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उत्तराखंड दिवस पर विशेष : भगवान शिव को दी अपनी हड्डियां !

माँ को मांस समर्पित कर शरीर छोड़ दिया - पुत्र कार्तिकेय स्वामी ने !

भगवान शिव को दी अपनी हड्डियां !
माँ को मांस समर्पित कर शरीर छोड़ दिया – पुत्र कार्तिकेय स्वामी ने !

कार्तिकेय स्वामी के इस अनुपम मंदिर तक ट्रेकिंग का सुख कोरोना काल में अपूर्व है। लगभग दस हजार फिट पर पहुँचकर चारों ओर हिमालय दर्शन का सुख रोमांचित करता है।

केदारनाथ के बर्फीली शिखर और मदमहेश्वर धाम को समेटे चौखंबा शिखर बड़े जाने पहचाने दिखते हैं। यहां शिवलिंग शिखर निहारकर गोमुख का भी अहसास हो रहा है।

भगवान शंकर – पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी की कथा किसी थ्रिलर से कम नहीं है और दक्षिण भारत में कार्तिकेय स्वामी के भव्य मंदिर महिमा का बखान करते हैं।

कैम्प निर्वाणा , गुप्तकाशी से चलकर दूसरे दिन सबसे पहले जाख देवता के दर्शन किए – जाख मंदिर में अप्रैल माह में अंगारों पर चलकर देवपूजा की जाती है और यहीं से रूद्रप्रयाग का विशिष्ठ संस्थान नवोदय विद्यालय का भव्य परिसर नज़र आता है — जहां नई पीढ़ी शिक्षा, खेलकूद और साँस्कृतिक प्रतिभा से संवारी जा रही हैं।

 

एक बार फिर आल वैदर रोड़ की टूटी फूटी सड़क पर कुँड पावर प्रोजेक्ट को पारकर बांसवाड़ा और गलती से मक्कू मठ – चोपता की सड़क पर जाने से लंबा फेर लग गया। मक्कू मठ की ओर 5 किमी जाकर फिर जुमई 6 किमी कच्ची सड़क पर चलकर कंडारा पहुँचे।

 

कंडारा से चंद्रनगर, मोहनखाल होकर कनकचौरी का रास्ता देखा भाला है सो कोई दुविधा नहीं हुई।

डेढ़ घंटे में कार्तिकेय स्वामी मंदिर तक पदयात्रा पूरी हो गई।

ट्रेकिंग के नए शौकीनों के लिए यह सबसे प्यारा ट्रेक है – रूद्रप्रयाग नगर के मोटर मार्ग से जुड़ा ” कार्तिकेय धाम ” बारह माह नया प्रमुख धार्मिक व पर्यटक स्थल बनकर उभरा है।
— भूपत सिंह बिष्ट

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