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उत्तराखंड चुनावी घमासान – अब कांग्रेस की बारी आ गई !

नेता रात - रात बागी नहीं बनते, कोरपोरेट चंदा और दल बनाते हैं !

उत्तराखंड चुनावी घमासान – अब कांग्रेस की बारी आ गई !
नेता रात – रात बागी नहीं बनते, कोरपोरेट चंदा और दल बनाते हैं !
— भूपत सिंह बिष्ट

 

कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत छह साल के लिए बीजेपी से निष्कासित पहली बार नहीं हुए हैं !
यूपी के जमाने में बीजेपी संगठन चुनाव के दौरान पौड़ी में ज्वालपा कांड हुआ और गढ़वाल की राजनीति से युवा हरक सिंह छह साल के लिए निष्कासित किए गए।

उत्तराखंड बना तो पहली विधानसभा में  हरक सिंह कांग्रेस के विधायक और नारायण दत तिवारी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए।
बीजेपी के युवा विधायक हरक सिंह रावत यूपी में कल्याण सिंह की बीजेपी सरकार में टूरिज्म मिनिस्टर रहे हैं ।

निष्कासन के बाद बहन मायावती की बसपा में चले गए और धर्मपत्नी सहित यूपी में दर्जाधारी मंत्री बने।

उस के बाद हरक सिंह रावत की यात्रा कांग्रेस में शुरू हुई और बीजेपी नेताओं की आंख में किरकिरी बने। दो बार निरंतर लैंसडाउन से विधायक चुने गए। एक बार रूद्रप्रयाग से और पिछली बार कोटद्वार से विधायक बने हैं।

हरक सिंह रावत गढ़वाल की राजनीति में हर बार मंझे हुए खिलाड़ी साबित हुए हैं। चुनाव परिणाम उन के लिए कागजों में तो टक्कर के लिखे गए लेकिन हकीकत में केक वाक साबित हुए।

हर बार अपने कद्दावर विरोधी को पटखनी देने में हरक ने रिकार्ड बनाये हैं।

यह संयोग नहीं है – हरक से विवादों का अटूट संबंध रहा है।  हरक के व्यक्तिगत रिश्ते और राजनीतिक संबंध समय के साथ तय हुए हैं।

चर्चा है – हरक सिंह अपनी बहू के लिए लैंसडाउन से टिकट चाहते हैं और खुद बीजेपी के निवर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत का डोईवाला से मुकाबला करेंगे।

यशपाल आर्य और उनका विधायक बेटा कांग्रेस में वापसी पहले कर चुके हैं।

उमेश शर्मा भले ही कांग्रेस से दूरी रखें लेकिन त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में सुबोध उनियाल सहित हरक सिंह रावत के साथ खेमाबंदी करना चाहेंगे।

 

हरक सिंह रावत दूसरी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अब पांचवी विधानसभा में नेता सदन यानि मुख्यमंत्री के दावेदार हैं।

पिछली बार चुनाव में भाजपा ने कांग्रेसियों में दंगल कराया था और अब कांग्रेस ने बीजेपी की जुमलेबाजी चाल , चरित्र और चेहरा को बेनकाब करने के लिए दलबदल का अस्त्र चलाया है।

उत्तराखंड चौथी विधानसभा चुनाव इतिहास के झरोखे से –

उत्तराखंड की चौथी विधानसभा का चुनाव 2017 अनेक पहलुओं से रोचक हो गया है।विधानसभा की 70 सीटों के लिए भाजपा ने 64 नाम जारी किए लेकिन कांग्रेस ने अभी प्रत्याशी घोषित नही किये हैं।

भाजपा को 6 सीटों पर नाम फाइनल करने हैं।इन में भीमताल भाजपा ने जीती है। रामनगर, हलद्वानी, चकराता, विकासनगर और धर्मपुर सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। रामनगर से सतपाल महाराज की धर्मपत्नी अमृता रावत कांग्रेस के टिकट पर विजयी रही लेकिन नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की प्रभावी परिवर्तन रैलियों के बावजूद रामनगर सीट छोड़ना चाहती हैं।

भीमताल में भाजपा को अपने बागी विधायक पान सिंह भंडारी को चित करना है।

हलद्वानी से इन्दिरा हृदयेश, चकराता से प्रीतम सिंह चौहान, धर्मपुर देहरादून से दिनेश अग्रवाल और विकासनगर से नव प्रभात कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं।

धर्मपुर सीट पर भाजपा में घमासान दशकों से धुर विरोधी विनोद चमोली, मेयर दून नगर निगम और भाजपा जिलाध्यक्ष उमेश अग्रवाल के बीच है और यहां बहुसंख्यक वोटर गढ़वाली है।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान विकासनगर में आधार रखते हैं लेकिन कुलदीप कुमार भाजपा पूर्व विधायक और उन के समर्थक विरोध में डटे हैं। हमेशा की तरह मुन्ना चौहान अपनी पत्नी के लिए टिकट मांगते हैं और पार्टी इस दबाव की लिए फिर उन्हें सरकार से बाहर रखती है।

चकराता सीट पर प्रीतम चौहान अभी तक अजेय बने हुए हैं और वहां भाजपा के पास कोई विकल्प नही दिखता है।

देहरादून गढवाल मंडल में और हलद्वानी कुमायूँ मंडल का प्रमुख घनी आबादी के शहर होने के नाते प्रदेश में बहने वाली राजनीतिक बयार के केन्द्र हैं। इन शहरों में अंदरूनी दलगत कलह भाजपा और कांग्रेस का खेल ही खराब करेगी।

परिवार वाद पोषण के आरोप अब भाजपा पर लगे हैं। भाजपा ने जनरल खंडूडी की बेटी रितु खंडूडी भूषण को एडजस्ट करने के लिए यमकेश्वर से अपनी तीन बार की विधायक विजया बडथ्वाल का टिकट काट लिया।

विजय बहुगुणा पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री के गुमनाम बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से नवाजा है। जनरल खंडूडी और विजय बहुगुणा निकट संबंधी भी हैं।

बाजपुर और नैनीताल सुरक्षित सीटों पर भाजपा के लिए पूर्व कांग्रेसी बाप — बेटा यशपाल आर्य और संजीव आर्य चुनाव मैदान में हैं।

उत्तराखंड की तीसरी विधानसभा में चौदह विधायकों ने दल —बदल से राजनीति को कलंकित किया और प्रदेश में अस्थिरता का माहौल बनाया। दल बदल और लेन — देन के धन्धे में विकास कार्य ठप रहे । विधायकी समाप्त होने पर बागियों ने विधानसभा में घुसने के लिए कोर्ट—कचहरी के असफल पैंतरे भी चले।

भाजपा ने इन बागी विधायकों को अपने टिकट देकर जागरूक मतदाता से जहां खुली नाराजगी मोल ली है। वहीं अपने संगठन में उथल —पुथल मचा दी है।

भाजपा कब तक हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा और सतपाल महाराज की तिगड़ी को अपने दल में बांधे रख सकते हैं — यही यक्ष प्रश्न है ? कांग्रेस छोड़कर भाजपा में पधारे सभी नेता मुख्यमंत्री होने का दिवा—स्वप्न पाले हुए हैं।
— भूपत सिंह बिष्ट

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