विपक्ष शासित राज्यों में गवर्नर की भूमिका मामला सुप्रीम कोर्ट में गरमाया !
पंजाब, केरल, तमिलनाडु, तेलांगना, पश्चिम बंगाल सरकारों ने राज्यपाल के खिलाफ अपील दायर की।
पंजाब सरकार ने विधानसभा में पास सात बिलों को कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में
फरियाद की है।
पंजाब सरकार की शिकायत है – विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल विधेयकों पर
मंजूरी देने में अनावश्यक विलंब करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय बैंच ने लोकतंत्र में मुख्यमंत्री
और राज्यपाल के बीच विवाद को लोकतंत्र के खिलाफ माना है।
राज्यपाल निर्वाचित नहीं है और मतदाताओं द्वारा चुनी हुई सरकार के बिलों पर
निर्णय में देरी ठीक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट मामले के विधिक पहलू पर निर्णय देगा।
पंजाब सरकार ने अपने वित्तिय और राज्य सरकार के कालेजों से जुड़े बिलों पर
राज्यपाल को मंजूरी न देने पर सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है।
पंजाब सरकार के वकील अभिषेक मनुसंघवी ने तर्क दिए कि विपक्ष की निर्वाचित सरकारों
का विरोध करने के लिए राज्यपाल राजनीतिक विपक्ष की भूमिका में आ गए हैं।
राज्यपाल का पक्ष रखते हुए एडवोकेट जनरल ने तर्क रखे कि सात में से
दो बिल मंजूर हो चुके हैं। शेष पर निर्णय लेने की प्रक्रिया चल रही है।
पंजाब विधान सभा को तीन माह स्थगित रखकर सत्र बिना राज्यपाल की मंजूरी लिए
स्पीकर ने नियम सत्र के तहद आहुत कर बिल पास किए गये हैं।
सालिस्टर जनरल तुषार मेहता ने शुक्रवार तक का समय मांगा है ताकि स्थिति साफ
हो जाये कि बिल राष्ट्रपति कार्यालय प्रेषित हुए हैं या पास किए जा रहे हैं।
केरल सरकार ने बिल दो साल से लटकाने का वाद दाखिल किया है। राज्य सरकार के
वकील केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि राज्यपाल वाद लड़ने का मन बनाये हुए हैं।
तमिलनाडु राज्य के वकील ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल राजनीतिक विरोधी की
तरह सरकार के खिलाफ काम कर रहे हैं और बिल रोके गए हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार के आरोप हैं कि यूनिवर्सिटी में उपकुलपति पद पर
नियुक्तियों में बाधा दी जा रही है।
पदचिह्न टाइम्स।