दिनेश जुयाल पत्रकारिता के पुरोधा का आकस्मिक अवसान !
65 वर्ष की आयु में बेलाग पत्रकार ने महंत अस्पताल में ली अंतिम श्वाँस।
गढ़वाल उत्तराखंड के बहुत कम युवा राष्ट्रीय फलक पर नामचीन पत्रकार के तौर पर स्थापित
हो पाए हैं – हेमवती नन्दन गढ़वाल यूनिवर्सिटी से एमए अंग्रेजी साहित्य में करने
के बाद दिनेश जुयाल ने भारत के महानगरों में पत्रकारिता के नए आयाम बनाये।
दैनिक अमरउजाला के लिए बड़ी पारी खेलने वाले दिनेश जुयाल ने बरेली, कानपुर, लखनऊ, नॉएडा और
देहरादून में संपादक और प्रबंध संपादक की महती भूमिका अख़बार में निभायी।
उत्तराखंड बनने के बाद दिनेश जुयाल को दैनिक हिंदुस्तान का देहरादून संस्करण शुरू करने का श्रेय जाता है।
साहित्यकार – संपादक मृणाल पांडेय की गुड बुक में शामिल, दिनेश जुयाल सदैव सच के साथ रहे और इस्तीफा
जेब में रखकर चलने वाले पत्रकार रहे हैं।
निसंदेह युवा पत्रकारों की नर्सरी बनाने और परिमार्जित करने का दायित्व भी दिनेश जुयाल के कन्धों पर
रहा है। बेलाग लिखने और बोलने वाले दिनेश जुयाल ने आम जीवन को प्रभावित करने वाली खबरों के साथ
पूरा न्याय किया। खबरों को बाहर लाने में पत्रकारिता धर्म निभाया और मालिकों की नाराजगी भी स्वेच्छा
से सही। अपने रिपोर्टर के संरक्षक के रूप में भी दिनेश जुयाल याद किये जाते हैं।
श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय छात्र जीवन 1979 – 81 में मेरा परिचय दिनेश जुयाल से हुआ। कॉलेज
मैगज़ीन – निर्झरणी के लिए मुझे उन्होंने हिंदी कहानी दी। अंग्रेजी साहित्य के छात्र दिनेश पत्रकारिता जगत
में इतनी ऊँची छलांग लगाने में कामयाब रहेंगे – तब कल्पना से बाहर की बात थी।
2007 में पदचिह्न परिवार के पत्रकार स्वागत समारोह, 2008 में हमारी कैलास मानसरोवर यात्रा का वृतांत
लेने , कर्नल राम सिंह बिष्ट के अंग्रेजी नावेल – ब्लड ऑन मीडोज – रक्त रंजित घाटी के विमोचन पर समालोचक ,
यूनिवर्सिटी के दोस्त महेंद्र कुंवर के साथ बैठक का दौर, बेटे की शादी में पहाड़ी परंपरा से अतिथि सत्कार ,
दून यूनिवर्सिटी और श्रीनगर गढ़वाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में अध्यापन दिनेश जुयाल के
न भूलने उपक्रम हैं।
उत्तराखंड पर्यावरण में आल वैदर रोड़ , चुनाव विश्लेषण और राजनेताओं का हिसाब -किताब सोशल मीडिया
से लेकर दूरदर्शन और चैनलों में दिनेश जुयाल बेबाकी से करते रहे।
यात्रा और खानपान के शौकीन दिनेश जुयाल देश – विदेश का भ्रमण करते आ रहे थे और कुछ अंतराल से
पेट के रोग से भी जूझ रहे थे।
विगत 3 अक्टूबर को उनका पीजीआई चंडीगढ़ से फोन आया था कि वे टेस्ट के सिलसिले में भर्ती हैं।
अपने रोग के बारे में चर्चा करने से गुरेज कर रहे थे। महंगे टेस्ट और इलाज की चिंता भी थी लेकिन ज्यादा
ध्यान नहीं चाहते थे। विश्वास नहीं हो पा रहा कि दिनेश जुयाल यूँ हमें छोड़ कर चले जायेंगे। 65 साल की आयु
में उनका महाप्रयाण जीवन क्षण भंगुर है , एकबार फिर चरितार्थ गया।
- भूपत सिंह बिष्ट