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पांच सौ साल पुराना उत्तराखंड का गढ़वाली सिख नेगी समाज !

गुरू नानक देव जी के उत्तराखंड दौरे से जुड़े - यहां नानक पंथ और सिख समाज के संस्कार।

पांच सौ साल पुराना उत्तराखंड का गढ़वाली सिख नेगी समाज !
गुरू नानक देव जी के उत्तराखंड दौरे से जुड़े – यहां नानक पंथ और सिख समाज के संस्कार।

लगभग पांच सौ साल पहले बाबा गुरू नानक देव जी ने अपने शिष्यों के साथ तिब्बत का दौरा करते हुए उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों में प्रवास किया। मान्यता है कि गुरू नानक देव जी सानिध्य में आये पर्वतीय लोग नानक पंथ से जुड़े हैं। गुरू नानक देव जी ने लगभग 30 साल तक संपूर्ण भारत, तिब्बत, मक्का, बगदाद जैसे मध्य पूर्व एशिया के देशों में अध्यात्मिक भ्रमण किए। उनकी धार्मिक यात्रायें उदासी कही गई हैं।

 

वर्ष 1514 में गुरूनानक देव जी नानकमत्ता उधमसिंह नगर , रीठा साहब, चंपावत और बागेश्वर में डेरा किया और आज यहां सिखों के नामी गुरूद्वारे और संस्कृति स्थापित हैं। 15 अप्रैल 1469 को जन्में गुरू नानक देव जी ने 22 सितंबर 1539 को देह त्याग किया। उनके बाद उत्तराधिकारी गुरू अंगद देव सिख धर्म के दूसरे गुरू कहे जाते हैं।

बाबा गुरूनानक देव जी ने निराकार ईश्वर, नाम जप, खरा सौदा, लंगर और समानता का ज्ञान दिया है। इस से अभिभूत होकर पौड़ी गढ़वाल के कई गांवों में बाबा गुरू नानक देव जी की स्मृति में गुरूद्वारे स्थापित किए गए और उत्तराखंड में गढ़वाली सिखों की नेगी जाति का अस्तित्व सामने आया।

सिख नेगियों का दबदबा कालंतर में अंग्रेज सेना में भी रहा है। पीपली के सरदार नारायण सिंह नेगी सिरमौर स्टेट हिमाचल के दीवान रहे हैं। उन के बेटे जगमोहन सिंह नेगी आईटीबीपी में डीआईजी रहे हैं। उनका सिख नेगी गांव ‘‘सिहों की पीपली‘‘ नाम से विख्यात है। पीपली के ही सिख नेगी मानवेंद्र सिंह नेगी अभी सीमा सुरक्षा बल में डीआईजी पद पर तैनात हैं।

SIKH NEGI GURUDWARA IN PIPLI, PAURI GARHWAL

पौड़ी गढ़वाल जनपद में आज सिख समाज के तीन बड़े गांव पीपली – मवालस्यूं पट्टी, बिजौली और हलूणी गांव – गुराड़स्यूं पट्टी में मौजूद हैं। इन गांवों में गुरूद्वारे भी मौजूद हैं और सिख नेगी अपने धार्मिक कर्मकांड, शादी – ब्याह, अरदास यहां संपन्न करते हैं। निशान साहब की उपस्थिति में फेरे, कड़ा प्रसाद, पकोड़े, भेली का वितरण की परंपरा बनी हुई है। इन गुरूद्वारों में नितनेम – रोज गुटका पाठ हिंदी भाषा में किया जाता है। गुरूमुखी का ज्ञान न होने से धीरे – धीरे सिख संस्कारों में कमी देखी जा रही है। सिख नेगी अब सामान्य केश और वेशभूषा धारी हैं यानि पूरे पांच ककारों का प्रयोग नहीं करते हैं। गुरू नानक देव जी के जन्मोत्सव और अन्य सिखी धार्मिक उत्सव में पाठ और प्रसाद की परंपरा बनी हुई है।

गढ़वाली सिख नेगी समाज में नई वधू का प्रवेश हो या बालिका का अन्य जाति में विवाह – गुरूद्वारे में पूजा – अर्चना संस्कार अनिवार्य हैं।
गढ़वाली सिखों में एक बड़ा नाम पदम भूषण और पदमश्री विजेता सरदार कुंवर सिंह नेगी हैं। पंजाबी में ज्ञानी शिक्षा पास कुंवर सिंह नेगी ने विधिवत सिख धर्म अपनाया और ताउम्र सिखी आस्थाओं का पालन किया।
गढ़वाल राइफल में रहकर दूसरा विश्व युद्ध लड़े कुंवर सिंह नेगी ने ब्रेल लिपी का अध्ययन किया। धार्मिक और पाठय पुस्तकों का पंजाबी, बंगाली, उडि़या, मराठी, हिंदी और अंग्रेजी ब्रेल लिपी में अनुवाद किया ताकि दृष्टि दिव्यांग अध्यात्म और शिक्षा से अछूते न रह जायें।
ब्रेल लिपी में शानदार सेवाओं के लिए सरदार कुंवर सिंह नेगी को वर्ष 1981 में राष्ट्रपति श्री नीलम संजीवन रेड्डी ने पदम श्री और वर्ष 1990 में राष्ट्रपति श्री आर वैंकटा रमण ने पदम विभूषण से सम्मानित किया है।

पौड़ी गढ़वाल के अयाल गांव, पट्टी पैडुलस्यूं में 20 नवंबर 1927 को जन्में सरदार कुंवर सिंह नेगी का देहवसान 20 मार्च 2014 में हुआ। उत्तराखंड में सिख समाज की जड़े खगालते हुए नेगी ने पीपली, बिजोली, हलूणी के अलावा कुंभचौड़, खिर्दीखाल, गुजेरा, मनौली, बरान, कुचिपार, रिंगलटा, करतिया और अयाल गांवों में भी गुरूद्वारे तलाश किए।
अजादी से पहले गढ़वाल से अमृतसर और लाहौर तक शिक्षा और रोजगार की तलाश में जाने वाले लोगों की संख्या अनगिनित है। इन प्रवासी लोगों में कई ने सिख धर्म अपनाया और ग्रंथी बनकर सिखी का प्रचार – प्रसार भी किया है।
प्रस्तुति – भूपत सिंह बिष्ट।

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