2050 तक हर तरफ होगी चश्मे वालों की दुनिया – मायोपिया रोग !
छोटे बच्चों को एम्बलयोपिया रोग से बचाने की शोध में जुटे हैं - दृष्टि विज्ञानी हरीश बलोधी।
2050 तक हर तरफ होगी चश्मे वालों की दुनिया – मायोपिया रोग !
छोटे बच्चों को एम्बलयोपिया रोग से बचाने की शोध में जुटे हैं -दृष्टि विज्ञानी हरीश बलोधी।
आज नवजात बच्चों से लेकर हर आयु वर्ग में मोबाइल फोन का नशा आंखों पर बुरा प्रभाव छोड़ रहा है।
माना जा रहा है – अगर नन्हें मुन्ने बच्चों और युवाओं ने खेलकूद और बाग – बगीचों का रूख नहीं किया तो अगले
पच्चीस सालों में हर तरफ चश्मे वाले ही नजर आयेंगे।
बहुत संभव है – चश्मे वालों का आंकड़ा बिना चश्मे वालों से अधिक भी हो जाये।
पहले ऐनक शीसे के लैंस का पर्याय होता था लेकिन अब शीसे को प्लास्टिक के लैंस ने पछाड़ दिया है।
फ्रांस के बने प्लास्टिक लैंस पूरी दुनिया में बेजोड़ हैं।
आंखों की परवाह न करने पर चश्में का नंबर आश्चर्यजनक रूप से माइनस 27 -28 तक भी देखा जाता है।
आजकल आंखों की रोशनी बचाने के लिए -5 से – 9 तक नंबर बढ़ जाना आम हौ चला है।
स्वस्थ आंखों का नंबर 6/6 माना जाता है।
नवजात बच्चे का नंबर +3 से शुरू होकर उम्र के 6 माह तक सामान्य होने लगता है।
स्कूली बच्चे आजकल स्मार्ट फोन और कम्पयूटर पर जरूरत से ज्यादा समय बीताने लगे हैं।
आंख के ज्यादा करीब इन उपकरणों का प्रयोग करने से निकट दृष्टि दोष – मायोपिया रोग बच्चों में घर कर रहा है।
दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में दृष्टि विज्ञानी हरीश बलोधी बच्चों में बढ़ते आंखों के रोग पर विश्वविद्यालय शोधकार्य
कर रहे हैं।
सुस्त आंख – लेजी आई या एम्बलयोपिया से ग्रस्त बच्चों को यदि 6-7 साल की उम्र में तलाश कर इलाज शुरू किया
जाए तो उन की आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है।
इस रोग में अधिकतर एक आंख की रोशनी प्रभावित होती है।
आंख में भैंगापन देखा जा सकता है – बच्चा हर काम में वस्तुओं को नजदीक से देखने लगता है।
माता – पिता का दायित्व है कि अपने नन्हें बालकों की आंखों पर विशेष ध्यान दें ताकि समय पर इस रोग से सुरक्षा हो सके।
फिलहाल विश्व की 7-8 प्रतिशत आबादी सुस्त आंखों के रोग से ग्रसित हो चुकी है।
हरीश बलोधी की सलाह है कि आंखों की रोशनी को बचाने के लिए बिना झिझक चश्में का उपयोग करें।
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए कंप्यूटर और मशीन पर भी एक्सरसाइज करायी जाती हैं।
हाइपर मेट्रोपिया रोग में दूर की नजर में दोष आता है।
दूर से ट्रैफिक सिग्नल और वस्तुओं को पहचानना मुश्किल रहता है।
अच्छी आंख की रोशनी के लिए हर उम्र के लोगों को निरंतर आंखों के उपयोग से बचना चाहिए।
मोबाइल और कंप्यूटर पर समय – समय में विश्राम और आउटडोर गतिविधियों से आंख की मासपेशियों को राहत मिलती है।
प्रस्तुति – भूपत सिंह बिष्ट