उत्तराखंड दर्शन : देवभूमि में अध्यात्मिक स्थल गंगोत्री- गोमुख और तपोवन तक !
गंगोत्री शिखरों के गोमुख ग्लेशियर से इस ओर भगीरथी नदी और दूसरी ओर अलकनंदा बदरीनाथ धाम को पवित्र करती है।
उत्तराखंड दर्शन : देवभूमि में अध्यात्मिक स्थल गंगोत्री- गोमुख और तपोवन तक !
गंगोत्री शिखरों से फैला गोमुख ग्लेशियर से इस ओर भगीरथी नदी और दूसरी ओर अलकनंदा बदरीनाथ धाम को पवित्र करती है।
गोमुख ग्लेशियर लगभग 10किमी तक गंगोत्री शिखर-1, 2 एवं 3 तक फैला है। इस के एक ओर नंदनवन और दूसरी ओर तपोवन तक यात्री जोखिम उठाकर आते हैं क्योंकि गोमुख ग्लेशियर पर लगभग दो किमी चलकर ही यहां पहुँचना संभव है।
कभी इस पर चलते हुए ग्लेशियर कहीं टूटा तो हिमशीतित गंगा नदी से शरीर निकालना असंभव कार्य है।
“शिवलिंग” शिखर पर पर्वतारोहण करनेवाले अपना बेस कैंप तपोवन में बनाते हैं। शिवलिंग शिखर गंगोत्री के रास्ते में दूर से दमकता रहता है।
गढ़वाल मंडल में “ऋषिकेश से गंगोत्री – यमुनोत्री साइकिल अभियान 1986″ और कुमायूं में ” देहरादून से पिंडारी ग्लेशियर साइकिल अभियान – 1987 ” के बाद एक बार फिर 1989 में “गोमुख — तपोवन” के बीच ट्रेकिंग का अवसर मिला।
तपोवन में शिमला बाबा और उन की जर्मनी चेली ने रामनवमी पर्व पर मीठा रोट प्रसाद में खिलाकर हमारी यात्रा को कालजयी बनाया।
विदेशी पर्यटकों को तपोवन में पाकर सुखद आश्चर्य हुआ — आखिर ये लोग कैसे इन सुंदर अध्यात्मिक स्थलों को खोज लेते हैं ?
नंदन वन से होकर एक मार्ग बर्फीले दर्रे कालिंदी खाल से बद्रीनाथ धाम की ओर जाता है।
गंगोत्री शिखर के दूसरी ओर फैले ग्लेशियर से पावन अलकनंदा की धारा बदरीनाथ धाम की शोभा है।
अनेक पर्वत श्रंखलाओं और घाटियों को पारकर भगीरथी और अलकनंदा का संगम देवप्रयाग में माँ गंगा का अवतार ले रहा है।
गढ़वाल हिमालय से निकलने वाली पावन जल धारायें यूं तो उत्तराखंड में ही बड़ी नदियों का नाम और स्वरूप लेती हैं। गंगा और यमुना दोनों नदियों का उद्गम गढ़वाल हिमालय के बर्फीले शिखरों से है।
फिर भी यमुना नदी अपने में अनेक छोटी नदियों को समाहित करते हुए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश होते हुए इलाहाबाद यानि प्रयागराज पहुंचकर गंगा नदी के साथ संगम करती है।
एडवैंचर यात्राओं के प्रेरक सतीश चन्द्र खंडूडी,( गढ़वाल मंडल विकास निगम में पर्वतारोहण के आइकन रहे हैं) ने हमें नंदन वन से आगे कालिंदी शिखर का एक किस्सा सुनाया था – कैसे वहाँ, बर्फ से अरूंधति जोशी और विजय महाजन के शरीर बाहर निकलते हैं और पास से गुजरने वाले पर्वतारोही इन्हें फिर बर्फ से ढककर अपनी श्रद्धांजली देते हैं।
— भूपत सिंह बिष्ट