया है।
कुमाउनी बोली और संस्कृति के लिए समर्पित जुगल किशोर पेटशाली का जन्म 7 सितंबर 1947 को
चितई, अल्मोड़ा में हुआ
।
बाल्यकाल से ग्रामीण परिवेश में जागर गाते लोक कलाकार प्रभावित करते रहे।
बिना औपचारिक पढ़ाई के तीन लोक का वैभवशाली वर्णन करने वाले बेलाग लोक कलाकार निश्चित ही
माँ सरस्वती से वरदान पाये हैं।
लोककवि पेटशाली एक टीवी वार्ता में कहते हैं – घंटों तक सुर ताल में सनातन कथाओं को
गाने वाले लोक कलाकार कैसे गूढ़ शब्दावली का धारा प्रवाह उपयोग करते हैं – मेरे लिए हमेशा कौतुक रहा।
परीक्षा में अपनी असफलता को माँ के लिए किशोर पेटशाली ने हास – परिहास में पहली कुमाउनी रचना
के रूप में प्रस्तुत किया। ये सूरदास के भजन मैया मैं नहीं माखन खाओ की पैरोडी रूपांतरण था।
लोककवि पेटशाली ने आसपास की लोक कलाओं और लोकगाथाओं को अपनी प्राथमिकता में
शामिल किया और आज कुमाउनी साहित्य व संस्कृति के मर्मज्ञ ज्ञाता के रूप में स्थापित हैं।
कुमाऊं की लोकगाथाओं पर आधारित ‘मेरे नाटक‘ पुस्तक में जुगल किशोर पेटशाली के चार नाटक शामिल हैं।
नाटकों का काल खंड आज से तीन से पाँच सदी पूर्व का समाज है।
कुमाँउनी संस्कृति के गहरे जानकार पेटशाली ने उत्तराखण्ड की राजशाही दौर को इन नाटकों में सजीव किया है।
राजुला-मालूशाही गीत-नाटिका में भोट प्रदेश के शौका व्यापारी सुनपति की बेटी राजुला तथा
बैराठ के राजा दुलाशाई के पुत्र मालूशाई के बीच उपजे उद्दात प्रेम का प्रवाह है ।
बाला गोरिया गीत-नाटिका में गढ़ी चम्पावत के राजा हालराई की सात रानियों की अपराध गाथा है,
जहां रानी कालिंगा षड़यंत्रकारी यातनाओं की मार्मिक कथा है।
अजुवा-बफौल नाटक में बफौलीकोट के बाईस भाई बफौलों की अदम्य वीरता और उनके नगाड़े की गर्जना
राजा भारती चंद और उसकी डोटियाली रानी को बेहद बैचेन कर देती है।
नौ-लखा दीवान नाटक में राजा दीपचंद का दीवान सकराम पांडे स्थानीय ग्रामीणों के बीच एक अत्याचारी
तथा कल्याण सिंह एक देवतुल्य पुरुष के तौर पर उभरे हैं।
कुमाउनी बोली-भाषा व परम्परागत लोक धुनों ने गीत-नाटकों को विशिष्ट बना दिया है।
पहाड़ी लोक संगीत की सौंधी महक इन नाटकों में सहजता से महसूस होती है।
‘जी रया जागि रया‘ कुमाउनी कविताओं का संग्रह है।
‘विभूति योग‘ पुस्तिका में श्रीमद् भागवत, गीता का दशम अध्याय,
‘गंगनाथ-गीतावली‘ ( वैद्य पं. पीताम्बर पाण्डे की पुस्तक) का संपादन पेटशाली ने किया है।
वहीं ‘हे राम‘ में उन्होनें श्री राम के चरित्र को अभिनव तरीके से सुंदर काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया है।
जुगल किशोर पेटशाली की प्रमुख पुस्तकों में राजुला मालूशाही(महाकाव्य), जय बाला गोरिया,
कुमाऊं के संस्कार गीत, बखत – कुमाउनी कविता संग्रह, उत्तरांचल के लोक वाद्य, कुमाउनी लोकगीत,
पिंगला भृतहरि(महाकाव्य), कुमाऊनी लोकगाथाएं, गोरी प्यारो लागो तेरो झनकारो (कुमाउनी होली गीत संग्रह), तथा कई सम्पादित पुस्तकें शामिल हैं।
लोक रंगकर्मी पेटशाली के कई नाटकों का मंचन हुआ है।
राजुला-मालूशाई पर दूरदर्शन एक धारावाहिक प्रसारित कर चुका है।
लोककवि जुगल किशोर पेटशाली जय शंकर प्रसाद पुरस्कार, सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार, (उ.प्र. हिन्दी संस्थान)
तथा उत्तराखण्ड सरकार के वरिष्ठ संस्कृति कर्मी पुरस्कार व कुमाऊं गौरव पुरस्कार से भी सम्मानित हैं।
— भूपत सिंह बिष्ट