हिमाचल दर्शन चम्बा : सहस्त्र वर्ष मनाया लेकिन पार्किंग नहीं बनी !
सिकुड़ता चौगान, मिलेनियम सिटी की गली कूचे हर सड़क पर गाड़ियों का कब्जा।
हिमाचल दर्शन चम्बा : सहस्त्र वर्ष मनाया लेकिन पार्किंग नहीं बनी !
सिकुड़ता चौगान, मिलेनियम सिटी की गली कूचे हर सड़क पर गाड़ियों का कब्जा।
हिमाचल प्रदेश का सुंदरतम नगर चम्बा को मिलेनियम सिटी के नाम से भी प्रचारित किया जाता है। डलहौजी, खजियार, भरमौर, सच्च पास – पांगी आदि चम्बा नगरी को अंतरर्राष्ट्रीय टूरिस्ट सर्किट से जोड़ते हैं।
चम्बा के रेशमी रूमाल, सिलाई – कढ़ाई, चप्पल, हैंडी क्राफ्टस, भूरी सिंह संग्रहालय, राजमहल, पुरातन मंदिर, रावी नदी, मिंजर, चौमंडा व सूही मेले, चम्बा का चौगान व बाजार सब कुछ अद्भुत हैं।
संभवता 920 में राजा शैल बर्मन ने अपनी बेटी चम्पा कुमारी के लिए इस राजधानी नगर को बसाया और कालांतर में इसका नाम चम्बा पड़ गया।
चम्बा की सूही रानी ने नगरवासियों को पानी पहुंचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। नगर के शिखर पर स्थित चौमंडा देवी मंदिर पूरे नगर की अराध्य भगवती हैं।
चम्बा शायद अब लोकगीतों में ही ज्यादा सुंदर शहर बन कर रह गया है – चंबा कितणी की दूर… सांय सांय मत करे रावी ये, तेरे कंडे बसणे जो दिल मेरा करदा, … लाल तेरा साफा भौरां, लाल तेरी… स्वप्न सुंदरी चंचलो धोबन पर मोहित राजा के गीत निसंदेह चंबा नगर के इतिहास को हजार साल पीछे ले जाते हैं लेकिन वर्तमान में सब कुछ अच्छा नहीं है।
चम्बा नगर का नया रूप अंग्रेजों के शासनकाल में 1856 के आसपास गढ़ना शुरू हुआ है। महल, भवन, हास्पीटल, संग्राहलय, पुल, सड़क आदि से चंबा को नया लुक मिला है।
परंपरागत मकान की छत स्लेट से बनी होती थी ताकि मकानों पर बर्फ का बोझ ना टिक पाए लेकिन आज कंक्रीट के लैंटर सटकर बन रहे कई मंजिला मकानों में नज़र आते हैं।
पहले हर घर के पीछे एक बाग – बाड़ी चम्बा की विशेषता रही है और आज नगर से बाड़ी गायब हैं, उलटे अतिक्रमण ने सड़कों को निगलना शुरू कर दिया है।
एक हजार दो सौ साल बाद अब चम्बा नगर को आधुनिकता के अनुसार गाड़ियों के लिए मजबूत पार्किंग व्यवस्था की जरूरत है। नगर में हर तरफ अस्त – व्यस्त गाड़ियां ही गाड़ियां चंबा के सौंदर्य को बिगाड़ रही हैं।
चौगान मैदान और बाजार चम्बा की जनसंख्या के मुकाबले छोटे हो गए हैं। चौगान में क्षमता से अधिक खिलाड़ी, सुबह – शाम घूमने वाली मंडली, पर्यटकों की भीड़ रोजाना अब जनसंख्या विस्फोट का अहसास कराने लगी है।
चौगान को हड़पने के लिए अजीबो गरीब स्थायी निर्माण होने लगे हैं। नगर पालिका खुद अपने परिसर को संवारने में नाकाम हैं।
नगर का एक मात्र पिक्चर हाल का परिसर अधाधुंध निर्माण और कबाड़ से अटा है।
हर मोहल्ले में नए निर्मित भवन पुराने नगर की स्थापत्य कला को लीलते जा रहे हैं। 1916 के आसपास बने अंग्रेजी शैली के भवनों की भव्यता सौ मीटर पर बने भवनों ने चौपट कर दी है।
चम्बा नगर का विस्तार हर दिशा में रावी नदी के किनारे शीतला माता मंदिर, सुलतानपुर, परेर, दूसरी ओर बालू से सरोल तक अनियोजित दिखता है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज, एनएचपीसी की जल परियोजनाओं को छोड़ दें तो चम्बा को राजनीति से परे नियोजित विकास योजना, एक रूपता लिए भवनों के ले आउट, पार्किंग जैसी मूलभूत जरूरत और टूरिस्ट सर्किट संभालने वाले अधिकारियों की बड़ी आवश्यकता है।
— भूपत सिंह बिष्ट