गैरसैंण सत्र : चार दिन की चांदना फिर अंधेरी रात…. !
नेता जब सदन में निरीह नजर आए तो हर पहाड़ी का दिल भर आया होगा - दिनेश शास्त्री।
गैरसैंण सत्र : चार दिन की चांदना फिर अंधेरी रात…. !
नेता जब सदन में निरीह नजर आए तो हर पहाड़ी का दिल भर आया होगा – दिनेश शास्त्री।
पहले 18 मार्च तक घोषित उत्तराखंड विधानसभा का बजट सत्र दो दिन पहले ही अनिश्चितकाल के लिए
स्थगित हो गया लेकिन यह सत्र अनेक खट्टी यादें छोड़ गया है।
गैरसैंण सत्र से पहाड़ को क्या मिला, यह विमर्श का अलग विषय है।
तात्कालिक बात इतनी है कि राजनीति के चतुर सुजान कहलाने वाले नेता जब सदन में निरीह नजर आए तो
हर पहाड़ी का दिल भर आया होगा।
इन चार दिनों में पहाड़ की दिशा और दशा क्या बदली होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं।
ऊपर से छिटपुट बारिश ने माननीयों को जो सर्दी का अहसास कराया उसने सत्र को चार दिन में ही समेट दिया।
यह हाल जब महज चार दिन के सत्र का था तो ग्रीष्मकालीन राजधानी में नेता अफसर खाक हिम्मत जुटाएंगे?
आइए अब बात करें सत्र के दूसरे दिन की जब लोक निर्माण, पर्यटन, सिंचाई विभागों से संबंधित सवालों के जवाब दिए जा रहे थे।
विपक्ष तो विपक्ष, अपनों ने भी कसर नहीं छोड़ी न ही सबसे वरिष्ठ, सबसे काबिल मंत्री सतपाल महाराज
सवालों के चक्रव्यूह में इस कदर फंसे कि बाहर नहीं निकल पाए।
हालांकि उनके दफ्तर की तरफ से तो कुछ और ही कहा गया लेकिन जो कुछ पूरे प्रदेश ने देखा
वह सोचने को विवश करता है कि होम वर्क में अफसर और नेता दोनों विफल रहे साथ ही कोई ठोस तंत्र भी
सरकार के पास नहीं है।
देहरादून में नाले बनाने की बात हो या टिहरी विस्थापितों को पर्यटन नीति से जोड़ने वाला सवाल या
फिर नहरों का मामला, सरकारी अफसरों ने मंत्री को न तो ठोस जानकारी उपलब्ध कराई और
न मंत्री ही अपना कौशल दिखा सके।
यही हाल सत्र के अंतिम दिन स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सवालों का रहा।
विधायक पूछते रहे कि मेरे क्षेत्र में डॉक्टर की तैनाती कब होगी सर्जन कब आएगा या विशेषज्ञ चिकित्सक कब मिलेगा?
जवाब हैरान करने वाला था कि जब डॉक्टर मिलेंगे, तब तैनाती करेंगे।
सर्जन को चार लाख रुपए के वेतन पर तैनात करने की बात भी हुई लेकिन यह उसी तरह है कि न बाप व्याहेगा, न छोटा भाई होगा।
सवा दो दशक बीत चुके हैं लेकिन अभी तक ऐसा माहौल नहीं बन पाया कि दूर पहाड़ों में कोई डॉक्टर
अपनी सेवाएं देने को तत्पर हो।
उन्हें प्रलोभन देने की नौबत जस की तस बरकरार है। ऐसे में गैरसैंण में चार दिन के सत्र का महत्व समझा जा सकता है।
जब हमारे माननीय ही घोषित अवधि तक गैरसैंण में नहीं रह सकते तो पहाड़ की तकदीर खाक सुधरेगी?
लाख टके के इस सवाल का जवाब आपके पास है तो जरूर बताएं।
वैसे आप खुद से भी पूछ सकते हैं कि ये सत्र चार दिन की चांदना फिर अंधेरी रात से ज्यादा है या कम?
— दिनेश शास्त्री स्वतंत्र पत्रकार