कंक्रीट के जंगल से मशीनी मानव पहुंचे सिद्धपीठ माँ मानिला के चरणों में !
वर्ष 1488 में बना कत्यूरी राजवंश का यह मंदिर अपनी नैसर्गिक हिमालयी छटाके लिए चर्चित है।
कंक्रीट के जंगल से मशीनी मानव पहुंचे सिद्धपीठ माँ मानिला के चरणों में !
वर्ष 1488 में बना कत्यूरी राजवंश का यह मंदिर अपनी नैसर्गिक हिमालय के लिए चर्चित है।
उत्तराखंड देवभूमि में पग पग पर प्राचीन मंदिर और नयनाभिराम पर्यटक स्थल हैं। हिमालय के हिम शिखरों का आकृषण यहां बार – बार पर्यटकों को खींच लाता हैं।
देवभूमि उत्तराखंड के प्रमुख धार्मिक एवं पर्यटक स्थल मानिला से पंचाचूली, नन्दा देवी, नन्दा कोट और त्रिशूल आदि हिममंडित शिखरों के सौन्दर्य को निहारने का अवसर मिलता है।
वहीं आदिशक्ति माता मानिला देवी के आध्यात्मिक दर्शन, धार्मिक अनुष्ठान , श्रद्धालुओं की निष्काम भक्ति के लिए बहुत विख्यात है।
हमारी मिनी बस से एन एच 24 होते हुए गाजियाबाद, हापुड़, गढ़ गंगा , मुरादाबाद से रामनगर पहुँचे।
जिम कॉर्बेट रास्ते से मानिला के लिए निकले। उत्तराखंड की शक्ति पीठ माता गर्जिया देवी मंदिर में पुण्य दर्शन का लाभ टीम को मिला।
मरचूला में उत्तराखंड के भोजन का रसास्वादन किया। जखिया का तड़का, पहाड़ी खीरे का रायता बहुत स्वादिष्ट लगा।
होटल के किनारे नदी जिसमें क्रोकोडाइल पॉइंट पर कई सैलानी अपने परिवार के साथ वहां पर आए हुए थे। छोटी छोटी घुमावदार सड़क से होते हुए हम करीब 7 बजे शाम को मनिला पहुंच गए।
मानिला में जिस होटल में रुकने की व्यवस्था थी उसका नाम भी यहाँ के एक पर्वतीय फल-फूल “काफल-बुरांश” पर था। रात्रिभोज के बाद में हरीश चंद्र बलोदी जी(मेरे सीनियर एवं आध्यात्मिक गुरु जी) द्वारा लाई गई खगोलीय टेलिस्कोप से चंद्रमा व खगोलीय दुनिया की बेहद सुंदर एवं अविस्मरणीय दृश्य दिलो दिमाग में अंकित हो गए।
प्रातः काल में हिमालय शिखरों के सुनहले स्वरूप को देख कर मन गदगद हो गया। इतना प्राकृतिक सौंदर्य शायद पहली बार जीवन में देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। स्वच्छ ठंडी हवा , पक्षियों के कलरव, चहचाहट की संगीत ध्वनि मन्त्र मुग्ध करने वाली ठहरी।
मानिला देवी मन्दिर उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले के शल्ट क्षेत्र में स्थित है। यह स्थान रामनगर से लगभग 70 किमी की दूरी पर स्थित है और बस या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
मानिला मन्दिर दो भागों में फैला हुआ है जिसे स्थानीय भाषा में मल मानिला (ऊपरी मानिला) और तल मानिला (निचला मानिला) कहते है।
प्राचीन मन्दिर तो तल मनीला में ही स्थित है लेकिन मल मानिला मन्दिर की एक कहानी स्थानीय लोगो के बीच प्रचलित है –
एक बार कुछ चोर मानिला देवी की कीमती मूर्ति को चुराना चाहते थे लेकिन वे चाहकर भी मूर्ति उठा नहीं पाए।
जल्दी में वे मूर्ति का एक हाथ ले गए लेकिन उस हाथ को भी वे अधिक दूर तक ना ले जा सके और रास्ते में छोड़ गए।
तबसे वही पर माता का एक और मन्दिर स्थापित कर दिया गया – जिसे आज मल मानिला के नाम से जाना जाता है।
समुद्री सतह से अठारह सौ मीटर ऊपर स्थित इस धाम से हर ओर हिमालय के रमणीक अविस्मरणीय दृश्य हैं। मंदिर का द्वार और आगे का हिस्सा स्वर्णिम (सुनहरे रंग का) है।
देवदार और चीड़ के घने जंगलों के बीच ऊंची चोटी में स्थित मां मानिला देवी मंदिर लोगों की अटूट आस्था का प्रतीक है। वर्ष 1488 में कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव ने इस मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर में काले पत्थर से निर्मित दुर्गा माता और भगवान विष्णु की सुंदर मूर्तियां हैं। मंदिर में मां के दर्शन को दूर-दूर से श्रद्धालुओं के साथ काफी संख्या में पर्यटक भी रोज पहुंचते हैं।
पौराणिक मानिला देवी मंदिर का पर्यटन दृष्टि से विशेष महत्व है। मंदिर में श्रद्धालुओं ने समय – समय पर काफी सौंदर्यकरण कराया है।
देवदार, चीड़ के घने जंगलों के बीच ऊंची चोटी में स्थित मां मानिला देवी मंदिर में नवविवाहित दंपति विशेष पूजा पाठ और मनौती मांगने आते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना को मानिला देवी पूरा कर देती हैं।
मानिला देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष नंदन सिंह मनराल कहते हैं कि दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रात्रि विश्राम के लिए मंदिर में 24 कमरे हैं।
राहुल उपाध्याय, नई दिल्ली।