मार्शल रेप यानि विवाहितों के बीच जबरन सेक्स रेप है और नहीं भी !
सात साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट का मिश्रित निर्णय की सुनवायी अब सुप्रीम कोर्ट में होगी।
मार्शल रेप यानि विवाहितों के बीच जबरन सेक्स रेप है और नहीं भी !
सात साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट का मिश्रित निर्णय की सुनवायी अब सुप्रीम कोर्ट में होगी।
विवाह संबंधों में खटास आने के बाद पति और पत्नी के बीच सेक्स संबंध किस श्रेणी में रखे जायें यह मुद्दा सात साल बाद भी अनसुलझा रह गया।
मार्शल रेप यानि विवाहित पति – पत्नी के बीच यदि रजामंदी से सेक्स संबंध न हो तो क्या अचानक ऐसे शारीरिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में डाला जा सकता है ?
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में पुरूषों द्वारा रेप को परिभाषित कर अपराध की श्रेणी में बताया गया है।
लेकिन इस धारा के अपवाद में पति और पत्नी के बीच जबरन संबंध स्थापित को गंभीर अपराध और सजा को रेप के बराबर नहीं माना गया है।
अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करने या शारीरिक संबंध बनाने को रेप के दायरे में नहीं रखा जायेगा यदि पत्नी की उम्र 18 साल है।
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव शकधर ने धारा 375 के अपवाद 2, जिसमें पति को रेप से संरक्षण दिया को अमान्य करार दिया है।
इस बैंच के दूसरे जस्टिस सी हरि शंकर ने मार्शल रेप की याचिका को खारिज कर दिया है – पति – पत्नी के बीच सेक्स को मार्शल रेप अपराध बनाने के लिए नए कानून की जरूरत है। कानून में संशोधन के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और विधिक मान्यताओं पर गहनता से विचार की जरूरत है।
सरकार ने 2017 में एक शपथ पत्र दाखिल किया कि मार्शल रेप का अपराधिकरण करने पर पति पर झूठे मुकदमें लादे जाने की संभावनायें हैं।
मार्शल रेप पर कानून वैवाहिक संस्था को अस्थिर कर सकता है।
मार्शल रेप पिटीशन का विरोध कर रही पतियों की एक एनजीओ का तर्क था – विवाह के लिए शारीरिक संबंधों की अनिवार्यता को यूं खारिज नहीं किया जा सकता है।
अभी जबर्दस्ती साबित होने पर पति को दो साल की सजा हो सकती है। शारीरिक क्रूरता भी तलाक का आधार बनाया जा सकता है।
मार्शल रेप की पक्षधर महिला एनजीओ की याचिका में घरेलु हिंसा के तहद पत्नी पर शारीरिक अत्याचार को अपराधिक श्रेणी में पूरी तरह से नहीं रखा गया है।
भारत सरकार का मानना है कि इस सामाजिक – विधिक मामले में सभी पक्षों के साथ राय मशविरा किया जा रहा है।
पदचिह्न टाइम्स।